जातिगत जनगणना !

sohanpal singh
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जसनसंख्या की गणना भी एक आवश्यक आयाम है जिससे सर्वजन की हितकारी योजना बनाने और क्रियानवित में बहुत सहायता मिलती ! लेकिन सरकार है कि इसमें भी राजनीती करने से बाज नहीं आ रही है । जब देश में सबकुछ जाति के नाम पर होता है तो सरकार को जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने में क्या संकोच है ? क्योंकि एक अनुमान के अनुसार देस की कुल जंनख्या लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या जनजाति; दलित;पिछड़ा; और गरीब वर्ग की है और। केवल 15 प्रतिशत ही अगडी जाती और सम्प्पन वर्ग है ?
यानी यूँ कहे कि देश में कुल संख्या का केवल 15 प्रतिशत ही देश की 125 करोड़ की जनता पर राज्य कर रहा है और अपने मनमाने फैसले जनता पर थोपने में सफल है !ऐसा भी नहीं है की इसमें बाकी 85 प्रतिशत का कोई योगदान नहीं है उनका भी योगदान है लेकिन वह सब इन 15 प्रतिशत के रहमोकरम पर ही निर्भर करता है ? और शायद यही कारन है की सरकार जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक नहीं करने में हिचक रही है ? क्योंकि शासको को कहीं न कहीं यह। डर हमेशा सताता रहता है की हम कब तक 85 प्रतिशत पर राज्य करते रहेंगे?

जिस दिन भी जनसँख्या के जातिगत आंकड़े बाहर आयंगे तो जनताको अपनी ताकत का पता चलेगा तो फिर वाही होगा जो हनुमान जी के साथ होता था जब हनुमान जी को याद दिलाया जाता था तो उनको अपनी ताकत का अनुभव होता था ? और जब जनता को अपनी ताकत का एहसास हो जायेगा उस क्या होगा ? एस पी सिंह । मेरठ

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