इन दिनों राधे माँ नाम की साध्वी के चर्चे जोरो पर हैं , आरोप यह लग रहा है की वह अश्लीलता परोसती थी , भक्तो के साथ एकांत में उपदेश देती थी आदि ।
अभी कुछ दिन पहले ही धर्म गुरु आशाराम बापू भी बलात्कार के जुर्म में जेल की हवा खा रहें हैं ,धर्म गुरु नित्यानंद के किस्से भी मशहूर हैं की किस प्रकार से वह अपनी महिला भक्तो का यौन शोषण करता था । एक नया बाबा और अभी आज हाईलाइट हुआ है जो महिला भक्तो के साथ यौन सम्बन्ध तो बनाता ही था इसके आलावा लड़कियां भी सप्लाई करता था बड़े बड़े सेठो , अधिकारियो को ।
ऐसी घटनाये जिसमें धर्म गुरुओ द्वारा बलात्कार करना या वैश्यावृति करवाना कोई नई घटना नहीं है बल्कि ऐसा प्राचीन काल से होता आ रहा है , सैक्स और धर्म एक दूसरे के पूरक रहें हैं । बस उस समय धर्म गुरु अपने इन कर्मो को छुपाने के लिए उसे ‘ चमत्कार’ का नाम देते थे और उसे धर्म का चोला ओढ़ा देते । राजा दशरथ के कोई बच्चा नहीं हो रहा था , ऋषयश्रंग ने नियोग किया तब राम आदि पैदा हुए पर इस सीधी साधी प्रक्रिया को धर्म और की महिमा दिखाने के लिए ‘ यज्ञ ‘ का दिखावा किया । पुत्र प्राप्ति हेतु शास्त्रों और साधुओं को महिमामंडित किया गया ताकि आम जनता में साधुओ और शास्त्रो पर अन्धविश्वास करे । धर्म और साधुओं ने जनता को सिखाया की जब राजा दशरथ जैसे लोग ‘यज्ञ’ से बच्चे प्राप्त कर सकते हैं तो आम लोग क्यों नहीं ? बस फिर क्या था अंधी जनता अपनी स्त्रियों को शास्त्रो , पूजा पाठ, यज्ञ आदि के नाम पर साधू महात्माओ को सौंपती रही । इसके लिए बाकायदा बड़ी बड़ी पोथियाँ लिखी गई की ईश्वर भक्ति या धर्म के नाम पर अपनी कन्यायो , स्त्रियों को साधू संतो को सौपना पुण्य का काम है , इससे स्वर्ग की प्राप्ति होती है ।
नतीजा यह निकला की मंदिरो , मठो आदि जितने भी साधू संतो के डेरे थे उनमें स्त्रियों के साथ जम के यौन क्रियाएँ होने लगी , धर्म के नाम पर हजारो देवदासियां रखी जाने लगी और साधुओ द्वारा उनका जी भरके शारीरिक शोषण होने लगा । जनता सब जानते हुए भी इसे धर्म का अंग मान के इसे पूजनीय नजरो से देखती ।
धर्म के नाम पर काम शास्त्र लिखे जाने लगे ,कोर्णाक जैसे मंदिरो में यौन क्रिया करते हुए दिखाया जाने लगा जिससे साधू संतो को स्त्रियों के साथ यौन क्रियाएँ करते हुए देखना किसी को बुरा न लगे ।
रासलीलाओं का निर्माण किया गया और इसका आयोजन सार्वजनिक रूप से किया जाने लगा , जिससे स्वयं ईश्वर का अवतार कहे जाने वाले कृष्ण को कई कई गोपियो के साथ रमण करते और रासलीला करते हुए दिखाया जाने लगा । धर्म और शास्त्रो के नाम पर अंधी स्त्रियों को इसके बहाने सिखाया जाने लगा की जिस प्रकार गोपियाँ कृष्ण के साथ रासलीला रचाती थीं , यौनिक सुख पाती थीं वैसे ही कृष्ण के प्रतिनिधि साधू संतो के सानिध्य में भी वैसा ही सुख मिलेगा और उन पर ईश्वर प्रसन्न होगा । नतीजा यह हुआ की स्त्रियां और साधू संतो के चंगुल में फंसती गईं।
समाज में ‘ मोहे पनघट पर श्याम छेड़ गयो’ , ‘ मोरी बहियाँ न मरोड़ो श्याम जी , आदि गाने बनने लगे जिसमें लड़कियो के साथ छेड़खानी को धार्मिक रूप दिया जाने लगा ।कृष्ण का मटकी फोड़ना, पनघट पर लड़कियां छेड़ना जैसी घटनाये आम जनता धर्म के नाम पर हँस हँस के देखती और सुनती जिससे समाज में व्यभिचार तो बढ़ता ही साथ में साधू संतो का काम और आसान हो जाता । आज देखिये की वृन्दावन में कितनी बड़ी तादात में साधू संतो की चेलियाँ मिल जाएँगी जिनका काम ही साधू संतो की शारीरिक प्यास बुझाना है ।
धर्म के नाम पर लोगो की मानसिकता इतनी कुन्द और कामुक हो गई की सखी संप्रदाय तक बन गए । इस सम्प्रदाय में भक्त नारी बन के परमात्मा(?) के सामने नाचते गाते हैं , स्त्रियों की तरह तीन दिन रजस्वला होने का अभिनय भी करते हैं । परमात्मा को अपना पति मानते हैं , यह भी एक तरह से स्वांग का चरम होता है जिसमें भक्त स्त्रियों पर मानसिक प्रभाव डालता है और वे अपने को साधू संतो के सामने समर्पण कर देती हैं।
मेरा यह सब लिखने का तात्पर्य यह है की समाज में कितने ही राधे माँ , नित्यानंद, आशाराम जैसे साधू साध्वियो को गिरफ्तार कर के जेल में डाल दिया जाए उनसे कुछ नहीं होने वाला ।
मूल दोष कंहा है यह हमें खोजना होगा , उस जड़ तक पहुचना होगा जंहा से ऐसे साधू महात्माओं को खाद पानी मिलती है और वे कुकरमुत्तो की तरह रोज नए उग आते हैं।
वे खाद पानी है धर्म , ईश्वर और शास्त्र ….. जब तक उन्हें ख़त्म नहीं किया जायेगा तब तक रोज नए आशाराम , राधेमां जैसे पैदा होंगे।
Rajendra Gupta