जिन लोगों के पास लाइसेंस वाले हथियार है, उनके हथियार भी जमा करवा लिए जाएंगे। सभी मतदान केन्द्रों पर सीआरपीएफ के सशस्त्र जवान तैनात होंगे। सब जानते हैं कि सीआरपीएफ को आधी सेना माना जाता है। सीआरपीएफ का इस्तेमाल गंभीर परिस्थितियों में होता है। सीआरपीएफ का इस्तेमाल करने का मतलब यह भी है कि बिहार की पुलिस नकारा हो गई है, जिन परिस्थितियों में बिहार के चुनाव होंगे, उसमें कैसे विधायक चुने जाएंगे। इसका अंदाजा लगाया जा सकता है, आयोग स्वयं मानता है कि बिहार के 38 में से 29 जिले नक्सल प्रभावित हंै। सवाल उठता है कि बिहार में लोकतंत्र क्या मायने रखता है, जब हम बिहार पुलिस और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के भरोसे चुनाव नहीं करवा सकते, तो फिर सरकार बनने के बाद क्या गारंटी है कि सेवा भावी विधायक चुने जाएंगे। सवाल किसी एक राजनीतिक दल का नहीं है। सवाल यह है कि आखिर बिहार के इन हालातों का जिम्मेदार कौन है। बिहार देश के अन्य राज्यों के मुकाबले पहले ही पिछड़ा हुआ है। यदि बिहार में ईमानदार और सेवाभावी सरकार भी नहीं चुनी जा सकती है तो फिर बिहार में विकास का दावा करना बेमानी है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511
