“असहिष्णुता “

sohanpal singh
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पिछले 2-3 महीने से इस शब्द की इतनी चर्चा है की ऐसा लगने लगा है जैसे देस में असहिष्णुता के विषय की चर्चा के अतिरिक्त कोई काम ही नहीं है ? आज दैनिक जागरण में श्री राजीव सचान लिखते “असहिष्णुता का बेसुरा राग ” जिसमे वह अवार्ड वापस करने वाले तमाम बुद्धिजीवियों को कटघरे में खड़ा करके अपनी और सरकार की पीठ ठोंक रहे है ? लेकिन बीजेपी जो एक राजनितिक पार्टी है जब वह अपने भाई भतीजों और पितृ संघठन के लोगो के साथ मिलकर धर्म को राजनीती से जोड़कर शासन चलने के साथ पुरे भारत को अपने आधीन करने में जो प्रयोग कर रही है उस पर श्री सचान मौन हैं ? चूँकि बीजेपी को भावनात्मक मुद्दे हमेशा सहायक सिद्ध होते इस इसलिए बिहार चुनाव में विरोधी द्वारा बीजेपी के धार्मिक और जातिवाद के मुद्दे एवं गौमांस को मुस्लिम से जोड़ने के विरुद्ध असहिष्णुता को ही मुद्दा बना दिया गया है जिसमे सीधे सादे बुद्धिजीवी भावनात्मक रूप से इसका शिकार हो गए है ? इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता की इन सब मुद्दों के पीछे आर एस इस का ही हाथ हो । क्योंकि यह एक ऐसा संघठन है जो परदे के पीछे से कार्य करता हसि और विभिन्न प्रयोग भी करता है ! आज आर एस एस की हैसियत इतनी है की वह किसी भी आंदोलन से मन चाहा फायदा उठा सकता है वह भी आवरण में रह कर !
एस पी सिंह । मेरठ

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