जैसा की 27 नवम्बर 2015 को संसद की कार्यवाही में देखने को मिला जब देश के गृह मंत्री जिनको खाकी निकर पहनने में गर्व की अनुभूति होती है ! एक साधारण नागरिक और होनहार सिनेमा के प्रसिद्ध कलाकार को उसकी व्यक्त की गई सहिष्णुता के वातावरण पर अभिव्यक्ति का जवाब देने के लिए संसद को मंच बनाया ! इतना ही नहीं मंच भी संसद का और सहारा भी संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव रामजी आंबेडकर का लेना पड़ा ? अवसर था संसद का 2 दिन का विशेष अधिवेशन संविधान के निर्माता अंबेडकरजी को श्रधांजलि देने के लिए ? लेकिन इसका उपयोग किया आमिर खान को जवाब देने के लिए ! गृह मंत्री ने कहा की बाबा साहेब ने उपेक्षाओं को झेलते हिये भी कभी यह नहीं कहा की वह देश छोड़ कर चले जायेंगे ! परंतु ऐसा कहते हुए भी उन्होंने तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया, बाबा साहेब ने कथित स्वर्ण वर्ग द्वारा अपनी उपेक्षाओं के विरोध देश तो नहीं छोड़ा लेकिन अपना हिन्दू धर्म और दलित जाती को ही छोड़ फिया था और बौद्ध धर्म स्वीकार किया था ? और इस अवसर पर उन्होंने कहा था की मैं पैदा जरूर हुआ हूँ हिन्दू धर्म में लेकिन मैं हिन्दू धर्म में मारूँगा नहीं ? और उन्होंने ऐसा ही किया ! परंतु अब यह केवल एक राजनितिक परपंच ही है जब केंद्र की सरकार दलित और पिछड़ों को अपने साथ जोड़ने में कवायद करती दिख रही है जब वह लन्दन में बाबा साहेब का स्मारक बना कर दलितों को लुभाने की कोसिस करती है ?
इसलिए जब हमरे माननीय गृह मंत्री संसद में एक बहुत तुच्छ बात पर जोर दे रहे थे और हिंदुत्व की बात करते हुए सेक्युलर शब्द के अर्थ को समझा रहे थे तो कही न कहीं वह आम्बेडकर का अपमान ही कर रहे थे ! क्योंकि यह सत्य है की संविधान में सेक्युलर शब्द 1976 में जोड़ा गया था परंतु इसकी अवधारणा संविधान के मूल चरित्र में विद्यमान थी? हमें तो लगता है आज जब बीजेपी यानि अरर एस एस की पूर्ण बहुमत की सत्ता में केंद्र पर काबिज है तो अपने चरित्र के अनुसार एक बार फिर हिंदुत्व की बात करके दलित दबे पिछड़ों को इतना प्रताड़ित कर देना चाहती है की वह बाबा साहेब भीमराव की तरह हिन्दू धर्म को ही छोड़ दें ? और शायद बीजेपी का यह दिवास्वप्न कभी साकार होने वाला नहीं है ?
वैसे भी केंद्रीय गृह मंत्री के द्वारा सेक्युलर। शब्द की व्याख्या संसद में बीना किसी प्रयोजन के करना शोभा नहीं देता ? वैसे तो उनमे इतनी क्षमता गृह मंत्री होने नाते स्वमेव ही आ जाती है की वह एक प्रस्ताव के द्वारा सेक्युलर शब्द की परिभाषा अपनी व्याख्या के अनुसार बदल सकते हैं तो फिर अनावश्यक चर्चा क्यों ? शायद यह गुजरात का मोदी मॉडल है। जनता को भयभीत करके शासन करने का । दलित प्रेम के दोखवे का सच भी यही है जब भय से काम न चले भेद कस प्रयोगकरो ?
एस पी सिंह। मेरठ