नौमान अंसारी की कलम से………….
मोदी सरकार ने अंबेडकर जयंती और संविधान दिवस के चलते डॉ अंबेडकर की ज़िंदगी,संविधान की खूबियें और संविधान सभा के निर्माताओं की क़ाबलियत का बखान करने का देश के सभी सांसदों और पार्टियों को मौका फ़राहम कराया ! यह तो नरेंद्र मोदी और उनके सिपहसालार जाने कि संविधान दिवस के आयोजन के पीछे सियासत थी या श्रद्धा लेकिन यह एक स्वयं सिद्ध सच है कि इस आयोजन से वर्तमान केंद्र सरकार को कोई राजनीतिक और सामाजिक लाभ लेने के बजाये नुकसान ही हुआ है अगर जानते पूछते सरकार इतनी लोकतांत्रिक और सहशुणी हो गयी है तब तो यह लोकतंत्र के लिए एक शानदार सन्देश है !
लेकिन अगर सिपहसालारों के मशवरे पर किसी वर्ग विशेष के वोटों को आकर्षित करने के लिए संविधान दिवस का आयोजन हुआ है तब इसमें सरकार को नुक़सान ही उठाना पड़ा चूँकि इन डेढ़ सालों में सरकार के सिपहसालारों ने संवैधानिक मर्यादा के विपरीत इतना कुछ आचरण कर दिखाया है कि देश के बुद्धिजीवियों को और सभी विपक्षी दलों के सांसदों को कहने का इतना मौक़ा मिल गया कि संभवतः स्वयं सरकार के जिम्मेदारों ने ज़रूर सोचा होगा कि यह आयोजन खुद उनके लिए एक सवाल बन गया है !
आलेख की उपरोक्त प्रस्तावना और देश में फैले उन्मादी माहौल दोनों को जब जोड़कर देखा जाएगा तो मंथन के बाद अगर डेढ़ साल के नरेंद्र मोदी के सरकारी सफर की खूबियां और खराबियां,वायदा खिलाफी,संविधान की छेड़छाड़ की भाजपा के सामाजिक संगठनों की चर्चाएं और हिन्दुस्तानी मुसलमानों को निशाने पर रख कर बहुसंख्यक वोटों के धुर्वीकरण का प्रयास मंथन के बाद चर्चा का मुख्य बिंदु बनकर उभर कर आएगा ! इसी मंथन से लोकसभा और राज्यसभा में मुस्लिम क़यादत का तजज़िया करने का मौका भी न सिर्फ मुस्लिम अवाम के हाथ लगा बल्कि उन सेक्युलर ताक़तों के भी आंदोलन का हिस्सा बनेगा जो किसी भी हालत में गोंडसे से मुक्त गांधी का भारत बनाना चाहते हैं !
इन मुस्लिम सांसदों की क़ाबलियत को ढूंढने के लिए इनकी नज़रियाती बुलंदगी,इनकी बात कहने का सलीका,मिल्ली व मुल्की दर्द का अहसास,सेक्युलर और गांधीवादी ताक़तों को तक़वीयत पहुचने की कोशिश और दूरदराज़ इलाक़े में रहने वाले वोह मुसलमान जो तनाह किसी गाँव में बैठे सायकल की दूकान पर पंचर जोड़ रहा है या खेतिहर मज़दूर है या कल कारखानों में ताला,चूड़ी या कपड़ा बनाने का काम कर रहा है ! यह सोचने की बात होगी कि उस कमज़ोर मुसलमान को उसके पड़ोस में रहने वाला मज़बूत बहुसंख्यक किस तरह मददगार हो कर सेक्युलर हिन्दुस्तान की तामीर में साम्प्रदायिक ताक़तों से लोहा लेकर अंबेडकर के संविधान को आईना बनाते हुए डेढ़ बरस में मोदी हुकूमत के चलते मज़हबी उन्माद में तब्दील हो चुकी गर्म हवाओं को ठंडा करने में कामयाब हो !
इस बहस में शामिल होने वाले लोकसभा और राज्यसभा के सभी मुस्लिम सांसदों के नाम दर्ज कराते हुए मैं अपने पाठकों को मूलतः लोकसभ के तेज़तर्रार सांसद असद उद्दीन ओवैसी और राज्यसभा के मुस्लिम सांसदों में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के सांसद और फ्लोर पर मो आज़म खान के शागिर्द के रूप में पहचाने जाने वाले चौधरी मुनव्वर सलीम और मो.आज़म खान की ज़ौजा ए मोहतरमा डॉ तज़ीन फातमा द्वारा बोले गए जुमलों का तजज़िया किया जाएगा तो मेरे जैसा तारिख की मामूली जानकारी रखने वाला लेखक यह सोचता है कि अपने वालिद मरहूम सलाउद्दीन ओवैसी साहब के साहबज़ादे असद उद्दीन ओवैसी एक मुज़ब्ज़ब जहनियत शिकार नज़र आएंगे !
चूँकि उन्होंने पार्लियामानी तक़रीर की शुरुवात में ही महात्मा गांधी के बेनुल अक़वामी सियासी और समाजी क़द को कहीं तो अंबेडकर से छोटा बता दिया और कहीं डॉ अंबेडकर की शख्सियत का मवाज़ना जवाहर लाल नेहरू से करते हुए नेहरू को अंबेडकर से बड़ा बता दिया ओवैसी की इस लडखडाती हुई तक़रीर में मुझे तो ऐसा कुछ समझ नहीं आया जो पार्लियामानी फ्लोर पर मिल्ली दर्द की तर्जुमानी करता हो !
इसके बरअक्स राज्यसभा में लगभग 6 मुस्लिम सांसदों ने भी इस बहस में हिस्सा लिया जिनमें से एक सांसद हुसैन दलवई ने तो काबे शरीफ में जाकर आंदोलन करने का ऐलान कर दिया तो दुसरे मुस्लिम सांसद एम जे अकबर ने शाहबानो के मामले को एक बार फिर संसद की फ्लोर पर उछाल दिया और तीसरे मुस्लिम सांसद ने मुसलमानों में तफ़रक़ा पैदा करते हुए अगड़े-पिछड़े मुस्लिम की बहस को ही अपनी तक़रीर का केंद्र बिंदु बना लिया लेकिन संविधान दिवस पर जारी इस बहस में दो मुस्लिम सांसदों चौधरी मुनव्वर सलीम और डॉ ताज़ीन फातमा ने जिस बेबाकी का मुज़ाहिरा किया है वोह काबिल ए कद्र है !
बिलाशुबा अपनी बेबाकी के लिए अपने राजनैतिक गुरु मो.आज़म खान की तरह पहचाने जाने वाले चौधरी मुनव्वर सलीम और मो.आज़म खान की शरीक ए हयात डॉ तज़ीन फातमा ने अपनी तक़रीर में डॉ अंबेडकर को खिराज ए अक़ीदत पेश करते हुए संविधान सभा का चुनाव और उसमे अंबेडकर को चुनाव जिताने में हिन्दुस्तानी मुसलमानों का अहम रौल याद दिलाते हुए संसद से सड़क तक एक नई बहस का आग़ाज़ कर दिया !
डॉ तज़ीन फातमा ने संवैधानिक संस्थाओं में बैठे हुए लोगों के मुसलमानों से वोट के अख्तियार को छीन लेने वाले ऐलान का तज़किरा करते हुए संविधान के 42 वें संशोधन पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह की टिप्पणी को निंदनीय कर दिया ! उन्होंने कहा कि संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को आज के हालत के लिए ही 42 वें संशोधन के माध्यम से संविधान का अंग बनाने का पुनीत कार्य किया गया था ! उन्होंने अपने पति की तरह ही बेख़ौफ़ अंदाज़ में गृह मंत्री भारत सरकार राजनाथ सिंह को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि अगर अब कोई नेता या संगठन समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता पर अमर्यादित टिप्पणी करता है तो उसका यह आचरण संविधान को ठेस पहुँचाने वाला कहलायेगा !
इसी तरह देश में मो.आज़म खान के शागिर्द के तौर पर पहचाने जाने वाले और मुलायम सिंह यादव की पार्टी के तेज़तर्रार सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम ने छुआछूत के शिकार डॉ अंबेडकर के अन्य सांसदों के माध्यम से बयान किये गए हादसों को आधार बनाते हुए कहा की सपा और बसपा के गठबंधन के समय हमारे नेता मुलायम सिंह यादव ने अपने गृह जनपद की सामन्य सीट से स्वर्गीय काशीराम को लोकसभा में पहुंचा कर देश में छुआछूत के नाम पर फ़ैली बीमारी और बुराई को रौंदते हुए जाती तोड़ो नाता जोड़ो का नया सिद्धांत पत्थर पर अंकित किया था !
सपा सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम ने अपने तार्किक और ओजस्वी भाषण में भारत सरकार को डॉ अंबेडकर के प्रति सम्मान और संविधान के प्रति श्रद्धा का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि संवैधानिक संस्थाओं और ओहदों पर बैठे हुए वह लोग जिन्होंने अपनी भाषा और कृत्य से संविधान की मूल भावना के विपरीत आचरण किया है ! उन्होंने मिल्ली और मुल्की दर्द की तर्जुमानी करते हुए कहा कि संविधान दिवस की सार्थकता सिद्ध करने के लिए सरकार को इस प्रकार के लोगों को संवैधानिक ओहदों से हटा कर उन पर आपराधिक मामले दर्ज करना चाहिए जो बारम्बार हमें पाकिस्तान का रास्ता दिखाते हुए यह नारा देते हैं कि तुम्हारा स्थान कब्रस्तान या पाकिस्तान ! सपा सांसद ने बेबाकी से अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मेरे राजनैतिक गुरु मो आज़म खान फिल्म अभिनेता शाहरुख़ खान और आमिर खान इन तीन खानों को रोज़ कोई न कोई ज़िम्मेदार शख्स अपने साम्प्रदायिक नज़रिये का शिकार बनाता है ! सलीम के इस जुमले का आशय साफतौर पर यह था कि दिल्ली में एक व्यक्ति और बिहार में एक विचार से बुरी तरह पराजित भाजपा अपनी उजड़ती हुयी राजनैतिक ज़मीन को तीन खानों के ज़रिये हरा भरा रखने का निंदनीय प्रयास कर रही है !
रोज़ हिन्दुस्तानी अवाम को राष्ट्रवाद का प्रमाण पत्र बांटने वाले तथाकथित राष्ट्रवादियों पर हमलावर होते हुए सांसद सलीम ने कहा कि हम हिन्दुस्तानी मुसलमानों ने १४ अगस्त १९४७ में खुद अपने धर्म के कट्टरवाद के सामने झुकने से इंकार कर दिया था और मो.अली जिन्नाह की जगह महात्मा गांधी को बाबा ए क़ौम क़बूल करते हुए पूरी दुनिया को वतन परस्ती का सबक सिखाया है ! सपा सांसद सलीम ने खचा खच भरी संसद में कहा कि वोह लोग जिनके नेता आज संविधान दिवस मना कर संविधान की अज़मत और मोहब्बत का इज़हार कर रहे हैं ! उन्हें यह जानना चाहिए कि हिन्दुस्तानी मुसलमानों का स्थान कभी पाकिस्तान नहीं हो सकता उनका स्थान कल भी हिन्दुस्तानी कब्रस्तान थे,आज भी हैं और कल भी रहेंगे !
सपा सांसद सलीम ने अपनी बेबाक और प्रभावी तक़रीर में वर्तमान सरकार के साम्प्रदायिक नज़रिये पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि इस सरकार के चलते सूरज को धर्म से जोड़ दिया गया,भोजन को धर्म से जोड़ दिया गया और कसरत को भी धर्म से जोड़ दिया गया ! गोया कि हुकूमत अपने वायदों को पूरा करने में नाकाम,महंगाई को नियंत्रित करने में नाकाम और किसान को न्याय देने में नाकाम होने के बाद अब केवल धार्मिक उन्माद के माध्यम से अपनी गिरती हुयी राजनीतिक साख को बचाने में मसरूफ है !
हमारे इस आलेख का मक़सद किसी भी माननीय मुस्लिम सांसद की निंदा करना नहीं है बल्कि यह कहना है कि यूं तो देश के सभी माननीय सांसदों को इतिहास,भविष्य और वर्तमान का ज्ञान रखकर राजनीत करना चाहिए लेकिन खासतौर पर आज के सियासी हालात में मुस्लिम सांसदों को डॉ तज़ीन फातमा और चौधरी मुनव्वर सलीम जैसे भाषा पर नियंत्रण रखते हुए तथ्यों के साथ संवैधानिक दायरों में रहकर अपने देश और धर्म की तकलीफें रखने का सलीका सीखना चाहिए !