औचित्य क्या संघीय लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत ?

sohanpal singh
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लगता तो ऐसा है कि आर. एस. एस. और बीजेपी को आज तक यह विश्वास नहीं हो रहा है के केंद्र में उनकी सरकार राज्य कर रही है क्योंकि केंद्र की सरकार पुरे देश पर राज कर रही है परंतु दिल्ली जो भारत की राजधानी है जहाँ से पुरे भारत पर केंद्र की सरकार कंट्रोल करती है पर उसी दिल्लीकी राष्ट्रीय राजधानी की सरकार पर उसका नियंत्रण नहीं होने से बीजेपी के कर्ता धर्ताओं के पेट में ऐंठन होती है जबकि पुलिस और डी डी ए पर भी केंद्र का ही नियंत्रण है। क्या यह जंगल राज की उपमा से तुलना नहीं की जा सकती जब दिल्ली के सकूर बस्ती की रेलवे की जमींन पर बानी अवैध झुग्गियों को हटाने के लिए दिल्ली की सरकार को विशवास में नहीं लिया गया ? जबकि दिल्ली के नागरिकों की आवास समस्या की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की है !
यह तो हुई एक बात ऐसे कितने ही उदाहरण है कि केंद्र का गृह मंत्रालय और दिल्ली सरकार में कोई समन्वय ही नहीं है ? जो की लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है एक आधुनिक युग में ? इस विषय में कोर्ट का आदेश है बिना पुनर्वास के कोई भी झुग्गी झोपडी न हटाई जाय ?

लेकिन आज तो हद ही हो गई जब केंद्र सरकार के बंधुआ पिंजरे के तोते ने दिल्ली साकार के सचिवालय में पहुँच कर मुख्य सचिव के कमरे की जाँच केलिए रेड दाल दी ? जिस पर मुख्य मंत्री का कहना है की अगर उनके मुख्य सचिव पर रेड ही डालनी थी तो उनको विश्वास में लिया जाना चाहिए था ? परंतु केंद्र सरकार के वित्त मंत्री का कहना है की मुख्य मंत्री के कार्यालय पर रेड नहीं डाली गई है ? इस पर दिल्ली के मुख्य मंत्री का कहना है की सीबीआई ने उनके कार्यालय पर रेड इस लिए डाली की वह डीडीसीए के अध्यक्ष के खिलाफ एक जाँच करवा रहे थे और जाँच अंतिम दौर में है इसलिए सीबीआई ने उसी फाईल की बरामदगी के लिए रेड डॉली है क्योंकि डीडीसीए के अध्यक्ष वर्तमान वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी ही हैं ? अगर यह सच है तो यह संघीय लोकतंत्र के लिए एक अशुभ संकेत है ?

एस. पी. सिंह, मेरठ

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