डिप्लोमेसी या मजबूरी ?

sohanpal singh
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आखिर यह कौन सी डिप्लोमेसी यानिकि कूटनीति है की एक ओर हमारे जांबाज सिपाही सीमा की रक्षा करने में अपनी जान गवां रहे है ? रोज रोज सुरक्षा व्यवस्था की ओर से अलर्ट जारी किया जाता है कि पाकिस्तान सीमा से आतंकवादी घुसपैठ कर चुके है यहांतक कि कुछ आतंकियों के नाम भी जारी किये जा चुके हैं ! पिछली सरकार को छोडो वर्तमान सरकार की पॉलिसी भी यही थी की जब तक सीमा पर गोलीबारी जरी रहेगी पाकिस्तान से कोई बात नहीं होगी लेकिन वर्तमान घटनाक्रम से तो ऐसा लगता है कि या तो भारत ने अपनी विदेस निति बदल दी है या फिर कोई अंतर्राष्ट्रीय दबाव काम कर रहा है जिस कारण से पूर्व के सारे स्थापित मानदंडो और सुरक्षा व्यवस्था को त्याग कर तुरत फुरत 125 करोड़ जनता के प्रतिनिधि ने अपने आप को विदेश की धरती पर जैसे आत्मसमपर्ण ही कर दिया हो ?

या फिर अमेरिका के बाद रूस ने भी धमका दिया की हथियारों की आपूर्ति से पहले अपने पडोसी से संबंधो को सुधारो ! अगर ऐसा है तो भी एक सम्प्रभु देश के लिए यह एक राष्ट्रिय शर्म की बात तो है ही ? भले ही मोदी जी और उनकी पार्टी कितनी भी शाबाशी अपने आप को दे ? जिस प्रकार यह प्रचारित किया जा रहा है की यह सब अचानक ही हो गया की अफगानिस्तान से बीड़ा होते हुए जब फोन से नवाज शरीफ को बताया तो शरीफ ने भी कह दिया की लाहोर रुक कर जाइये और अपने मोदी जी भी तुरंत तैयार हो गए? सवाल जो पैदा होता है की फिर परिवार को दी गई भेंट क्या पहले से ही साथ ले कर गए थे और अपने देश में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में रहने वाले प्रधान जी बिना उचित सुरक्षा के एक आतंक से पीड़ित देश में अचानक क्यों पहुँच गए ये सब सवाल अनुत्तरित ही रहेंगे ?

एस पी. सिंह, मेरठ ।

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