काटजू जी एक डिप्लोमेट होने के नाते मोदी जी के कदम को सराहनीय कदम बताते हैं ! यह उनका कर्तव्य भी है लेकिन बात करने का उचित माहोल बनाया जाय इसमें किसी को आपत्ति नहीं है और न ही होनी चाहिए । लेकिन क्या उचित माहोल बनाने के लिए मोदी जी को स्वयं को ही झोंक देना चाहिए था , शायद नहीं ? क्योंकि पाकिस्तान का चरित्र ही इतना विषम है कि उसकी किस बात का विश्वास करें और न करें ? क्योंकि समस्या का कोर इशू केवल कश्मीर है , जिस पर बिना वजह एक हमलावर होकर भी पाकिस्तान अपना हक़ जता रहा है जबकि भारत के लिए जम्मू कश्मीर उसका अभिन्न अंग है ! जिसके लिए हर भारतीय अपनी जान निछावर करने को तैयार है ?
इसलिए हम यह समझते है की या तो मोदी जी आज के दिन नासमझ हो गए हैं या उस समय नासमझ थे जब सीना ठोक कर पाकिस्तान को ललकारते थे और एक सर के बदले दस सर लाने का भरोसा देश को दे रहे थे ? मोदी जी यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए की ट्रैक-2 डिप्लोमेसी वह भी उधोगपतियों के द्वारा इस देश में कभी सफल नहीं हो सकती ? वैसे भी बीजेपी के पितृ संघठन से बीजेपी में समाहित एक महासचिव राम माधव कहते हैं कि आरएसएस का स्वप्न है कि भारत, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान को मिला कर एक अखंड भारत बनाना है ? क्या यह संभव है शायद नहीं , मोदी जी के वर्तमान कार्य काल में तो शायद संभव ही नहीं है ? इस लिए हमारी नजर में यह कदम “साहसिक पहल का संकेत” नहीं है यह तो आत्म समर्पण है ?
एस. पी. सिंह , मेरठ