खतरा तो मीडिया बन रहा है

ओम माथुर
ओम माथुर
इस देश को न हिन्दुओं से खतरा है ना मुस्लिमों से। नेताओं से खतरा है ना बाबाओं से। साम्प्रदायिकता से खतरा है ना धर्म निरपेक्षता के पुरोधाओ से। दक्षिणपंथ से खतरा है ना वामपंथ से। पुरस्कार लौटाने वालों से खतरा है ना नारेबाजी करने वालों से । अब देश को सबसे ज्यादा खतरा पथभ्रष्ट, निष्पक्षता से दूर और भ्रमित हो गए मीडिया से है।
क्या न्यूज चैनल और क्या अखबार, सब अपने अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं और एक ही खबर को अपने और अपने आकाओं के हित मे ऐसे पेश करते हैं कि असली खबर ही गुम हो जाती है। खासतौर पर चैनल तो मानो हर समाचार को मुहिम बनाकर गलत को सही और सही को गलत साबित करने पर उतर जाते हैं। महाज्ञानी और अन्र्तयामी एंकर खुद ही सवाल करते हैं। और मनपसंद जवाब नहीं मिलने पर कपडे फाडने पर उतारू हो जाते हैं। साफ लगता है पत्रकारिता और पत्रकार दोफाड हो गए हैं। कोई सत्ता पक्ष के समर्थन में गीत गा रहा है तो कोई विपक्ष के पाले मे खडा होकर उसकी गलत बातों को सही साबित करने मे लगे रहते हैं। इस गायन और चिल्लाहट मे असली खबर और निष्पक्षता किसी कोने मे पडी सिसकती रहती है। पत्रकार दलाल बन गए या दलाल पत्रकार,पता ही नहीं चलता। जिनका खुद का आचरण और चरित्र संदिग्ध है,वह पत्रकार बनकर दूसरों को चरित्र प्रमाण पत्र बांट रहे हैं। काम खबर देने का है,लेकिन देते फैसला है। जिससे जितना लाभ मिलता है, मीडिया उसकी उतनी जीहुजूरी मे जुट जाता है।
दूसरों को नैतिकता का पाठ पढाते हैं, लेकिन पेशे के प्रति खुद ही अनैतिक हो रहे हैं पत्रकार। खबरें अब खोजी कम,प्रायोजित ज्यादा होती है। इसीलिए माहौल बनाने के लिए चुनावों मे फर्जी सरवे होते हैं। स्वार्थ के चलते जिन्हें दो चार सीटें दी जाती है वह पार्टी दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाती है। जिस नेता को खारिज कर दिया जाता है वह मुख्यमंत्री बन जाता है। फिर भी निष्पक्षता की बात करते हुए शर्म नहीं आती। कुछ भटके युवा देशद्रोही नारे एक बार लगाते हैं, लेकिन चैनल इसे बार बार दिखाकर कौनसी देशभक्ति दिखा रहे हैं। उन्होंने तो केवल विश्वविद्यालय कैम्पस मे जहर फैलाया था, आप तो पूरे देश मे यह जहर फैला रहे हो। वोटों की राजनीति के लिए साम्प्रदायिक बयानबाजी करनेवाले नेताओं को बढावा देकर किसका भला ह़ोता है। कई बार मीडिया के ऐसे गैर जिम्मेदार रवैये से देश मे दंगे हुए हैं। सत्ता बदलती रहती है। नेता आते जाते रहते हैं। लेकिन ल़ोगों को मीडिया से हर हाल मे सही खबर और निष्पक्षता की उम्मीद रहती है। क्या मीडिया इस कसौटी पर खरा उतर रहा है, क्या वह पाठकरों और दर्शकों को सच ही बता रहा है। अब खुद के गिरेबान मे झांकने और खुद पर आचार संहिता लागू करने का वक्त आ गया है, ताकि पत्रकारों और पत्रकारिता की गरिमा बनी रह सके।

ओम माथुर, अजमेर. 9351415379

1 thought on “खतरा तो मीडिया बन रहा है”

  1. Me apki bato se puri tarah sahmat hu. 2 minute ki khabar ko 20 minute tak bar bar dikha viewers k dimag me thoos dete aur phir kuchh galat hoke hi rahta h.

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