जबकि इसी देश में खुल्लम खुल्ला देश द्रोह करने वाले उनके अपने संघटन के लोग ( नाथू राम गोडसे जिसने महात्मा गांधीकी हत्या 30 जनवरी 1948 को की थी ) गोडसे का मंदिर बनाने वालों और गांधी की हत्या करने वालों का महिमा मंडन करने वालो पर आजतक कोई कार्यवाही नहीं की ? यह कैसा भेदभाव है ? चूँकि इन विश्विद्यालयों में विदेशी छात्र भी शोध करने आते है शायद इसी लिये सरकार के मंत्रियों को विदेशी धरती पर सफाई देनी पड़ती है ? वैसे भी देश भक्ति तो एक भावनात्मक मुद्दा है जो व्यक्ति की आस्था से जुड़ा हुआ है ? कानून के डंडे से व्यक्तियों को डराया धमकाया तो जा सकता है , देश भक्ति नही सिखाई जा सकती ? सरकार की आलोचना देश द्रोह कैसे हो सकती है क्योंकि सरकार को हम चुनते है और हमे अपने कार्य की आलोचना और प्रसंसा का पूर्ण अधिकार भी है क्योंकि भारतीय दंड सहिंता की धारा 124 A अंग्रेजों के द्वारा 1860 में बनाई गई थी जिसका उपयोग स्वतंत्रता सैनानियों के विरुद्ध किया जाता था जब देश परतंत्र था ? लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी इस धारा को ज्यों का त्यों बनाये रखने का केवल एक ही कारण है कि शासक दाल द्वारा अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में कानून सहायक है ? स्वतंत्र भारत में कानून की इस धारा का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन होता है ?
एस.पी.सिंह, मेरठ।