जैसा की तस्वीरों और रिपोर्ट से मालूम होता है कि अस्पताल की लापरवाही से दुर्घटना में घायल का इलाज करने में लपरवाही के कर एक नौ वर्षीय बालक की मौत हो गई है । सरकार चाहे कितनी भी सुविधा दे दे फिर भी ये इंसानी बूचड़ खाने केवल पैसे कमाने के सेंटर बन कर रह गए हैं ?
अभी एक ताजा फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने आदेश जारी किये हैं की दुर्घटना मेंघायल किसी भी व्यक्ति को अगर कोई सहायता करता है और उसे हॉस्पिटल लेजाता है तो स्थानीय पुलिस ऐसे व्यक्ति को परेशान नहीं करेगी और न ही पूछ ताछ के बहाने उसे रोकेगी ? अभी पुलिस ने इस आदेश पर कितना अमल किया है कुछ पता नहीं लेकिन किसी बूचड़ खाने के सामान व्यवहार करने वाले मेरठ स्थित ये अस्पताल इलाज करने से पहले पैसा मांगते है । जैसा की घटना के सम्बन्ध में दैनिक जनवाणी के 11 अप्रैल के अंक में लिखा है की दुर्घटना में घायल बालक को KMC Hospital ने अपने यहाँ इलाज करने से मन कर दिया उसे फिर किसी दूसरे अस्पताल में दाखिल किया गया , लेकिन जब तक गरीब माँ बाप रुपया एकत्र करके अस्पताल पहुंचे तब तक बालक की मृत्यु हो चुकी थी ? ये डॉक्टरों की संवेदन हीनता की प्रकाष्ठा का अंत है ? इसके आगे क्या इंसानियत जिन्दा रह सकती है ?
इसलिये माननीय सर्वोच्च न्यायालय को एक और आदेश जरी करना चाहिए की दुर्घटना में घायल किसी भी व्यक्ति का इलाज करने से कोई भी अस्पताल इंकार न करें । क्योंकि इस प्रकार के अस्पताल भारतीय आयकर अधिनियम की धारा 10 (23C) के अंतर्गत आयकर से छूट पाते है अगर अस्पताल और शिक्षासंसथान सोसाइटी एक्ट में रजिस्टर्ड हैं और अपना व्यवसाय ” धर्मार्थ ” संस्था के रूप में चलाते है ? लेकिन देखने में यह आता है की ये संसथान धार्मिक रूप से रजिस्ट्रेशन तो कर सभी प्रकार के करों से छूट तो प्राप्त कर लेते है परंतु व्यवसायविशुद्ध व्यापारिक रूप में करते है ? इस लिए सरकार को भी इस पर ध्यान देना चाहिए ?
एस.पी.सिंह, मेरठ