बलि के बकरे या बकरे की बलि

sohanpal singh
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कहने को तो किसी भी प्रदेश के राज्यपाल महोदय महामहिम कहलाते है लेकिन वास्तव में होते हैं कुर्बानी के दुम्बे (बकरे), हम बात कर रहे हैं खांटी संघी विचार धारा को निरंतर घसीटते रहने वाले संघी श्री राजखोवा जी की जो एक अति संवेदन शील सीमावर्ती राज्य अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल बनाये गए थे ? लेकिन वे राज्य के राज्यपाल कम संघी प्रचारक की भूमिका में अधिक सक्रिय थे और इसी कारण अरुणाचल के सांसद जो गृह राज्य मंत्री भी हैं अपनी अति महत्वकांशा के कारण से अरुणाचल की राजनीती में अधिक सक्रीय थे जिसके परिणाम स्वरुप कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकर में विद्रोह कराके उसको दोफाड़ करवा के सत्ता परिवर्तन कराया जिसमे राजय के राज्यपाल का दुरुपयोग किया गया ? उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी के कारण राज्यपाल को हटाना अनिवार्य हो गया था लेकिन वे स्वयं पद त्याग को तैयार नहीं थे आखिर राष्ट्रपति को राजखोवा को खोवा बनाना ही पड़ा? लेकिन अजब राजनीती की गजब विडम्बना या है कि इसमें एनडीए सरकार और सक्रीय भूमिका निभाने वाले गृह राज्य मंत्री साफ़ बच गए ? जबकि नैतिकता के कारण इस्तीफा गृह राज्य मंत्री का होना चहोए था ? हमे तो ऐसा ही लगा की क़ुरबानी के बकरे बन ही गए ?

एसपी सिंह, मेरठ।

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