“गैरों में कहाँ दम था हमें तो अपनों ने लूटा, हमारी कशती वहाँ डूबी जहाँ पानी कम था।“
लेकिन अब जब आखिर लगभग 19 महीनों की जद्दोजहद के बाद सीबीआई चिदंबरम के लिए कोर्ट से पाँच दिन की रिमांड लेने में कामयाब हो गई है, इस बात का उल्लेख महत्वपूर्ण है कि भ्रष्टाचार के लगभग छ अलग अलग मामलों में चिदंबरम उनकी पत्नी पुत्र और बहू जांच के दायरे में हैं। खुद चिदंबरम को इन मामलों में लगभग 27 बार कोर्ट से अग्रिम जमानत मिल चुकी थी लेकिन इस बार उन्हें कोर्ट से झटका मिला। वक़्त का सितम तो देखिए, कि कांग्रेस के जो वकील कल तक आधी रात को भी सुप्रीम कोर्ट के ताले खुलवा लेते थे, आज दिन भर की मशक्कत के बावजूद शाम साढ़े चार बजे तक दिग्गज वकिलों की यह फौज अपने नेता की जमानत याचिका पर सुनवाई भी नहीं करवा पाई। अंततः रात दस बजे के आसपास लगभग 26 घंटे तक “लापता” देश के पूर्व वित्त एवं गृह मंत्री को सीबीआई द्वारा बेहद नाटकीय घटनाक्रम में गिरफ्तार कर लिया जाता है। कांग्रेस ने भले ही इस “नाटकीय घटनाक्रम” को चिदंबरम के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पूरे प्रकरण को “विक्टिम कार्ड” खेलते हुए “राजनैतिक दुर्भावना से प्रेरित” कदम बनाने की भरपूर कोशिश की हो, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के नाते उसकी यह प्रेस कॉन्फ्रेंस प्रश्नों के उत्तर देने के बजाए अनेक सवाल खड़े कर गई। चिदंबरम ने भले ही संविधान के अनुच्छेद 21 का सहारा लेकर इस देश के एक नागरिक के नाते अपनी स्वन्त्रता के अधिकार की दुहाई देते हुए इसे अपने “लापता” होने को जायज ठहराने का आधार बनाया हो, लेकिन इस देश के पूर्व वित्तमंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर काबिज होने के नाते उनका यह आचरण अनेक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गया। आखिर सार्वजनिक जीवन जीने वाला एक नेता जिस पर पूरे देश की नज़र है वो देश को अपने इस आचरण से क्या संदेश दे रहा है? आज जिस संविधान की वो बात कर रहे हैं, उसमें विधि के समक्ष देश के सभी नागरिक समान हैं तो क्या किसी आम आदमी को भी किसी अपराधिक मामले में 27 बार अग्रिम जमानत मिलती? शायद इसीलिए कोर्ट ने सरकार से कहा है कि अब समय आ गया है कि प्री अरेस्ट कानून में बदलाव लाकर आर्थिक अपराध के हाई प्रोफाइल मामलों में इसे निष्प्रभावी कर दिया जाए ताकि इसका दुरुपयोग बंद हो। चिदंबरम के वित्तमंत्री रहते हुए उनके द्वारा अपने पद का दुरुपयोग तो जांच का विषय है लेकिन उनका जांच में ही सहयोग नहीं करना अनेक शंकाओं को जन्म दे गया।
दरअसल सवाल तो अनेक हैं।
1,जब कांग्रेस का कहना है कि चिदंबरम का चार्जशीट में नाम ही नहीं है तो सीबीआई गिरफ्तार क्यों करना चाहती है तो सवाल उठता है कि जब चार्जशीट में नाम ही नहीं है तो कांग्रेस चिदंबरम के लिए अग्रिम जमानत क्यों लेना चाहती है?
2,आखिर क्यों उन्हें 27 बार अग्रिम जमानत लेनी पड़ी ?
3, चिदंबरम का कहना है कि उन्हें झूठा फसाया जा रहा है तो यह इल्जाम वो सरकार पर लगा रहे हैं या न्यायालय पर? क्योंकि अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई ना करके गिरफ्तारी का रास्ता न्यायालय ने साफ किया है सरकार ने नहीं। न्यायालय का कहना है कि अपराध की गंभीरता और चिदंबरम द्वारा सीबीआई द्वारा पूछताछ में दिए गए कपटपूर्ण उत्तर उन्हें जमानत देने से रोकते हैं।
4, अगर चिदंबरम के पास छुपाने के लिए कुछ नहीं था तो वे गायब क्यों हुए थे?
5, कांग्रेस जब भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अपने नेता के साथ खड़ी होती है तो क्या बताना चाहती है, यह कि वो भ्रष्टाचार का समर्थन करती है या उसे देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है?
कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि अपने नेता के साथ खड़ा होना और उसे क्लीन चिट देकर उसके “निर्दोष” होने का एकतरफा फैसला सुनाना दो अलग अलग बातें हैं। बेहतर होता कि कांग्रेस देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा जताती और अपने नेता के निर्दोष होने या ना होने का फैसला न्यायालय पर छोड़ती। एक आर्थिक अपराध के मामले को सरकार द्वारा राजनैतिक विद्वेष का मामला बनाकर कांग्रेस खुद मामले का राजनीतिकरण कर रही है यह किसी से छुपा नहीं है। दरअसल देश ने सालों से यही राजनीति देखी है और सालों तक यह राजनीति चली भी है। छोटी मोटी मछलियाँ तो जाल में फंस जाती थीं लेकिन मगरमच्छ के लिए जाल छोटा पड़ ही जाता था। इसी राजनीति को बनाए रखने के लिए ही 2019 के चुनावों में सभी विपक्षी दल महागठबंधन बनाकर केंद्र में गठबंधन सरकार की आस लगाए बैठे थे। लेकिन अब आस देश के आम आदमी की जागी है कि वो दिन पास ही हैं जब कानून की नजर में सब बराबर होंगे। देश को उम्मीद जगी है कि जो भ्रष्टाचार देश की जड़ें खोद रहा था आज खुद उसकी जड़ें खोदी जा रही हैं। ऐसे समय में कानूनी प्रक्रिया का विरोध कहीं कांग्रेस को भारी न पड़ जाए ।
डॉ नीलम महेंद्र
(लेखिका वरिष्ट स्तंभकार हैं )