*तमाशे के गांधी*
चारों ओर गांधी का नाम इन दिनों ऐसे गुंजाया जा रहा है जैसे कभी तमाशे दिखाने वाले सड़क-चौबारों पर डमरू बजाकर अपने खेल दिखाया करते थे। एक पाँव से साईकल चलाकर, आग में से निकलकर, चाकू घौंपकर, अजीबो गरीब हरकतों से खाली कटोरा भर मन ही मन मुदित होते थे। उसी तरह अब कभी चश्मा दिखाकर ,कभी चरखा चलाकर, तो कभी जयंती के बहाने अपने अपने हिस्से का सत्ता सुख उसी तरह बटोरा जा रहा है। यह बताने और जताने की कोशिश की जा रही हैं कि गांधी एक तमाशे से ज्यादा कुछ नहीं है। जबकि गांधी त्याग में है, तमाशे में नहीं। मूल्यों में है, मोल मे नहीं।
अब हत्या करने वाले हाथों के पास नए नए हथियार है। वे उनका उपयोग कर रहे हैं। हमें पता ही नहीं चल रहा हमारे आस पास के ग़ांधी रोज मर रहे हैं। लेकिन गांधी का रक्त बीज पता नहीं कैसे मरने के बावजूद बचा रह जाता है। हर कोशिश असफल हो जाती है, जैसे लाख सफाई के बाद बगीचे में घास फिर फिर उग जाती है। गांधी घास ही थे। घास ही हैं। क्योंकि वे तुच्छ बनकर बड़े संकल्पों के वाहक हैं। गांधी के आदर्शों की यह घास देश, धर्म, जाति, की सरहदें तोड़कर फैल रही है। ये अलग बात है उसकी हरीतिमा जीवन और जहन से बाहर है। यह घास जो आम आदमी बनकर पाँव में बिछी है। माटी से जुड़ी है। ओस की बूंदों से अपनी प्यास बुझा लेती है। लेकिन सत्ता के मुलायम पांव में चुभती है। महलों के दालान की चमक कम करती है। इसलिए इस घास को उखाड़ने से ज्यादा उजाड़ने के रास्ते ईजाद किये जा रहे हैं। खादी पर मखमल की चादरें से हँस रही हैं। पिस्तौल वाले हाथों में पुष्पगुच्छ मुस्कुरा रहे हैं। गाँधी को गायब करने की कोशिश में गांधी और निखरते जा रहे हैं। हर बार गांधी पर रोज वार होता है और गांधी हँसते हुए उसे निस्तेज कर देते हैं। यह एक अंतहीन युद्ध है जो हमारी हमसे आजादी की लड़ाई में बदल चुका है। एक ओर गांधी को पूजने वाले सम्मोहन से सजे वे योद्धा हैं जिनका आभूषण क्रोध, घृणा, हिंसा, असत्य हैं तो दूसरी ओर गांधी को मानने वाले वे पैदल सिपाई हैं जिनके पास केवल सच का हथियार हैं। यह सर्वविदित सच है कि सच कभी नहीं हारता। वह नफरत करने से रोकता है। अंतरात्मा की आवाज सुनाता है। उसके पास हर उस समस्या का समाधान है जो मनुष्यता के विरुद्ध सदियों से खड़ी है।
गांधी सच की तरह सरल है लेकिन सरल को समझना सबसे कठिन है। वे सबके हैं, सबके लिए हैं। या यूं कहें ‘जो गांधी हमें दिखाए जा रहा हैं , वह तमाशे के गांधी हैं। असली गांधी कुछ ओर है,,, श्रृंखला के अगले अंक में उससे भी मिलेंगे।
क्रमशः
*रास बिहारी गौड़*