घर के नहीं मरते तो फौज इकट्ठा होती

राजनीतिक परिदृश्य : खुद का चश्मा खरीदे जनता
अमित टंडन
अजमेर। ये किसी एक सरकार की नही “सरकारों” की विफलता है कि गरीब श्रमिक वर्ग सड़कों पर भटक रहा है। राजनीतिक द्वेष और विरोधी विचारधारा राजनीतिक दलों को एक साथ काम करने में बाधक हो रही है। सबकी अपनी डफली-अपना राग है। सामंजस्य बिठाने में इनके ego आड़े आ रहे होंगे। या श्रेय लेने की होड़ में एक दूसरे की मदद स्वीकारने में खुद को छोटा महसूस कर रहे होंगे। राजस्थान में गहलोत को लगेगा कि मोदी की मदद से काम किया तो उनका नाम हो जाएगा कि भाई देखो कांग्रेस की सरकार होते हुए भी मोदी ने राजस्थान में मदद दी।
इसके उलट मोदी यदि गहलोत के साथ तालमेल बिठा कर काम करेंगे तो उन्हें लगेगा कि भाई राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। कहीं ऐसा न हो कि मदद तो हम करें और सारा श्रेय गहलोत ले जाएं।
बस ये लोग अपनी पिपाड़ी बजा रहे हैं और इन सब मे जनता की पूंगी बज रही है।

वे जो बसें खड़ी हैं UP बॉर्डर पर, उनके अटकने का कारण क्या है? यदि श्रमिक उन बसों से सुरक्षित घर पहुंच गए, तो कांग्रेस की जय जय होगी कि भाई कॉग्रेस ने पहुंचवाया। अच्छी बात है।
मगर अब लड़ाई किस बात की है??
वही श्रेय की।
दोनों सही हैं अपनी जगह।
कांग्रेस मदद कर रही है मजदूरों की, अच्छा काम है, मगर जब केंद ने मजदूर स्पेशल ट्रेन चला दीं तो कांग्रेस एक समकक्ष राहत कार्य अलग से क्यों चला रही है। क्या केंद्र से सामंजस्य बैठा कर मिल जुल कर मजदूरों को घर नही पहुंचाया जा सकता?? पहुंचाया जा सकता है, मगर फिर जनता की नज़र में नम्बर किसके बढ़ेंगे..!! बस ये “उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे” की लड़ाई है।
और दूसरे नज़रिए से देखें तो, UP की BJP सरकार एवं योगी सरकार के अधीन कार्यरत पुलिस क्यों बसों को प्रवेश नही दे रही??? क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके मजदूर अपने राज्य में सकुशल घर लौटने के बाद कांग्रेस की वाह वाही करेंगे कि हमें तो कांग्रेस ने घर पहुंचाया। सीधी बात है कि जनता से घात तो दोनों तरफ से हो रहा है।
कांग्रेस ने मनमर्जी से बसों का इंतजाम करके मजदूर/ जनता के दिलों मे जगह बनाने की रणनीति खेली, तो bjp नेता ने यह कह कर कूटनीतिक आपत्ति दर्ज करा दी कि “बसों को प्रवेश देना उचित नही है, हमसे क्यों नही कहा कांग्रेस ने।”
अब ये अलग झगड़ा है कि उन बसों के नम्बरो को फर्जी बताया जा रहा है, ऑटो के परमिट पर बस का संचालन होना बताया जा रहा है। ये मसाला तो tv न्यूज़ एंकर लोगों के लिए छोड़ देते हैं।
मगर एक सवाल और उठता है मन में- ” जब प्रियंका वाड्रा ने UP में कहा कि योगी सरकार बिजली पानी के बिल माफ करे”, तो विरोधियों का कहना था कि प्रियंका वाड्रा यही सीख राजस्थान की कांग्रेस सरकार को भी तो दें।
तब कुछ कांग्रेसी लोगों का बयान आया कि प्रियंका चूंकि UP कांग्रेस की कप्तान हैं तो वहीं की सोचेंगी। तो सवाल यह है कि फिर वहीं की सोचें, राजस्थान में फंसे मजदूरों के लिए क्यों अपनी तरफ से बसों का इंतजाम करके राजनीति खेल रही हैं? राजस्थान में फंसे मजदूरों की सुध राजस्थान में कांग्रेस के कर्ताधर्ता ले लेंगे।
अब इस पर कांग्रेस कहेगी कि भाई प्रियंका जी राजस्थान में फंसे मजदूरों के माइग्रेशन के लिए हस्तक्षेप इसलिए कर रही हैं, क्योंकि वो मजदूर उत्तर प्रदेश के हैं और प्रियंका उत्तर प्रदेश की कांग्रेस प्रभारी हैं।
अब इस पर फिर सवाल खड़ा होता है। एक तो ये कि यदि प्रियंका अपने तर्कों के साथ मजदूरों को राहत देने का प्रयास कर रही हैं, तो क्या कांग्रेस की ये “तार्किक नीति” उनकी पार्टी में केंद्रीकृत नही है क्या? यदि कांग्रेस में इस नीति पर जनता की मदद करने का प्रवधान है, तो फिर कांग्रेस पूरे देश मे इस तार्किक नीति के तहत मदद की मुहिम क्यों नही चला रही? सिर्फ up के मजदूरों के लिए ही क्यों? फिर एक सवाल ये भी उठेगा कि प्रियंका तो इंडियन कांग्रेस की एक तरह से मालकिन ही हैं, इस परिवार के हिसाब से उनकी पार्टी चल रही है, तो प्रियंका को खुद को क्या जरूरत पड़ गई बसें भेजने की; वो और उनका केंद्रीय नेतृत्व (सोनिया गांधी व राहुल गांधी) यदि राजस्थान की कांग्रेस सरकार को आदेश देते तो गहलोत ये काम करते। मतलब अपनी ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद आदेश देने की जगह प्रियंका द्वारा खुद के स्तर पर बसें भेजना एक राजनीतिक ड्रामा हो गया, मीडिया को स्क्रिप्ट-मसाला मिल गया, और फेसबुकिया भड़ासियों को टाइम पास के लिए मुद्दा मिल गया।
सवाल यह है कि हर बात पर “यूँ होता तो क्या होता, और यूँ होता तो क्या होता” करने वाले एक तरफा सोच के साथ चल रहे सेट मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। यदि “घर के नहीं मरते तो फौज इकट्ठी हो जाती”। इससे बेहतर निष्पक्ष सोचें कि दोनों तरफ से सही क्या हुआ/हो रहा है, अथवा गलत क्या हुआ/हो रहा है। कहने का सीधा सा मतलब है, अब समय आ गया है कि किसी और का दिया चश्मा पहन कर परिदृश्य देखने से अच्छा है कि खुद का चश्मा खरीद लें।

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