*क्या खत्म हो गई शिवसेना के नाम और सिंबल की लड़ाई?*

प्रदीप जैन
चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुटों के बीच खींचतान देखते हुए शिवसेना के नाम और चिन्ह के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है. अब सवाल यह है कि क्या ठाकरे और शिंदे के बीच नाम और सिंबल की लड़ाई थमेगी? मूल शिवसेना का चुनाव चिह्न लंबे समय से धनुष बाण है, जिसपर दोनों ही गुट दावा कर रहे हैं. एक तरफ ठाकरे अपने पिता दिवंगत बाल ठाकरे की विरासत का दावा कर रहे हैं तो दूसरी ओर एकनाथ शिंदे इसे अपना बता रहे हैं.
ल नाम और सिंबल की लड़ाई खत्म होती नजर नहीं आ रही है. चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ अब उद्धव गुट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर ली है. इसे लेकर मातोश्री में बैठक भी होनी है. माना जा रहा है कि अब यह लड़ाई और लंबी चलने वाली है. उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना ने इस फैसले को अन्याय करार दिया है. उनके बेटे आदित्य ठाकरे और शिवसेना के नेता ने भी इसे शिंदे गुट की शर्मनाक हरकत बताया है.
सिंदे गुट ने निर्वाचन आयोग के इस फैसले को सही बताया है. पार्टी के नेता व सासंद प्रतापराव जाधव ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करके शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे की विचारधारा को त्याग दिया है.
एक तरफ जहां उद्धव ठाकरे लगातार दिवंगत बाल ठाकरे के पुत्र होने के चलते अपने गुट को असली ‘शिवसेना’ बता रहे हैं तो वहीं, एकनाथ शिंदे भी पीछे नहीं हट रहे हैं. उन्होंने पहले भी हिंदी लेखक हरिवंशराय बच्चन के एक उद्धरण के साथ एक ट्वीट शेयर किया था, जिसमें कहा गया है- ‘मेरे बेटे, पुत्र होने के कारण मेरा उत्तराधिकारी नहीं होगा, जो मेरा उत्तराधिकारी होगा वह मेरा पुत्र होगा’.
चुनाव आयोग के इस फैसले के बाद अब उद्धव और एकनाथ दोनों में कोई भी गुट इस चुनाव चिन्ह का प्रयोग नहीं कर पाएगा. चुनाव आयोग दोनों ही गुटों को अलग-अलग सिंबल देगा जिस पर उपचुनाव के प्रत्याशी उतारे जाएंगे. चुनाव आयोग ने साफ कहा कि अंधेरी पूर्व में होने वाले उपचुनाव में दोनों गुटों में से किसी को भी शिवसेना का नाम और उसका चुनाव चिन्ह इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है.
चुनाव आयोग ने यह पहली बार नहीं किया है जब सियासी लड़ाई को बढ़ता देख किसी पार्टी के नाम और चिन्ह पर रोक लगाई गई. इससे पहले भी लोक जनशक्ति पार्टी में चाचा-भतीजे के बीच चली लड़ाई में ऐसा ही फैसला सामने आया था. चिराग पासवान और चाचा पशुपति पारस के बीच जारी लड़ाई को देखते हुए तब पार्टी चुनाव चिन्ह को ही अंतिम फैसला आने तक फ्रीज कर दिया था. बिहार विधानसभा उपचुनाव से पहले चुनाव चिन्ह (बंगले) को लेकर चली इस सियासी लड़ाई ने भी खूब सुर्खियां बटौरी थी.

प्रदीप जैन

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