*ओम माथुर*
भ्रष्टाचारी अफसरों और कर्मचारियों के लिए नए साल का इससे बेहतर तोहफा कोई नहीं हो सकता था।अब वो माल भी कमाएंगे और इज्जत भी नहीं गवाएंगे। एसीबी के कार्यवाहक डीजी हेमंत प्रियदर्शीद का आदेश ऐसे भ्रष्टाचारियों को बहुत प्रिय लगेगा। अब किसी रिश्वतखोर को पकड़ने के बाद भी उसका नाम मीडिया में सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। प्रियदर्शी का मानना है कि जब तक आरोपी न्यायालय में दोषसिद्धि नहीं हो जाता,तब तक उसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
मानवाधिकार के नाम पर भ्रष्टाचारियों को बचाने की सरकार की पहल वाकई अद्भुत है।जो व्यक्ति हराम की कमाई कर रहा है, उसका तो मानवाधिकार है। लेकिन जो शोषित व पीडित है और रिश्वत देने पर मजबूर किया जा रहा है, उसके मानवाधिकारों की चिंता सरकार को नहीं है। फिर एसीबी श किसी को भी ट्रैप करने से पहले इस बात की पुष्टि करती है कि रिश्वत मांगी गई है या नहीं। इसके लिए बाकायदा दोनों पक्षों की फोन टैपिंग की जाती है और कई बार तो रिश्वत की राशि में से कुछ राशि देकर इस बात को पुख्ता किया जाता है कि वाकई में रिश्वतखोरी हो रही हैँ। इतना होने के बाद भी क्यों किसी भ्रष्टाचारी के नाम को गुप्त रखा जाए?
पिछले दिनों एसीबी ने जिस तरह राज्य में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्यवाही की थी। उससे लोगों में संदेश गया था कि राजस्थान में सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए वाकई में गंभीर है। लेकिन इस आदेश ने उस गंभीरता पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। चुनावी साल में ऐसा आदेश पहले से ही आपसी क्लेश से डूबती दिख रही कांग्रेस की चुनावी नैया में एक और बड़ा छेद कर देगा। ऐसे में समझदारी इसी में होगी कि गहलोत आदेश को तुरंत रद्द करें और भ्रष्टाचारियों तो समाज के सामने आने दें। वरना चुनाव में लोगों के बीच कांग्रेस नेताओं को जवाब देना भारी पड़ जाएगा। पिछली वसुंधरा सरकार इस मुद्दे पर मुंह की खा चुकी है। इसलिए गहलोत को समय रखते सबक लेना चाहिए।