राजस्थान में कोचिंग संस्थान के छात्र छात्राओं की आत्महत्याऐ और राजनीतिक दल और मीडिया का मौन

आखिर कब तक होती रहेगी आत्महत्याएं ?

आज 9 फरवरी को फिर अखबारों में खबर आई कि शिक्षा नगरी कोटा के ऐलन कोचिंग सेंटर की छात्रा ने चोथी मंजिल की छत से कूद कर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या का दस दिन में यह तीसरा मामला है। आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा ?
अच्छी तथा सुनहरा भविष्य बनाने के लिए राजस्थान के कोचिंग सेंटरों अध्धयन के लिए देशभर के छात्र छात्राएं आते हैं । लेकिन दुःख की बात है कि कोचिंग सेंटरों के छात्र छात्राओं द्वारा आत्महत्या की खबरें लगभग हर सप्ताह सुनने आ रही है।
कोटा में ही कोचिंग सेंटर मे अध्यनरत बच्चे आए दिन आत्महत्या कर रहे हैं।जनता की आवाज उठाने वाले राजनीतिक दलों या मीडिया सब आश्चर्यजनक रूप से मौन है। औसतन हर सप्ताह एक बच्चे की मौत आत्महत्या से हो रही है । प्रति वर्ष सेंकड़ों बच्चे कोचिंग सेंटर के दबाव के चलते आत्महत्या कर रहे हैं।
राजनीतिक दल तथा मीडिया भी इस विषय पर गंभीर विषय चुप्पी कोई इशारा कर रहे हैं।
*किसी हादसे ,एक्सीडेंट या कोरोना, डेंगू जैसी बीमारी से प्रदेश में कोई मौत होती है तो वह प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बड़ी खबर बन जाती है।* जबकि प्रदेश में प्रतिवर्ष सैकड़ों बच्चे कोचिंग संस्थानों के मानसिक दबाव के चलते आत्महत्या को मजबूर हो रहे यह सामान्य खबर बनती है।
कोचिंग संस्थानों ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सबको *विज्ञापन आर्थिक लोभ लालच* देखकर शायद सेट किया हुआ है। यही कारण है कि इन कोचिंग संस्थानों के खिलाफ लिखने की बोलने लिखने की कोई जहमत नहीं उठाता।

सरकार का *आठ घंटे काम का नियम* है। परिजन तथा कोचिंग सेंटर बच्चों पर दबाव देकर *18-20 घंटे पढ़ने को मजबूर* कर रहें हैं। *मानवाधिकार आयोग को इस ओर ध्यान देना चाहिए।*
बाल श्रम कानून के तहत बच्चों से मजदूरी श्रम कराना ग़ैर क़ानूनी है लेकिन ढाई -तीन वर्ष की उम्र में ही अपने मासूमों को स्कूल भेजकर नौनिहालों का बचपन छीनने वाले परिजनों के मामले में कानून की स्थिति स्पष्ट नहीं है।

मानव शरीर के अंग महंगी कीमत पर अवैध तस्करी के माध्यम बिकते हैं। जो लोग मेरे उपरोक्त विचारों से सहमत नहीं,जिनका कहना है आधुनिक प्रतिस्पर्धा के दौर में मोटी तनख्वाह उज्जवल भविष्य वाली नौकरी के लिए बच्चों को मेहनत करानी जरुरी है। बच्चों को धन कमाने की मशीन बनाने की इच्छा रखने वाले परिजनों से मेरा सवाल है क्या वे अपनी या बच्चों की एक आंख एक किडनी या शरीर का कोई भी अंग बेचने के लिए तैयार हो सकतें हैं?
शरीर में दो- दो अंग है मानव शरीर एक अंग से भी जीवन जी सकता है। शायद कोई भी अपना अंग बेचना तो दूर अपने खून के रिश्ते वाले की जान बचाने के लिए भी देने को आसानी से सहमत नहीं होगा।
जो अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए अत्याधिक दबाव देते हैं जिन बच्चों की आंखें कमजोर होकर चश्मा लग जाता है। मस्तिष्क टेंशन का घर बन जाता है शरीर में हार्टअटैक जैसी और भी न जाने कितनी बिमारियों का घर बन जाता है।
केवल धन कमाने की महत्वकांक्षा के लिए अत्याधिक दबाव देना कितना उचित?
हमारे शास्त्रों में कहा है अति सर्वत्र वजर्यते ।

*कोटा के एलेन कोचिंग सहित प्रदेश के विभिन्न कोचिंग संस्थानों के आऐ दिन आत्महत्या करने वाले छात्र-छात्राओं से मेरी सहानुभूति है। लेकिन अपने बच्चों को धन कमाने की मशीन बनाने के इच्छुक माता पिता और परिजनों के बारे में मैं प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर ऐसे परिजनों को सद्बुद्धि प्रदान करें।🙏*

*हीरालाल नाहर पत्रकार*
*9929686902*
9 फरवरी 2023

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