श्रीकृष्ण भी तो अपने क्लोन बनाते थे

आजकल ह्यूमन क्लोनिंग अर्थात मानव प्रतिरूपण की बहुत चर्चा है। यानि किसी भी मानव का प्रतिरूप बनाया जा सकता है। इसकी उपयोगिता और दुरूपयोग पर बहस छिडी हुई है। नैतिकता-अनैतिकता पर सवाल उठ रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि वर्तमान विज्ञान ने ही इसका अविश्कार किया है। हमारी सनातन संस्कृति में भी इसका स्पश्ट उल्लेख है। हिन्दू पौराणिक कथाओं में रक्तबीज एक असुर था, जिसने शुम्भ-निशुम्भ के साथ मिल कर देवी दुर्गा और काली देवी के साथ युद्ध किया। वह एक ऐसा दैत्य था, जिसे भगवान शिव से वरदान प्राप्त था कि जब जब उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरेगी तब तब हर बूंद से एक नया रक्तबीज जन्म ले लेगा, जो बल, शरीर और रूप से मुख्य रक्तबीज के समान ही होगा। यानि रक्त बीज एक तरह का क्लोन था। बस फर्क ये है कि उसके निर्माण की विधा वर्तमान विज्ञान से भिन्न थी। आपने यह भी सुना पढा होगा कि भगवान श्रीकृश्ण एक साथ अनेक गोपियों के साथ रासलीला करते थे तो प्रत्येक गोपी के साथ होते थे। हर गोपी को लगता था कि श्रीकृश्ण उसके साथ हैं। वह क्या था? कहीं वह प्रतिरूपण की विधा तो नहीं? यानि श्रीकृश्ण एक साथ अपने अनेक क्लोन बनाने में समर्थ थे। भगवान श्रीकश्ण का अनेक गोपियों के साथ एक ही समय में अलग अलग रास करना उनकी क्लोनिंग ही तो रही होगी।

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