अज्ञात परिस्थितियों में उप-राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड का नाम इन दिनो सुर्खियों में है। उनको लेकर कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। स्वाभाविक रूप से उनकी अब तक की राजनीतिक यात्रा पर भी चर्चा हो रही है। ज्ञातव्य है कि उनका अजमेर से गहरा संबंध है। उन्होंने 1991 में अजमेर संसदीय सीट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडा था, मगर भाजपा के प्रो. रासासिंह रावत से हार गए। हालांकि वे पेराटूपर की तरह अजमेर आए थे, मगर पूरी ताकत से चुनाव लडा। जीत भी जाते, मगर एक चूक की वजह से पराजित हो गए। अजमेर के लोगों को उस चुनाव का मंजर अच्छी तरह से याद है। कंप्यूटर की माफिक तेजी से दायें-बायें चलती उनकी आंखें बयां करती थीं कि वे बेहद तेज दिमाग हैं। चाल में गजब की फुर्ती थी, जो कि अब भी है। बॉडी लैंग्वेज उनके ऊर्जावान होने का सबूत देती थी। हंसमुख होने के कारण कभी वे बिलकुल विनम्र नजर आते थे तो मुंहफट होने के कारण सख्त होने का अहसास करवाते थे। जब अजमेर में लोकसभा चुनाव लडने को आये स्वर्गीय श्री माणक चंद सोगानी शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष थे। नया बाजार में सोगानी जी के सुपुत्र के दफ्तर में हुई पहली परिचयात्मक बैठक में ही उनका विरोध हो गया, चूंकि उन्हें यहां कोई नहीं जानता था। प्रचार का समय भी बहुत कम था। फिर भी उन्होंने प्रोफेशनल तरीके से चुनाव लड़ते हुए सारे संसाधन झोंक दिए। उन्होंने चुनाव लडने की जो स्टाइल अपनाई, वैसा करते हुए पहले किसी को नहीं देखा गया। टेलीफोन डायरेक्टरी लेकर सुबह छह बजे से आठ बजे तक आम लोगों से वोट देने की अपील करते थे। हालांकि उन्होंने चुनाव बड़ी चतुराई व रणनीति से लड़ा, मगर सारा संचालन अपने साथ लाए दबंगों के जरिए करवाने के कारण स्थानीय कांग्रेसियों को नाराज कर बैठे। वे जीत जाते, मगर स्थानीय कांग्रेस नेताओं को कम गांठा और सारी कमान झुंझुनूं से लाई अपनी टीम के हाथ में ही रखी। यही वजह रही कि स्थानीय छुटभैये उनसे नाराज हो गए और उन्होंने ठीक से काम नहीं किया।
प्रसंगवश बता दें कि उनकी राजनीतिक यात्रा 1989 में झुंझुनूं से जनता दल सांसद के रूप में हुई थी। पहली बार में ही वी पी सिंह सरकार में संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनाए गए। 1991 में जनता दल छोड़ कर कांग्रेस की सदस्यता ले ली। अजमेर से लोकसभा चुनाव लडा। उसके बाद 1993 में अजमेर जिले की किशनगढ़ विधानसभा सीट से कांग्रेस टिकट पर लड़ कर विजयी हुए। 1998 में झुंझुनू से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, मगर तीसरे स्थान पर रहे थे। 2003 में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने पर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। कुछ समय तक सुर्खी से गायब रहे, मगर लोग तब चौंके जब उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया। उसके बाद वे उप-राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए। हाल ही उन्होंने अचानक इस्तीफा दिया तो सब भौंचक्क हैं।
