क्या पारम्परिक परिधान रूढ़ीवाद व पिछड़ेपन की निशानी है?

-रतन सिंह शेखावत- पिछले दिनों फेसबुक पर अपने आपको एक पढ़ी-लिखी, आत्म निर्भर, नौकरी करने, अकेले रहने, आजाद, बिंदास व स्वछंद जिंदगी जीने वाली लड़की होने का दावा करने वाली एक लड़की ने लिखा- “पढाई के दिनों उसकी एक मुस्लिम लड़की सहपाठी थी वो पढने लिखने में होशियार, समझदार, आधुनिक विचारों वाली थी पर जब बुर्के की बात आती तो वह एकदम रुढ़िवादी हो जाती और बुर्के का कट्टरपन तक जाकर समर्थन करती|”

रतन सिंह शेखावत
रतन सिंह शेखावत

मुझे समझ नहीं आ रहा कि यदि वह शिक्षित मुस्लिम बालिका यदि बुर्के को अपना कर अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाए रखना चाहती है तो इसमें किसी और को क्या और क्यों दिक्कत ? हाँ यदि कोई महिला अपनी पारम्परिक पौशाक अपनाना नहीं चाहती और उसे यदि कोई अपनाने के लिए कोई मजबूर करे तब उसका विरोध जायज है और करना भी चाहिये पर अपनी मर्जी से कोई अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाने हेतु पारम्परिक परिधान धारण करना चाहे तो उसका विरोध क्यों ?
एक शिक्षित महिला चाहे वह किसी भी धर्म जाति की हो पारम्परिक पहनावा अपनाती है तो कुछ तो खास होगा उसके उस पारम्परिक पहनावे में| यदि उसमें कुछ खास ना भी हो और किसी को वह पहनावा अच्छा लगता हो तो यह उस महिला का व्यक्तिगत मामला है कि वह क्या अपनाना चाहती है ?
राजस्थान के राजपूत व राजपुरोहित समाज में आज भी महिलाएं अपनी सदियों से चली आ रही पारम्परिक पौशाक को बड़े चाव से पहनती है| यही नहीं राजस्थान की अन्य जातियों की शिक्षित महिलाएं भी इस पारम्परिक ड्रेस को बड़े चाव से अपना रही है और यह पारम्परिक ड्रेस आज बाजार में आधुनिक फैशन पर भारी पड़ती है|
तो क्या ये शिक्षित महिलाएं रुढ़िवादी है ? शिक्षित होने के बावजूद पारम्परिक पौशाक अपनाने के चलते है पिछड़ी है ? आप की या मेरी नजर में कदापि नहीं पर हाँ उपरोक्त कथित पढ़ी-लिखी, आत्मानिर्भर, नौकरी करने, अकेले रहने, आजाद, बिंदास स्वछन्द जिंदगी जीने वाली लड़की होने का दावा करने वाली लड़कियों की नजर में ये रुढ़िवादी या पिछड़ी हुई ही है!!
क्योंकि इनकी नजर में शायद पाश्चात्य परिधान अपनाते हुए अधनंगा बदन दिखाते हुए घूमना आधुनिकता की निशानी है, शरीर पर छोटे छोटे परिधान पहन देह प्रदर्शन करते हुए सार्वजनिक स्थानों पर अपने पुरुष मित्रों के साथ अश्लील हरकतें करना ही आधुनिकता का पैमाना है और शिक्षित होने बावजूद अपनी संस्कृति को बचाए रखने, अपनी अच्छी परम्पराओं को बचाये रखने वाली लड़कियां व महिलाएं रुढ़िवादी है, पिछड़ी हुई है|
काश अपने आपको आधुनिक कहने वाले कथित लोग लोगों के परिधान देखकर उनके प्रति कोई धारणा बनाये जाने की जगह व्यक्ति की सोच, समझ, ज्ञान देख समझकर अपनी धारणा बनाये| मुझे अपनी पारम्परिक पौशाक धोती कुर्ता व पगड़ी पसंद है और कई मौकों पर मैं इसे अपनाता भी हूँ तो क्या उस दिन इन्हें पहनने के बाद मेरा अब तक अर्जित ज्ञान कम या ख़त्म हो जायेगा ? क्या उस दिन मेरी सोच बदल कर रुढ़िवादी हो जायेगी ?

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