-चन्द्र प्रकाश शर्मा- झुग्गी झोपडी बस्तिओं, पुनर्वास बस्तिओं जिनके पास राशन कार्ड, वोटर कार्ड तक नहीं है, कोई पहचान पत्र नहीं, कोई सथाई आवास प्रमाण पत्र नहीं वे सभी लोग अपने विधायक से फार्म साइन करवाकर स्मार्ट कार्ड बनवा रहे हैं यानि कोई भी बिना किसी प्रमाण के आधार कार्ड बनवा सकता है. क्या पहले से मोजूद राशनकार्ड, कालेज-दफ्तर का पहचान पत्र, पासपोर्ट, पैनकार्ड और वोटर कार्ड कम थे जो अब इस नए आधार कार्ड की जरुरत पड़ गई. आखिर कोई बताएगा कि इस कार्ड से वो कोनसा फायेदा होगा जो पहले वाले मोजुदा कार्ड से नहीं होगा. क्या सरकार बताएगी कि इस कार्ड के बनने से गरीबों तक सभी योजनायें पहुँच जायेंगी. क्या भ्रष्टाचार ख़तम हो जायेगा. UIDAI ने इस काम के लिये तीन कम्पनिओं को चुना है असेंचर, महिंद्रा सत्यम मोर्फो, और एल-1 identity सोलुशन कम्पनी. एल-१ identity सोलुशन कम्पनी के टॉप प्रबंधन में ऐसे लोग हैं जिनका अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए और दुसरे सैनिक संगठनो से रिश्ता रहा है. यह कम्पनी अमरीका की सबसे बड़ी डिफेंस कम्पनिओं में से एक है जो 25 देशों में फेस डिटेक्शन और इलेक्ट्रोनिक पासपोर्ट आदि जैसी चीजों को बेचती है. अमरीका के होमलैंड सेकुरिटी डिपार्टमेंट और US स्टेट डिपार्टमेंट के सारे काम इस कम्पनी के पास हैं. ये पासपोर्ट से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस तक बनाकर देती है. सीआईए के जार्ज टेनेट जो सीआईए के डाइरेक्टर रह चुके हैं और उन्होंने इराक के खिलाफ झूठे सबूत इकठे किये थे कि उसके पास महाविनाश के हथियार हैं. उनको इस कम्पनी में शामिल किया गया था. यह जानकारी इस कम्पनी के सीईओ ने 2006 में दी थी. इन कम्पनिओं में किसी का रिश्ता अमरीका कि आर्मी टेक्नोलोजी साइंस बोर्ड, आर्म्ड फ़ोर्स क्मुनिकेशन एंड इलेक्ट्रोनिक असोसिअशन, आर्मी नॅशनल साइंस सेंटर advaisary बोर्ड और ट्रांसपोर्ट सेकुरिटी जैसे संगठनो से रहा है. अब सवाल ये है कि सरकार इस तरह कि कम्पनिओं को भारत के लोगों कि सारी जानकारी देकर क्या करना चाहती है. एक तो ये कम्पनिया पैसा कमायेंगी और साथ ही पूरे तंत्र पर इनका कब्ज़ा होगा. इस कार्ड के बनने के बाद भारत की जान्कारिओं का क्या क्या दुरूपयोग हो सकता है यह सोच कर ही कलेजा कांप उठता है. इस कार्ड को पढने वाली मशीन भी ये कम्पनिया बनायेंगी सारा डाटाबेस इनके पास होगा जिसका ये मनचाहा इस्तेमाल कर सकेंगी. इस कार्ड को बनाने में हाई लेवल बायोमैट्रिक और इन्फोर्मशन टेक्नोलोजी का इस्तेमाल होगा. इससे नागरिको की प्राइवेसी का हनन होगा इस लिये दुनिया के विकसित देशों में इस कार्ड का विरोध हो रहा है. जर्मनी, अमरीका और हंगरी ने अपने कदम पीछे खिंच लिये हैं. इंडो ग्लोबल सोशल सोसाइटी ने कई गड़बडियो और सुरक्षा के सवाल उठा दिए हैं. इंग्लॅण्ड में यह योजना आठ साल चली. करीब 250 मिलियन पौंड खर्च किये गए. हाल ही में इसे बंद कर दिया गए. इंग्लॅण्ड की सरकार को असलियत जल्दी ही समझ आ गई और उसके 800 मिलियन पौंड बच गए. करीब सो साल पहले महत्मा गाँधी ने अपना पहला सत्याग्रह दक्षिण अफ्रीका में किया. 22 अगस्त 1906 को दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने एशियाटिक ला अमेंडमेंट लागू किया इसके तहत ट्रांसवाल इलाके के सारे भारतीयों को रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर अपने फिंगर प्रिंट्स देने थे, जिससे उनका परिचय पत्र बनना था जिसे हर समय अपने पास रखने की हिदायत दी गई थी.ना रखने पर सजा भी तय कर दी थी. गाँधी जी ने इसे काला कानून बताया. जोहान्सबर्ग में तीन हज़ार भारतीओं को साथ लेकर उन्होंने मार्च किया. अगर आज गाँधी जी होते तो जरुर UID का विरोध करते.

आधार के चीफ नंदन निलकनी ने खुद ही नेल्सन कम्पनी के कन्जूमर 360 के कार्यकरम के दौरान उन्होंने बताया की भारत के एक तिहाई कन्जूमर बैंकिंग और सामाजिक सेवा की पहुँच से बाहर हैं ये लोग गरीब हैं इस लिये खुद बाज़ार तक नहीं पहुँच सकते . पहचान नंबर मिलते ही मोबाइल फ़ोन के जरिये इन तक पहुंचा जा सकता है. इसी कार्यक्रम में नेल्सन कम्पनी के चेयर मेन ने कहा की UID सिस्टम से कम्पनिओं का फायेदा पहुंचेगा. एक ना एक दिन ये अभियान भी फ्लाप होगा और तब तक इस परियोजना पर देश का कई हज़ार करोड़ रूपए खर्च हो चुके होंगे.