इसमें कोई दोराय नहीं कि महेन्द्र सिंह रलावता को शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कुछ वरिष्ठ नेताओं का एक गुट नाराज चल रहा था, मगर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सचिन पायलट के दुबारा अजमेर से ही चुनाव लडऩे पर उसमें से अधिसंख्य नेता उनके साथ आ गए हैं। बेशक इसके लिए सचिन के चुनाव मैनेजरों को खासी मशक्कत करनी पड़ी है।
सचिन के नामांकन पत्र भरने के दौरान पूर्व शहर अध्यक्ष जसराज जयपाल, डॉ. राजकुमार जयपाल, डॉ. श्रीगोपाल बोहती, कुलदीप कपूर, डॉ. सुरेश गर्ग आदि की मौजूदगी दर्शाती है कि वे फिर मुख्य धारा में लौट आए हैं। बताया ये भी जाता रहा है कि पूर्व विधायक त्रय श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ, महेन्द्र सिंह गुर्जर व नाथूराम सिनोदिया की भी कुछ नाइत्तफाकी रही है, मगर वे भी इस दौरान मौजूद रहे। इतना ही नहीं पूर्व विधायक डॉ. के. सी. चौधरी ने भी आ कर मोर्चा संभाल लिया है।
खैर, सचिन के नामांकन के दौरान अनुपस्थित रहे तो मौटे तौर पर पूर्व उप मंत्री ललित भाटी,पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां व अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी। इनमें चौधरी तो पहले ही मसूदा में विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़ कर कट चुके हैं। इसके अतिरिक्त सचिन की खिलाफत करते हुए उन्होंने भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट का साथ देने का ऐलान कर दिया है। आपको जानकारी होगी कि 1998 की कांग्रेस लहर में सिंगारिया ने केकड़ी सुरक्षित सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद 2003 में वे भाजपा प्रत्याशी गोपाल लाल धोबी से चुनाव हारे। जब 2008 में केकड़ी सीट सामान्य हो गई तो कांग्रेस ने रघु शर्मा को टिकट दे दिया। इस पर सिंगारिया बागी बन कर खड़े हो गए, मगर शर्मा फिर भी जीत गए। उस चुनाव में सिंगारियां ने 22 हजार 123 वोट हासिल कर यह जता दिया कि उनकी इलाके में व्यक्तिगत पकड़ है। हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में रघु शर्मा फिर से मैदान में आए तो सिंगारिया एनसीपी के टिकट पर खड़े हो गए और 17 हजार 500 मत हासिल शर्मा की हार का कारण प्रमुख कारण बने। बात अगर ललित भाटी की करें तो वे साथ तो सचिन के ही थे, मगर आखिरी दौर में कुछ कारणों से छिटक गए। उनके भाई हेमंत भाटी को अजमेर दक्षिण का टिकट दिलवाए जाने के बाद उनकी दूरी और बढ़ गई। हालांकि नामांकन के दौरान उनकी प्रमुख सहयोगी महिला कांग्रेस नेत्री प्रमिला कौशिक की मौजूदगी इसका अहसास कराती है कि रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं।
आपको याद होगा कि 208 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बगावत करने वाले ललित भाटी को पिछले लोकसभा चुनाव में सचिन काफी मान-मनुहार से वापस लाए थे। उसका सकारात्मक परिणाम ये रहा कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में जो 19 हजार 306 मतों की बढ़त मिली थी, वह तो सिमटी ही, उलटा 2 हजार 157 वोटों से भाजपा और पिछड़ गई। भाटी लंबे समय से सचिन के नजदीक ही माने जाते रहे, मगर आखिरी दिनों दूर हो गए।
-तेजवानी गिरधर