अजमेर। स्वैच्छिक रक्तदान के महत्व व प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से जवाहरलाल नेहरू मेडिकल काॅलेज के सेमीनार हाॅल में जिला स्तरीय मीडिया व महाविद्यालय प्रतिनिधि कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में स्वैच्छिक रक्तदान समाज की सबसे बडी सेवा बताते हुए, आमजन में रक्तदान को लेकर प्रचलित भ्रम को दूर करने आवश्यकता बताई गई।
राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस कार्यक्रमों के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यशाला के उद्घाटन सत्रा को संबोधित करते हुए अतिरिक्त प्राचार्य डाॅ. जी.जी. कौशिक ने कहा कि आमजन में रक्तदान को लेकर कई तरह की भ्रांतियां व्याप्त है जिसके कारण लोग रक्तदान करने से कतराते है। किसी भी मनुष्य की मृत्यु रक्त की कमी से ना हो इसके लिए आवश्यक है कि लोगों में स्वैच्छिक रक्तदान की प्रवृत्ति का विकास किया जाए। उन्होंने कहा कि रक्तदान मानवमात्रा की सबसे बडी सेवा है, रक्तदान को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर सभी को समाज की सेवा के पुनीत कार्य में योगदान करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि स्वैच्छिक रक्तदान के महत्व के बारे में आमजन को जागरूक करने में मीडिया व युवा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। लोगों को प्रचार-प्रसार के माध्यम से यह जानकारी देने की आवश्यकता है कि रक्तदान से कमजोरी नही आती है और ना ही कोई रोग होता है। स्वस्थ शरीर रक्तदान के बाद हुई कमी की पूर्ति 24 घंटो मे ही कर लेता है, वहीं रक्तदान खून में कोलेस्ट्राॅल को बढने से भी रोकता है।
डाॅ. प्रियंका ने स्लाईड प्रजेेंटेशन के माध्यम से रक्तदाता का चयन एव रक्त संग्रहण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि हमारे शरीर में कुल 5 से 6 लीटर रक्त होता है वहीं 450 मिलीलीटर रक्त से 4 लोगों की जान बचाई जा सकती है। विकसित देशों में स्वैच्छिक रक्तदान का प्रतिशत काफी उच्च है लेकिन हमारे देश में मात्रा 4 प्रतिशत लोग ही रक्तदान करते है। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी पुरूष व महिला जिसकी आयु 18 से 60 वर्ष के बीच हो, जिसका वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो, जिसे क्षय रोग, रति रोग, पीलिया, मलेरिया, मोतीझरा, एड्स रोग ना हो, जिसने पिछले तीन महिने मेें रक्तदान ना किया हो एवं जिसने कुछ दिनों में भारी एन्टीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल ना किया हो रक्तदान कर सकते है। डाॅ. आस्था शर्मा ने स्टोरेज आॅफ डाॅनर ब्लड, प्रोसेसिंग व संरक्षण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि किसी भी रक्तदाता के रक्त को आधुनिक मशीनों के माध्यम से 35 से 40 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि रक्त के लाल कणों का जीवन सिर्फ 90 से 120 दिन तक का होता है, प्रतिदिन हमारे शरीर में पुराने रक्त का समाप्त होता रहता है और नया रक्त बनता रहता है। ऐसे में रक्तदान करने से कोई नुकसान नही हैं क्योंकि शरीर पुनः रक्त की पूर्ति हो जाती है।
सहायक प्रभारी ब्लड बैंक जेएलएन अस्पताल डाॅ. कल्पना शर्मा ने स्वैच्छिक रक्तदान कैम्प की योजना, प्रबंधन व लाभ की जानकारी देते हुए कहा कि रक्तदान को आदत बनाने की आवश्यकता है जिससे रक्त की कमी से किसी की मृत्यु ना हो। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष में तीन बार रक्तदान करना चाहिए, इससे मिलने वाले आत्मसंतोष को शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता ह। रक्तदान किसी भी लाइसेंस युक्त ब्लड बैंक में किया जा सकता है। कार्यशाला में डाॅ. मनीषा जैन, डाॅ. सोनिया सनाढ्य, डाॅ. दीपाली जैन ने भी स्वैच्छिक रक्तदान पर स्लाईड प्रजेंटेशन प्रस्तुत किया। इससे पूर्व ब्लड बैंक प्रभारी डाॅ. वंदना पोरवाल ने कार्यशाल में स्वागत उद्बोधन देते हुए स्वैच्छिक रक्तदान की महत्ता बताई। इस अवसर पर डाॅ. वीना कासलीवाल, डाॅ. कुसुम हेडा, महाविद्यालयों के प्रतिनिधि, मीडियाकर्मी एवं गणमान्य नागरिक मौजूद थे।