नूर के नाड़े से मिलेगा प्राणियों को जल

अजमेर 17 अप्रेल। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति के द्वारा प्रदत्त दूरस्थ स्त्रोतों से करने के लिए विज्ञान का सहारा ले लेता है। लेकिन पशु पक्षी प्रकृति पर ही पूर्ण रूपेण निर्भर होने के कारण अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संचय नहीं करते। श्रीनगर पंचायत समिति के सबसे बड़े ग्राम रामसर के निवासियों को पीने का पानी बीसलपुर परियोजना से प्राप्त हो जाता है। पीने के पानी के लिए यत्रा-तत्रा भटकना पशु पक्षियों की नियति बन गया था। बीसलपुर के मीठे पानी के स्थान पर जानवरों तथा पशु पक्षियों को स्थानीय खारे तथा तैलीय पानी से अपनी प्यास बुझानी पड़ती थी।
रामसर के ग्रामीणों ने जब मुख्यमंत्राी जल स्वावलबन अभियान के बारे में विभिन्न प्रचार माध्यमों के द्वारा सुना तो कुछ दयावान व्यक्तियों का ध्यान मूक प्राणियों को वर्षभर पानी उपलब्ध करवाने वाले जल स्त्रोत के निर्माण करने की तरफ गया। उन्होंने विचार विमर्श के पश्चात् नूर का नाड़ा की खुदाई का कार्य अंजाम देने का निश्चय किया। ग्राम सभा द्वारा इसकी कार्ययोजना बनाकर जिला स्तर पर भेज दी गई। नूर का नाड़ा झाड़-झंखाड़ से भरा हुआ था। समय की गर्द चढ़ने से नाड़े में भरपुर मिट्टी भर गई थी और यह अपने अस्तित्व का बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था।
नूर के नाड़े की खुदाई के लिए स्थानीय विधायक, श्रीनगर प्रधान, सरपंच तथा वार्डपंचों की अगुवाई में ग्रामीणों ने उत्साह के साथ खुदाई शुरू कर दी। सबने मिलकर अपने औजारों का उपयोग कर नूर के नाड़े का खोया हुआ नूर पुनः लौटाने के लिए कमर बांध ली। शुरूआत झाडि़यों को हटाने के साथ की गई। उसके पश्चात् मिट्टी को हटाने का काम हाथ में लिया गया। ग्रामीणों ने छोटे-छोटे समूह बनाकर कार्य किया। कुछ ही समय में दूर से देखने पर एक गड्डा नाड़े का रूप लेता हुआ नजर आने लगा। अब यह नाड़ा बारिश का इंतजार कर रहा है ताकि अपने में समेटे जल से चरागाह में चरने वाले जानवरों को वर्ष पर्यन्त अमृत पिलाकर प्राणियों के गलों को तर कर सके। नूर के नाड़े का नूर कयामत तक बना रहे। आमीन।

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