प्रार्थना का लक्ष्य पदार्थ नही परमात्मा पाना हैं – प्रमाण सागर

अजमेर 27 सितम्बर: प्रार्थना क्या हैं ? प्रार्थना हमारे जीवन को उत्कर्षता तक पहॅुंचा दे, अपने इष्ट के चरणों में समर्पित होना ही प्रार्थना हैं। प्रार्थना से एक व्यक्ति पदार्थो को चाहता हैं अर्थात भगवान से अपने सुख भोगों के पदार्थो की मांग करता है, और एक व्यक्ति प्रार्थना में कहता है कि हे भगवान मेरे दुःखों का क्षय हो, कर्मो का क्षय हो, बोधी की प्राप्ति हो, जब तक मुझे मोक्ष की प्राप्ति न हो तब तक आपके चरण कमल मेरे हृदय में विराजमान हो और मेरा हृदय आपके चरण कमल में विराजमान हो जाए अर्थात परमात्मा को मांगता है।

प्रार्थना कब करनी चाहिए ? मुनिराज कहते है कि सर्वप्रथम सुबह उठते ही सबसे पहले भगवान की प्रार्थना करनी चाहिए कहना चाहिए की हे भगवान मुझे ऐसी शक्ति, बुद्धि देना कि अपना और दूसरो का भला कर सकूूंॅ। किसी का दिल न दुखाऊ, मै आज का दिन अच्छा बना सकूॅं।

प्रार्थना कहां करनी हैं ? प्रार्थना भगवान के मंदिर में जाकर करनी चाहिए? बच्चे स्कूल में जाते है तो प्रार्थना होती है। दुकानदार दुकान पर जाता है तो सबसे पहले भगवान की प्रार्थना करता है। अधिकारी/कर्मचारी अपनी नौकरी पर जाते है तो जाते ही भगवान की प्रार्थना करते हैं प्रार्थना भारतीय की सभ्यता, संस्कृति को दर्शाता है।

प्रार्थना से क्या होता हैं? प्रार्थना से परिर्माजन होता है, परिवर्तन होता हैं। यदि धार्मिक क्रियाएं सही तरीके से की जावे तो अधिकांश कठिनाईयां स्वतः ही समाप्त हो जाती है या उनका समाधान निकल आता हैं। प्रार्थना से तनाव वाले सभी हॉरमौन्स निष्क्रिय हो जाते हैं जिससे तनाव से लडने की क्षमता भी बढ जाती है और तनाव मुक्त हो जाते है। मुनिश्री ने कहा कि आप जब भी तनाव, क्रोध में हो तो प्रार्थना शुरू कर देना पलभर में तनाव, क्रोध दूर हो जाएगा। जब कभी आप बैचेन हो, व्याकुल हो तो तुरंत भगवान की प्रार्थना शुरू कर देना जैसे उफनते दूध में पानी के डालने पर दूध शांत हो जाता है उसी प्रकार मन में उठे तूफांन को शांत करने के लिए प्रार्थना जरूरी हैं। प्रार्थना से नकारात्मकता शांत होती है। मन शांत होता है।
प्रार्थना करों याचना नही, भावना भाओं याचना नही, परमात्मा के प्रति प्रेम रखों। प्रेमी को भगवान अपने गले लगाते हैं और सब कुछ दे देते हैं और याचकों को कुछ भी नही मिलता हैं कहते हैं ‘ बिन मागें मोती मिले मांगे मिले न भीख ‘ अतः अपने अंतर्मन से प्रार्थना करो आपके जीवन में उत्साह बढेगा। प्रार्थना करने वालों के जीवन में अमृत धुल जाता है। आजकल तो डाक्टर भी कहते है कि दवा और दुआ दोनों काम करती है।
जर्मन में एक महिला ने शोध कि प्रतिदिन भक्तामर स्त्रोत करने कैंसर जैसी भंयकर बिमारी को ठीक करनें में भी सहयोग मिला है। प्रार्थना में सबसे बडा भाग श्रद्धा का होता है। श्रृद्धा के बिना कुछ भी नही है।

सह प्रवक्ता दिनेश सेठी ने बताया कि आज की धर्म सभा का शुभारंभ श्रीमति शांता देवी एंव श्रीमति रूची जैन कन्नौज के मगलाचरण से प्रांरभ की गई। तत्पश्चात् मांगलिक क्रियाएं सम्पन्न कराने का सौभाग्य श्री दुल्ली चंद, अरूण कुमार, सुनिल कुमार, राजकुमार गोधा अजमेर द्वारा किया गया। समिति के ओर से प्रदीप पाटनी, पुनित साहुलरा, अंकित पाटनी व श्रीमति सूर्यकांता सेठी द्वारा आगंन्तुको का स्वागत एंव अभिनन्दन किया गया। समिति के अजय दनगसिया, केलेन्द्र पुनविया, अंकित पाटनी, प्रदीप पाटनी, ज्ञानचंद गदिया एंव सुनिल ढिलवारी, पारसमल बाकलीबाल, मोहन जैन विदिशा, अतुल सहित समस्त जैन समाज उपस्थित थी।
सह प्रवक्ता केलेन्द्र पुनविया ने बताया कि परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पावन चरण अजमेर आगमन एंव सर्व विध्नोपद्रव निवारणार्थ महामंत्र णमोकार का कोटि जाप्यानुष्ठान दिनांक 1 अक्टूबर से 8 अक्टूबर तक आयोजित किया जावेगा जिसकी पत्रिका का विमोचन धर्म प्रभावना समिति (महिला प्रकोष्ठ), द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में 2000 श्रृद्धालुओं के भाग लेने की संभावना हैं । कल प्रात 6.15 बजे श्रीजी के अभिषेक, शांतिधारा एंव पूजन 7.00 बजे जैन तत्व विद्या की कक्षा, 8.15 बजे से मुनि के मंगल प्रवचन दोपहर 3.00 बजे स्वाध्याय एंव सां 6.15 बजे शंका समाधान का कार्यक्रम आयोजित कियेे जावेगे। शंका समाधान का सीधा प्रसारण जीनवाणी चैनल पर किया जाता है।

कहानी – एक गांव में एक परिवार रहता था उसके एक ही बेटा था उसे पढने का बहुत ही शौक था और गांव में स्कूल नही होने के कारण उसे दूसरे गांव के स्कूल में पढने को भेजने का मानस बनाया लेकिन दूसरे गांव जाने के लिए बीच में जंगल पडता था इसलिए बच्चा डर रहा था। बच्चे की मां ने बच्चे को समझाया देख जब भी जंगल आये तो जंगल में तेरा भाई है उसका नाम अरिंहत हैं तू उसे आवाज लगा लेना वह तुझे जंगल पार करा देगा लेकिन ध्यान रखना वह तुझे दिखेगा नही वह तुझे अहसास होगा। बच्चा समझ गया कि कोई तो मुझे जंगल पार करा देगा। वह स्कुल के लिए रवाना हुआ जैसे ही जंगल आया बच्चा डर के कारण ठहर गया फिर उसे अपनी मां की बात याद आई उसने तुरंत अरिहंत भैया आवाज लगाई उसे लगा कि कोई उसके पास आ गया और उसने जंगल पार करा दिया, इस प्रकार रोज का नियम हो गया बच्चा जंगल पार कर रोज स्कूल जाने लगा। एक दिन स्कूल में कोई कार्यक्रम था उसमें बच्चे ने भाग लिया और कार्यक्रम समाप्त होते होते रात हो गई। स्कूल के अध्यापक ने उससे कहा कि अब तुम रात को यही रूक जाओं और सुबह चले जाना अकेले कैसे जाओगें। बच्चे ने कहा मै अकेला नही हूॅं मैं अपने अरिहंत भैया को बुला लेता है और वह मुझे जंगल पार करा देते है, मेरे भैया मेरा इंतजार कर रहे होगें। सबको आर्श्चय हुआ कि इसका कोई भी भाई नही है फिर यह अरिहंत भैया कौन है ? अध्यापक ने बच्चे से उसके भाई के बारे में पूछा तो बच्चे ने सारी कहानी बता दी अब तो अध्यापको को विश्वास नही हुआ और कहने लगें कि चलो हम भी तुम्हारे साथ चलते हैं फिर क्या था सभी चल दिये जैसे ही जंगल शुरू हुआ बच्चे को लगा कि उसके भैया उसके साथ आ गये और वह निडर चलने लगा बाकि सभी डर रहे थें कि उसके भैया कहा है कब आयेगें उन्होने बच्चे से पूछा तो उसने कहा भैया मेेरे साथ चल रहे हैं और सभी को डर लगा रहा था और डर से सभी पुनः स्कूल चले गये और वह बच्चा अकेले निडर से जंगल पार कर गया। अरिहंत भैया कोई भी नही थे सिर्फ की श्रृद्धा थी कि उसका अरिहंत भैया उसके साथ हैं । ऐसी होनी चाहिए श्रृद्धा भगवान के प्रति।
दिनेश सेठी,
सह-प्रवक्ता, 9829122270

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