विडंबना

Rajam Natarajanजंजीर नहीं बांधती

कड़ी टूटती है!

फूल नहीं झरते,

मिट्टी बिसूरती है!

मीनार नहीं टूटी

बुनियाद हिलती है!

माँ-बाप अनाथ नहीं होते,

वृद्धश्रम में जगह तय हो जाती है!

-डॉ. राजम पिल्लै
09820229565

सिंधी अनुवाद

देवी नागरानी
देवी नागरानी

ज़ंजीर नथी बधे

कड़ी टुटंदी आहे

गुल न छणन्दा आहिन

मिट्टी गुत्त्जी वेंदी आहे

मीनारो न टुटो

बुनियाद लुडी आहे !

माउ-पीऊ अनाथ न थींदा आहिन

वृद्धाश्रम में जगहि दर्ज थी वेंदी आहे।

-देवी नागरानी

1 thought on “विडंबना”

  1. वाकई आज यही हालत हो गयी है पाश्चात्य संस्कृति ने हमें बिलकुल गर्त में पहुंचा दिया है उसी का यह असर है

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