नवाज़ की आमद हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग की वैचारिक दोस्ती की दलील

nawaz sharif-मो. आमिर अंसारी- यह भी आज़ाद हिन्दुस्तान में पहली बार हुआ होगा की पडोसी देश पाकिस्तान का प्रधानमंत्री जब किसी भारतीय सरकार को बनते हुए देख रहा था! मोदी ने नवाज़ शरीफ को सरबजीत और शहीद हेमराज के परिवार की अनदेखी कर क्यों दावतनामा भेजकर बुलवा लिया इसकी जड़ में जायेंगे तो पाएंगे कि मो.अली जिन्ना की मुस्लिम लीग और विनायक दामोदर सावरकर की हिन्दूमहासभा की सन १९४३ में अँगरेज़ की कृपा दृष्टी से आज के पाकिस्तान  में मौजूद सिंध प्रांत में बनी संयुक्त सरकार ही वह खमीर है जिसकी रोटी को सेंकने के लिए अटल बिहारी बाजपेयी ने आगरा में एक बकरी के नवजात बच्चे को पाक राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ के सामने परोसा था फिर इसी खमीर को नए सिरे से गूंदने का काम उन लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना के मज़ार पर नतमस्तक हो कर करा था जिनका खूनी रथ ९० के दशक में देश के कमज़ोरों के खून से लाल हो गया था !और आज फिर उसी रोटी को गर्म करने का प्रयास उस मोदी ने सत्ता में आते ही किया है जिस मोदी की दौर ए हुकूमत में एक गर्भवती माँ के पेट को चीर कर उसके भ्रूण को आग में भून दिया गया था !
जिस प्रकार हिन्दुस्तान के बंटवारे से पहले इस बंटवारे के मंसूबे के खिलाफ एक मज़बूत आवाज़ तत्कालीन सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री शहीद अल्लाहबख़्श की थी और १४ मई १९४३ को उनकी हत्या कर मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने मिलकर सिंध प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया था इसी प्रकार मौजूदा हिन्दुस्तान में जब हिन्दू-मुस्लिम समाज को बांटने का मंसूबा लेकर देश के दो मुख्य सियासी दल मसरूफ थे तब एक बार फिर एक और अल्लाहबख़्श मो.आज़म खान की शक्ल में हिन्दुस्तानी सियासत में नमूदार हो गया ! और इसने कारगिल विजय में मुस्लिम सैनिकों की अहम भूमिका का तज़किरा कर हिन्दू-मुस्लिम यकजहती और हुब्बुलवतनी का नया अलख जगाया चूंकि १९४३ में अँगरेज़ हुक्मरानों की हुकूमत थी इसीलिये अल्लाहबख़्श की ज़बान उनकी हत्या कर बंद की गयी थी और जिन्ना तथा सावरकार जैसे अतिवादी विचारधारा के लोग सिंध प्रांत पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो गए थे लेकिन जब मो.आज़म खान ने मुल्क की खुशहाली के लिए अपनी आवाज़ को बुलंद किया तब जम्हूरियत का हुस्न अपने शबाब पर था ! शायद इसीलिये आज़म खान की आवाज़ को बंद करने के लिए उनकी तेजस्वी और तार्किक ज़ुबान को ही कैद कर लिया गया और इस आवाज़ को बंद करने के लिए कल की हिन्दूमहासभा और मुस्लिम लीग की जगह आज की भाजपा और कांग्रेस थे ! और आज़म खान की जुबां बंदी के चलते नतीजे भी वैसे ही आये जैसे अल्लाहबख़्श जैसे देश प्रेमी की हत्या के पश्चात सिंध प्रांत में दो अतिवादी सोचों की संयुक्त सरकार के रूप में आये थे !
इस सबसे इतर मोदी का वह रूप जीत के बाद पाक के प्रति नरम रुख का था जिसने संभवतः स्वयं भाजपा और संघ को चिंता में डाल दिया होगा और वक़्त की नज़ाक़त को भांपते हुए वह विश्व हिन्दू परीषद जो कहती थी कि ” कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे ” आज कह रही है कि राम मंदिर से पहले गंगा को शुद्ध किया जायेगा मोदी का पाकिस्तान के प्रति नरम रुख और वी.एच.पी. का गंगा को शुद्ध करने की बात दरअसल इनकी स्वयं की सोच नहीं हैं यह सोच तो मुलायम सिंह यादव और उनके सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम की है चूंकि जिन दो मुद्दो को भाजपा ने अपने हाथ में लिया है इन मुद्दों पर सड़क से संसद सपा ने एक बड़ी बहस खड़ी कर रखी थी मुलायम सिंह यादव कहते थे कि पाकिस्तान हमारा स्वभाविक पडोसी देश है ! हमें चीन से दूरी बना कर पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए यह देश की तरक्की शांती और आर्थिक सामजिक विकास के लिए ज़रूरी है !
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१६ मई २०१४ को जब भारतीय राजनीत ने एक नयी करवट बदली तब तमाम राजनैतिक समझ रखने वाले लोगों की उँगलियाँ दांतों तले चली गयी चूंकि नरेंद्र मोदी की कयादत में भाजपा आज़ादी के बाद पहली बार अपने बूते पर पूर्ण बहुमत की सरकार देश में स्थापित करने में कामयाब हुई थी !
इस सरकार की भविष्य की नीतियों के बारे में सोच कर सबसे ज़्यादा चिंतित वह धर्मनिरपेक्ष समाज है जिसने भ्रष्टाचार,कुशासन और कमज़ोर आर्थिक एवं विदेशी नीति के कारण दस सालों तक सत्ता का मज़ा चखने वाली तथाकथित धर्मनिरपेक्ष जमात कांग्रेस को अपने गुस्से का शिकार तो बना लिया लेकिन अब जब मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बन गयी है तब इसी समाज की चिंताएं उसके माथे पर शिकन के रूप में दिखाई देने लगी है !
मोदी ने जिस तरह अपने नेतृत्व में लड़ी गयी जंग की जीत से सबको आश्चार्यचकित किया उसी तरह उनके सोच में भी सत्ता के सिंहासन पर बैठते ही परिवर्तन शुरू हो गया कल तक मुस्लिम टोपी पहनने से इंकार करने वाले मोदी अपनी ताजपोशी से पहले मुस्लिम धर्म गुरुओं के बीच खड़े होकर भगवा नहीं हरे रंग को अपने सिर की दस्तार बनाते हुए देखे गए इतना ही नहीं मोदी के सामने नारा ए तकबीर अल्लाह ओ अकबर के नारों की गूँज गूंजती रही और मोदी अपनी दस्तार बंदी पर शुक्रिया कहते नज़र आते रहे !
इस सबसे इतर मोदी का वह रूप जीत के बाद पाक के प्रति नरम रुख का था जिसने संभवतः स्वयं भाजपा और संघ को चिंता में डाल दिया होगा और वक़्त की नज़ाक़त को भांपते हुए वह विश्व हिन्दू परीषद जो कहती थी कि ” कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे ” आज कह रही है कि राम मंदिर से पहले गंगा को शुद्ध किया जायेगा मोदी का पाकिस्तान के प्रति नरम रुख और वी.एच.पी. का गंगा को शुद्ध करने की बात दरअसल इनकी स्वयं की सोच नहीं हैं यह सोच तो मुलायम सिंह यादव और उनके सांसद तक चौधरी मुनव्वर सलीम की है चूंकि जिन दो मुद्दो को भाजपा ने अपने हाथ में लिया है इन मुद्दों पर सड़क से संसद सपा ने एक बड़ी बहस खड़ी कर रखी थी मुलायम सिंह यादव कहते थे कि पाकिस्तान हमारा स्वभाविक पडोसी देश है ! हमें चीन से दूरी बना कर पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए यह देश की तरक्की शांती और आर्थिक सामजिक विकास के लिए ज़रूरी है !
इसी तरह गंगा की स्वछता को लेकर भी सपा सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम ने यू.पी.ए. २ के सामने जब संसद में यह मामला उठाते हुए संविधान संशोधन तक की बात कह डाली थी ,तब पूरे मुल्क ने सलीम के सवाल को सराहा था सलीम ने अपने जज़्बाती भाषण में तत्कालीन केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए संसद के भीतर खड़े होकर कहा था कि यदि सरकारों में इच्छा शक्ति होती है तो वह नामुमकिन काम को भी मुमकिन कर देती है सलीम ने संसद में बैठे सदस्यों को दावत देते हुए कहा था कि चलो आप सब कुंभ नहाने वहां अखिलेश जी की सरकार है और कुंभ प्रभारी मो.आज़म खान साहब ने संगम तट को इतना स्वच्छ कर दिया है कि किसी भी हिन्दू धर्मावलम्बी को गंगा के पानी में डुबकी लगाने में कराहियत महसूस नहीं हुई !
खैर सलीम की गंगा की सफाई को लेकर उठाई गयी मांग पर क्या मोदी कोई संज्ञान लेंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन वह मोदी जो गोवा में हुए अपने प्रधानमंत्री पद के एलान के बाद पहली बार गुजरात के बाहर जनता को सम्बोधित करने निकले तो उनका पहला भाषण आंध्रप्रदेश के हैदराबाद शहर में हुआ और उन्होंने अपने इस पहले भाषण में कहा कि मनमोहन सरकार हमारे जांबाज़ सैनिकों के सिर कांटने वालों को जोधपुर में चिकन-बिरयान खिला रही है मनमोहन बताएं कि किस वोट बैंक को खुश करने के लिए यह सब कुछ किया जा रहा है ! मोदी की पहले भाषण में ही गूंजी यह आवाज़ चुनाव के परिणामों के साथ साथ खामोश हो गयी और अपनी जीत के दुसरे या तीसरे ही दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भारत आने का न्यौता दे दिया मोदी के इस न्यौते के पश्चात गिरिराज सिंह के उस ब्यान पर भी चर्चा अनिवार्य हो जाती है जो उन्होंने चुनाव के दौरान दिया था यानी गिरिराज सिंह कह रहे थे जो मोदी का विरोध करेगा उसे पाकिस्तान भेज दिया जायेगा लेकिन गिरीराज सिंह साहब  यह क्या हुआ मोदी की जीत के बाद कोई विरोधी तो पाकिस्तान नहीं गया लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को ज़रूर हिन्दुस्तान आपके मोदी जी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पूर्व ही बुला लिया तो सवाल यह पैदा होता है कि मोदी की सोच में पाकिस्तान के प्रति यह बदलाव है या फिर मोदी आज की भाजपा और कल की हिन्दू महासभा तथा मुस्लिम लीग के बीच मौजूद उस अटूट रिश्ते का सम्मान करना चाहते हैं जो आज़ादी के पहले से ही इन दोनों विचारधारों की बीच स्थापित हो चुका था !
चौंकिए मत यदि आप इतिहास के उन पन्नों को पलटोगे जिन पर सियासी जमातों के रहनुमाओं ने इतनी गर्द चढ़ा रखी है जिसे चाह कर भी वह इस धूल को नहीं हटाना चाहते यह लोग नहीं चाहते कि ज़माना यह जान सके कि जो हिन्दू महासभा आज तक मुस्लिम विरोधी सोच की एक जमात तसव्वुर की जाती है वह एक समय उसी मुस्लिम लीग के साथ साझा सरकारें बनाती थी जिस मुस्लिम लीग ने भारत माता के शरीर पर बंटवारे की लकीर खींची थी !
हम आज अपनी कलम से एक ऐसे इतिहास के पन्ने से धूल हटाते हैं जिसे पढ़ कर आप यह सोचने पर मजबूर हो जायेंगे की क्यों भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल करते ही पाक प्रधानमंत्री को दावत देकर उस लम्हे को देखने के लिए तमाम विरोधों के बावजूद बुला लिया जिस पल को देखने के लिए सावरकर की हिन्दूमहासभा यानी आज की भाजपा आज़ादी के दिन से लेकर आज तक बेकरार थी !
शायद यह भी आज़ाद हिन्दुस्तान में पहली बार हुआ होगा की पडोसी देश पाकिस्तान का प्रधानमंत्री जब किसी भारतीय सरकार को बनते हुए देख रहा था ! मोदी ने नवाज़ शरीफ को सरबजीत और शहीद हेमराज के परिवार की अनदेखी कर क्यों दावतनामा भेजकर बुलवा लिया इसकी जड़ में जायेंगे तो पाएंगे कि मो.अली जिन्ना की मुस्लिम लीग और विनायक दामोदर सावरकर की हिन्दूमहासभा की सन १९४३ में अँगरेज़ की कृपा दृष्टी से आज के पाकिस्तान में मौजूद सिंध प्रांत में बनी संयुक्त सरकार ही वह खमीर है जिसकी रोटी को सेंकने के लिए अटल बिहारी बाजपेयी ने आगरा में एक बकरी के नवजात बच्चे को पाक राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ के सामने परोसा था फिर इसी खमीर को नए सिरे से गूंदने का काम उन लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना के मज़ार पर नतमस्तक हो कर करा था जिनका खूनी रथ ९० के दशक में देश के कमज़ोरों के खून से लाल हो गया था !और आज फिर उसी रोटी को गर्म करने का प्रयास उस मोदी ने सत्ता में आते ही किया है जिस मोदी की दौर ए हुकूमत में एक गर्भवती माँ के पेट को चीर कर उसके भ्रूण को आग में भून दिया गया था !
शायद मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा की इसी वैचारिक एकता के चलते पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के रिश्ते इतने मधुर हो जाते है कि एन.डी.ऐ. शासन के चलते बसों तक का आवागमन शुरू हो जाता है और शायद इसी वैचारिक दोस्ती के चलते हिन्दुस्तान की पाकिस्तान से जो दो बड़ी जंगे हुई हैं वह कांग्रेस के दौर ए हुकूमत में हुई है !
जिस प्रकार हिन्दुस्तान के बंटवारे से पहले इस बंटवारे के मंसूबे के खिलाफ एक मज़बूत आवाज़ तत्कालीन सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री शहीद अल्लाहबख़्श की थी और १४ मई १९४३ को उनकी हत्या कर मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने मिलकर सिंध प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया था इसी प्रकार मौजूदा हिन्दुस्तान में जब हिन्दू-मुस्लिम समाज को बांटने का मंसूबा लेकर देश के दो मुख्य सियासी दल मसरूफ थे तब एक बार फिर एक और अल्लाहबख़्श मो.आज़म खान के शक्ल में हिन्दुस्तानी सियासत में नमूदार हो गया ! और इसने कारगिल विजय में मुस्लिम सैनिकों की अहम भूमिका का तज़किरा कर हिन्दू-मुस्लिम यकजहती और हुब्बुलवतनी का नया अलख जगाया चूंकि १९४३ में अँगरेज़ हुक्मरानों की हुकूमत थी इसीलिये अल्लाहबख़्श की ज़बान उनकी हत्या कर बंद की गयी थी और जिन्ना तथा सावरकार जैसे अतिवादी विचारधारा के लोग सिंध प्रांत पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो गए थे लेकिन जब मो.आज़म खान ने मुल्क की खुशहाली के लिए अपनी आवाज़ को बुलंद किया तब जम्हूरियत का हुस्न अपने शबाब पर था ! शायद इसीलिये आज़म खान की आवाज़ को बंद करने के लिए उनकी तेजस्वी और तार्किक ज़ुबान को ही कैद कर लिया गया और इस आवाज़ को बंद करने के लिए कल की हिन्दूमहासभा और मुस्लिम लीग की जगह आज की भाजपा और कांग्रेस थे ! और आज़म खान की जुबां बंदी के चलते नतीजे भी वैसे ही आये जैसे अल्लाहबख़्श जैसे देश प्रेमी की हत्या के पश्चात सिंध प्रांत में दो अतिवादी सोचों की संयुक्त सरकार के रूप में आये थे !
इसलिए शायद मोदी ने जब पहली बार हिन्दुस्तान में पूर्ण बहुमत की सरकार हिन्दूमहासभा की बनाई तब उन्होंने सबसे पहले अपने वैचारिक साथी यानी मुस्लिम लीग द्वारा बनाये गए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को इस दृश्य का साक्षी बनाने के लिए बुलवाया लिया ! लेकिन डर यह है कि जिस अटल बिहारी ने इस पुरानी और वैचारिक दोस्ती को बढ़ाने के उद्देश्य जब आगरा सम्मेलन किया था तो उसके नतीजे में हमें कारगिल का ज़ख्म मिला था तो क्या मोदी द्वारा बुलाये गए नवाज़ शरीफ के आने के बाद फिर कोई दूसरा कारगिल तो कहीं वक़्त का इंतज़ार तो नहीं कर रहा है यह तो आने वाला समय का चक्र ही बताएगा !
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