महिला उत्पीड़न

noratram loroliहम जानते है कि आज नारी घर के झाडु-पौछा के काम से आगे बढकर
राष्ट्रपति,मुख्यमंत्री,राज्यपाल तथा अन्य उच्च पदों पर आसीन है। लेकिन
महिला उत्पीड़न का ग्राफ लगातार बढ रहा है। महिलाओं पर जन्म से पूर्व व
बाद होने वाले अत्याचार के लिए किसी ना किसी प्रकार हम भी जिम्मेदार है।
नारी के सृष्टि में अलग अलग रूप है अगर समय रहते हम नही सुधर पायें तो
नारी का अस्तित्व खतरें में आ सकता है।
जन्म से पहले भ्रुण हत्या, जन्म के बाद बलात्कार,विभिन्न उत्पीडन तथा
दहेज के हत्या की खबरें रोज समाचार पत्रों की सुर्खिया होती है। नारी को
कोख से लेकर कब्र तक ना जानें जीवन में कितनी बार विभिन्न प्रकार की
अग्निपरीक्षाओं से गुजराना पड़ता है।
महिला अत्याचारों पर मानवता के मसीहा डॉ. अम्बेडकर का यही विचार था कि
भारत में महिलाएं चाहे किसी  या वर्ण की हों,उन सबका उतना ही शोषण होता
है जितना दलित महिलाओं का।
इस संसार में पुरूष व स्त्री एक पक्षी के पंखौं के समान है। एक पंख से
जिस प्रकार पक्षी अपनी उड़ान नही भर सकता,ठीक उसी प्रकार नारी के बिना
सृष्टि का कोई अस्तित्व नही है। इसके के लिए सामाजिक जागरुकता लाना बहुत
आवश्यक है।

नोरतराम लोरोली
(महासचिव,DASFI)

error: Content is protected !!