कश्मीरी पंडितों के अच्छे दिन लाने में नमो का सराहनीय प्रयास

घर वापिसी की जगी आशा बजट में 500 करोड़ की घोषणा

डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव
डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव

-डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव-  दशकों से अपने घर से दूर रह अपना जीवन यापन कर रहे कश्मीरी पंडितों को उनके घर वापिसी के प्रयास एवं बजट में पांच सौ करोड की घोषणा ने जहां विस्थापितों के लिये प्रसन्नता का महौल निर्मित कर दिया है तो वहीं दूसरी ओर नमो की कथनी और करनी एक समान होने की बात को प्रमाणित कर दिया है। लगातार लम्बे समय से अपने घर वापिसी की वाट जोह रहे पंडितो के लिये भारत सरकार के सरकार के ्रप्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने पदभार ग्रहण करते ही इस बात के संकेत दे दिये थे। कानून के जानकारों एवं राजनैतिक सूत्रों की माने तो भारत सरकार का गृह मंत्रालय शीघ्र ही इस दिशा में नीति एवं निर्देश जारी कर सकता है। अगर हाल ही में सम्पन्न हुये लोकसभा के प्रचार के दौरान आप देखेंगे कि नमो के भाषणों जो अहम मुद्दे थे उनमें कश्मीरी पंडितों के घर वापिसी का भी एक प्रमुख मुद्दा रहा है। वैसे देखा जाये तो जो भी प्रमुख मुद्दे भाषणों एवं घोषणाओं में आये थे उन पर तेजी से कार्य प्रारंभ हो चुका है अगर एैसा कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बात विदेशों में जमा काले धन की हो या फिर गंगा नदी के शुद्धिकरण की या फिर विदेश नीति की एक के बाद एक बिना समय गंवाये कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। इसी श्रेणी में कश्मीरी पंडितो की दशकों से चली आ रही उक्त समस्या का भी हल करने की दिशा में एक कदम योजनाबद्ध तरीके से आगे बढा दिया गया है। उल्लेखनीय है कि भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करने के दौरान अपने उद्बोधन में कह चुके हैं कि भारत सरकार कश्मीरी पंडितों के घर वापिसी,सम्मान तथा उनकी सुरक्षा के लिये कार्य करेगी।
दशकों से दंश झेल रहे कश्मीरी पंडित-
उक्त मामला कोई हाल ही में नहीं सामने आया है देखा जाये तो दशकों से कश्मीरी पंडित इसका दंश झेल रहे हैं। जानकार बतलाते हैं 24 अक्टूबर, 1947 को कुछ पठानों के कश्मीर पर आक्रमण को समीपस्थ देश पाकिस्तान ने उकसाया, भड़काया ही नहीं अपितु उनको उक्त कृत्य करने के लिये समर्थन भी दिया था। यहां के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद के लिये निवेदन किया था समस्या जटिल होती जा रही थी और हल निकालने के प्रयास पूर्ण नहीं हो पा रहे थे। पाक समर्थक चाहते थे कि यह पूरा हिस्सा उसके खाते में आ जाये। भारत सरकार के आग्रह पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्धितीय सरसंघचालक श्री गुरू जी ने मध्यस्था की और कश्मीर का विलय भारत में कराने में सफलता प्राप्त की थी।
अलगाववादियों एवं उक्त कृत्य को अंजाम देने में प्रयास एवं सहयोग करने वालों को यह नगावार गुजरा था। अलगाववादी संगठनों ने कश्मीरी पंडितों से हिन्दुस्थान सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा था, परन्तु पंडितों ने ऐसा करने से इनकार दिया तो उनको को मौत के घाट उतारने एवं भागने के लिये मजबूर किया जाने लगा था। तब से लेकर आज भी पंडित अपना घर छोडकर रह रहे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार विस्थापित कश्मीरी पंडितों एवं हिन्दुओं के लिये पनुन नामक संगठन लगातार कार्य कर रहा है। सन् 1990 के दिसम्बर माह में स्थापित किये गये उक्त संगठन द्वारा समय-समय पर इनकी समस्याओं के समाधान के लिये मांग उठायी जाती रही है। जानकारों के अनुसार पनुन का वास्तविक अर्थ है हमारा स्वयं का कश्मीर जिसको प्राप्त करने के लिये वह संघर्ष कर रहे हैं। बतलाया जाता है कि पन्नुन कश्मीर, कश्मीर का वह क्षेत्र है, जिस जगह पर काफी बडी संख्या में कश्मीरी पंडित अपने परिजनों के साथ निवास करते थेे। ज्ञात हो कि कश्मीर में निवास करने रह रहे कश्मीरी मूल पंडितों को 1990 में इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा आतंकवाद हिंसा का सहारा लेकर से निकाल दिया था। इसके लिये इनको  बुरी तरह से प्रताडित ही नहीं किया गया अपितु बडी संख्या में मौत के घाट भी उतार दिया गया था। महिलाओं के साथ बलात्कार जैसे घिनौने दुष्कर्म भी किये गये थे।
पाक का नापाक इरादा,उत्प्रेरित युद्ध-
उक्त समस्या में समीपस्थ देश पाक का नापाक इरादा किस से छिपा हुआ है जो आज भी किसी न किसी रूप में जारी है। इसके द्वारा प्रायोजित इस्लामिक आतंकवादियों के द्वारा जारी छद्म युद्ध पंडित अपनी पवित्र भूमि में न रहकर अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘जेहादÓ एवं ‘निजामे-मुस्तफाÓ के नाम पर निकाले गए लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने क्षेत्र में वापस लौटने के सम्पूर्ण मार्गों को रोक दिया गया है। किस प्रकार आज भी माहौल को बिगाडने का प्रयास किया जाता है कौन नहीं जानता।
समस्या को हवा एवं सहयोग-
उक्त समस्या को हवा और समर्थन के बारे में कौन नहीं जानता तथा घाटी में नरसंहार एवं हिन्दु महिलाओं के मान भंग करने के बारे में भी जब अलगाववादियों द्वारा गत 4 जनवरी 1990 के दिन कश्मीर के लगभग प्रत्येक हिन्दू परिजनों के घरों के बाहर एक पम्पलेट चिपकाया था। जिसमें स्पष्ट्र रूप से लिखा था- कि कश्मीर छोड़ के नहीं गए तो मारे जाओगे। इन्होने सर्व प्रथम हिन्दू नेताओं तथा बाद मेंं उच्च अधिकारियों को मौत के घाट उतारने का कृत्य किया। वहीं हिन्दुओं की स्त्रियों की अस्तित को लूटा गया वह भी उन्ही के परिजनों के सामने तथा अनेकों को जिन्दा आग के हवाले भी कर दिया गया था। जबकि अनेकों को बेपर्दा कर वृक्षों से लटका दिया गया था। परिणाम यह हुआ कि पलायन प्रारंभ हो गया प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग साढे तीन लाख हिन्दुओं ने कश्मीर को छोड दिया था। समीपस्थ देश पाक एवं अलगाववादियों के उक्त कृत्य के विरूद्ध जो आवाज उठनी चाहिये थी वह नहीं उठी। आज लगभग  चौदह बर्ष व्यतीत हो चुके हैं उक्त घटना को घटित हुये।
लापरवाही/अदृदर्शिता का परिणाम-
अगर इतिहास पर नजर डालें तो लगातार अनेक ऐसी तस्वीरें सामने आयेंगी जो निश्चित रूप से तत्कालीन की अदूदर्शिता या लापरवाही का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। देश को दो भागों में बांटने की एक सोची समझी रणनीति के पश्चात् कश्मीर को हथियाने के लिये पाकिस्तान के द्वारा कबाइलियों का साथ लेकर हमला कर दिया था। इनके द्वारा कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार,अनाचार करने का क्रम जारी रहा था। जानकार बतलाते हैं कि तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा भारतीय सेना को जबाब देने के लिये काफी वक्त लिया जिसके भयावह परिणाम सामने आये। इसी के कारण पाक ने कश्मीर क्षेत्र का एक तिहाई भू-भाग अपने कब्जे में ले लिया एवं वहां निवास करने वाले कश्मिीरी पंडितों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार तथा शेष बचे हुओं को भागने पर मजबूर कर दिया था। आपको बतला दें कि जम्मू कश्मीर एवं लदख एक ही भाग थे एवं जिस पर पाक ने कब्जा कर रखा है उसको पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से पहचाना जाता है। इस क्षेत्र में पाक अपने नापाक इरादे को अंजाम देने में आज भी लगा हुआ है,इसी क्षेत्र में दहशतगर्दो,आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने के साथ ही उनको भारत के विरूद्ध लडने के लिये केम्पों को संचालित किया जा रहा है।
अपने ही देश में शरणार्थी-
उक्त घटना क्रम के बाद एवं तत्कालीन सरकारों की अनदेखी या अदूरदर्शिता का परिणाम आज कश्मिीरी पंडित आज अपने ही देश में शरणार्थी बनकर भोग रहे है। ज्ञात हो कि 1947 में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से खदेडे गए कश्मीरी पंडित जम्मू में निवास करते हैंं। आज भी उनको भारतीय नागरिकता प्रदान  नहीं गयी है। जानकार बतलाते हैं कि कश्मीर के पंडित एक ऐसा समुदाय के रूप पहचाने लगे है जो बिना किसी अपराध के सजा पा रहे हैं, वह अपने बच्चे एवं परिवार के साथ सडकों पर जीवन यापन कर रहे है वह भी अपने ही देश में जिस देश के वह निवासी हैं।

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