विकास के लिए धन और सुशासन

vasundhara 23राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे राज्य के विकास पर अत्यधिक ध्यान दे रही है। उनका प्रयास है कि राज्य में भ्रष्टाचार, लूट-खसोट के बिना सहजता के साथ विकास हो। राज्य में कानून का शासन और शान्ति बनी रहे। इससे राजस्थान भी अन्य विकसित राज्यों यथा पंजाब, गुजरात और कर्नाटक जैसे विकसित राज्य बने। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने अपना राजस्थान विजन 2020 भी जारी किया है तथा उस पर काम भी शुरू किया है। यद्यपि यह सही हे कि विकास के लिए धन आवश्यक हे, तथापित प्रदेश में पीने के पानी की समस्या, बिजली आपूर्ति, स्वास्थ्य, आधारभूत ढ़ाँचा, शिक्षा और आजीविका जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में अरबों रुपयें चाहिए। उन्होंने जनता के सामने राज्य की पूर्ववर्त्ती कांग्रेस पार्टी की सरकार के द्वारा खजाना खाली छोड़ने की बात भी कही है। साथ ही राज्य की आर्थिक बदहाली पर ”श्वेत पत्र“ जैस बयान जारी कर यह समझाने का प्रयास किया है कि भारी भरकम सरकारी कर्मचारियों के वेतन, भत्तों, सुविधाएँ पेंशन और सरकार द्वारा लिए गए विशाल कर्ज के सूद का भुगतान करने पर ही राज्य के बजट का 97 प्रतिशत खर्च हो जाता है। इसके बाद राज्य के बजट का मात्र 3 प्रतिशत ही बचता है जिससे करीब 7 करोड़ आबादी के लिए विकास कार्य करने में संसाधन बाधक हैं।
सभी राज्य सरकारों के पास खर्च के दायरे अधिक और आय के स्रोत कम है। राज्य सरकारें केन्द्र सरकार की सहायता टैक्स की हिस्सेदारी और कर्ज से अपने कर्मचारियों के वेतन-पेन्शन आदि का भुगतान करने के साथ ही अन्य विकास कार्य भी करती है। राजस्थान को ”विशेष राज्य“ का दर्जा भी प्राप्त नहीं है। अतः केन्द्रीय सहायता भी कम मिलती है। मुख्यमंत्री ने 14वें वित्त आयोग से राज्य के विशाल मरू क्षेत्र, पेयजल की समस्या शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास करने के लिए, अधिक धन माँगा है। यदि राज्य को ”विशेष राज्य“ का दर्जा मिला होता तो राज्य में उद्योग धन्धे लगने में और केन्दीय योजनाओं में भी राजय को मात्र दस प्रतिशत की हिस्सेदारी ही देनी होती। बाड़मेर में तेल उत्पादन के मामले में अब राजस्थान, असम और गुजरात से आगे है। यदि रिफाइनरी में केन्द्र सरकार का ज्यादा धन लगे और केन्द्र सरकार रायल्टी बढ़ा दे तो राज्य को विकास के लिए अधिक धन उपलब्ध हो सकेगा। इसके लिए केन्द्रीय स्तर पर प्रयास की जरूरत है। केन्द्र से पंजाब की तरह राज्य को केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए कर्ज को माफ़ करवाना ज्यादा सहायता प्राप्त करना, विशेष राज्य का दर्जा लेना, तेल की रायल्टी बढ़वाना आदि कार्य मुख्यमंत्री की स्तर पर ही हो सकता है।
राजस्थान की जनता ने विशाल बहुमत से भा.ज.पा. को विजयी बनाया है। अब उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि उन्हें शांति, सुरक्षा और भ्रष्टाचार मुक्त ”सुराज“ प्रदान करें। इन कार्यों के लिए उनके पास वेतनभोगी कर्मचारियों और अधिकारियों का विशाल मानव संसाधन है। इस सरकारी तन्त्र समूह के अधिकांश लोग समय पर कार्यालय में नहीं आते है, और यदि आते भी है तो नियम से काम नहीं करते और बिना सेवा शुल्क लिए फाइलें को आगे नहीं बढ़ाते। राज्य में शांति एवं सुरक्षा देने वाले पुलिस विभाग का सिपाही से लेकर अधिकारी पद तक के लोग सिर्फ थाने से नहीं, दुकान, उद्योगों, ठेलों, बस आदि सभी स्वरोजगार वालो से मंथली वसूलते है। जिसके कारण रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता रहता है और जनता परेशान होती है। यह विचारणीय प्रश्न है। राज्य के लिए धन संग्रह करने वाले बिक्रीकर विभाग के सभी कर्मचारी राज्य के लिए कम और अपने लिए ज्यादा टैक्स वसूली कर ”कर चोरी“ को बढ़ावा दे रहे है। निर्माण कार्य में इंजीनियर, स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर, शिक्षा विभाग के अधिकारी सभी सरकारी धन का दुरुपयोग करने में लगे रहते है। यदि राज्य सरकार टैक्स की सही वसूली करवाये और सरकारी धन का लूट और अपव्यय रोके तो राज्य के विकास के लिए बजट का तीन प्रतिशत भी कम नहीं है।

s n singh
s n singh

मुख्यमंत्री सलाहकार परिषद के अर्थशास्त्रियों ने गरीबों की पेन्शन एवं स्वास्थ्य कार्यक्रम को गलत बताया है। लेकिन उन लोगों ने व्यापारियों, उद्योगपतियों और बिचौलियों की टैक्स माफी बंद करने और टैक्स की सही रूप में वसूली करने पर जोर नहीं दिया। राज्य का कर्तव्य है कि धनवालों से अधिक कर वसूलें और गरीबों को राहत दें। राज्य में अभी कई आमदनी के क्षेत्र ऐसे है जिन पर कोई टैक्स नहीं है। अब नये कर बिना राजनीतिक भय के लगाये करने चाहिए। अभी तो आगामी चुनाव के चार साल से अधिक समय बाकी है। जनता सुशासन विकास और अच्छी कानून व्यवस्था के लिए वोट देती। अतः राज्य अपना आन्तरिक आय को बढ़ावें तो इसके आधार पर केन्द्रीय सहायता भी ज्यादा मिल जायेगी। तब राज्य में विकास के कार्य भी आसानी से किये जा सकते है।
मुख्यमंत्रीजी वेतन और पेन्शन पर 72 प्रतिशत बोझ को इसके कम करने के लिए मुख्यमंत्री अपनी इच्छाशक्ति से नई पहल कर सकती है। राज्य की आय का 72 प्रतिशत खर्च का बोझ बताती है। राज्य में प्रायः सभी महकमों में कुछ भी काम नहरीं करने वाले कर्मचारी मोजूद है, कई कार्यालयों में अत्यधिक (सरप्लस) कर्मचारी है कई विद्यालयों में बिना छात्र के शिक्षक है जो वेतन उठा रहे है ऐसे अनावश्यक भार को राजनीति इच्छाशक्ति से ही कम किया जा सकता है। कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद पारिवारिक जिम्मेदारी भी कम हो जाती है तो अपने खर्च भी कम ही रहता है। राज्य में औसत आय बढ़े है और सेवानिवृत्त कर्मचारी की 80 वर्ष की उम्र के बाद पेन्शन भी बढ़ाई जाती है। पेन्शन की भी अधिकतम राशि निर्धारित होनी चाहिए। सरकार संगठित कर्मचारियों का अनावश्यक शिक्षा, अनाज, सफाई, यातायात, दवाई आदि का अतिरिक्त भुगतान करती है। इस राशि को असंगठित क्षेत्र के कामगार और गरीबों को देकर भी राज्य का विकास कर सकती है। सबसे महत्वपूर्ण यह कार्य होगा कि राज्य में कानून का शासन बिना घूस-पैरवी का काम शांति और सुरक्षा का वातावरण स्थापित हो जाये तो यही विकास होगा। इसके लिए धन नहीं राज्य सरकार की इच्छाशक्ति चाहिए।
प्रो. एस.एन. सिंह,
राजनीति विज्ञान विभाग, विभागाध्यक्ष
मदस विश्वविद्यालय, अजमेर
मोबाईल नं0 9352002053

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