भारतीय अर्थव्यवस्था पर चीन की सेंधमारी

123456भारत में पिछले एक डेढ़ दशक से हर बाजार में चीन निर्मित वस्तुओ की धूम मची हुई हैं हालांकि चीन निर्मित वस्तुओ की कोई गारंटी नहीं होती और क्वालिटी भी घटिया होती हैं, लेकिन फिर भी चीन निर्मित वस्तुओ की बाजार में बहुत अच्छी खपत हो रही हैं । खिलौनों से लेकर लेखन-सामग्री तक, छाते से छड़ी तक, हर दुकान पर चीन में निर्मित माल का कब्जा है। त्योहारों के मौके पर नजारा चौंकाने वाला होता है। सजावटी रौशनी के लट्टू, लड़िया ही नहीं, लक्ष्मी-गणेश व् अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों से लेकर दीया-बाती तक पर चीन में निर्मित माल की छाप होती है। देश के सबसे बड़े थोक बाजार सदर बाजार की दर्जनों गलियों और हजारों दुकानों में एक चीज आम है, चीन में निर्मित सामान का विक्रय.. एक-डेढ़ दशक पहले तक इस बाजार में चीन में निर्मित सामान की हिस्सेदारी 30 फीसदी से भी कम थी, जो आज 60-70 फीसदी हो गई है। यह बाजार उत्तर भारत का वितरण केंद्र माना जाता है और यहां से कई छोटे बाजारों की रंगत तय होती है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा है कि वे देश को विनिर्माण हब बनाना चाहते हैं। यानी समस्त विश्व के हर बाजार में भारत निर्मित वस्तुओ की उपलब्ध्ता हो । चीन ने पूरी दुनिया में यह कारनामा कर दिखाया है। अमेरिका सहित, आज समस्त विश्व के हर बाजार चीन निर्मित वस्तुओ के उत्पादों से भरे पड़े है। इस का मुख्य कारण चीन की छवि व्यापार के लिहाज से दुनियाभर में अच्छी है। चीन ने अपने उत्पादन को पिछले कुछ सालों में कई गुना बढ़ाया है। पिछले वर्ष चीन में निर्मित उत्पादों का कुल व्यापार 3.87 खरब डॉलर पहुंच गया था। यह आंकड़ा चीन को दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक राष्ट्र बनाता है। वहीं दूसरी तरफ भारत की छवि दिन-ब-दिन खराब हो रही है। विश्व आर्थिक मंच की प्रतिस्पर्धात्मकता क्रमांकन में विश्व में भारत का नंबर 60 वां है। चीन 29 वें नंबर पर है। विश्व बैंक की दुनिया में आसानी से व्यापार करने वाली सूची में भारत का नंबर 134 वां है। विश्व बैंक के एक अन्य आंकलन के अनुसार, अगर आप किसी देश में व्यापार शुरू करना चाहते हैं तो भारत का नंबर 179 वां है। यानी व्यापार शुरू करना है तो पहले दुनिया के 178 देशों के बाद भारत का विकल्प है। ऐसे में दूसरे देशों की कंपनियां कैसे भारत आएंगी और कैसे हमारे देश में उत्पादन बढ़ेगा।
चीन ने पिछले 20 सालों में अपने निर्यात को 15 गुना से भी ज्यादा बढ़ा लिया है। उसने 1970 के दशक में ही यह भांप लिया था कि उसके देश की विशाल जनसंख्या का विकास निर्यात से ही होगा। उसने लगातार अपने निर्यात को बढ़ाने पर ध्यान दिया। चीन ने अपने निर्यातकों को बहुत सारी सुविधा जैसे आसान ऋण, शीघ ही परियोजना पास करना, निर्यातकों को मुनाफे की गारंटी, उद्योग से जुड़े लोगों को दो दिन के अंदर ही ऋण सुविधा देने का वादा और इस पर अमल करना । साथ ही चीनी सरकार ने अपने यहां निर्यातकों से जुड़े उद्योगों को जबरदस्त आर्थिक सहायता ( सब्सिडी) दी हैं। चीन के निर्यातकों ने पूरी दुनिया के बाजारों को समझा और उनकी जरूरत के हिसाब से सामान बनाना शुरू किया। उद्योग से जुड़े लोगों ने छोटी से छोटी बातों पर ध्यान दिया।
जबकि भारत में सड़कों की खस्ता हालत , विधुत की भारी कमी और जल आपूर्ति का पर्याप्त न होना, भारतीय उद्योगो को स्पर्धा में टिकने नहीं देता। भारत के बंदरगाहों पर मंजूरी पाने के लिए एक महीने तक का भी समय लग सकता है। ये ऐसी व्यवस्थाएं हैं, जिनसे लागत बढ़ती है और आपूर्ति बाधित होती है। इसकी वजह से नए उद्यमी ऐसे क्षेत्र में जाने से बचते हैं। भारत मे केंद्र, राज्य व स्थानीय स्तर की बहुस्तरीय नियामक व्यवस्थाएं और जटिल प्रक्रियाएं निवेशकों के लिए मुश्किलें खड़ी करती हैं, जिनके चलते निवेशक पूंजी प्रधान उद्योगों में हाथ डालने से बचते हैं। भारत में विनिर्माण इकाई चलाने वाले को हर साल करीब 70 तरह की नियमावलियों का पालन करना होता है और करीब 100 तरह के विवरणी भरने होते हैं। देश का विनिर्माण एरिया भी बहुत छोटा है। भारत की सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी 15 फीसदी ही है, जबकि चीन और थाईलैंड जैसी अर्थव्यवस्थाओं में यह हिस्सेदारी 25-30 फीसदी तक है।
विनिर्माण क्षेत्र में देश के महज 12 फीसदी श्रमिकों को ही रोजगार मिला है । देश के मौजदा श्रम कानून मुट्ठी भर श्रमिकों को रोजगार की सुरक्षा तो देते हैं, लेकिन वे श्रमिकों की एक बहुत बड़ी तादाद से उसके रोजगार के अवसर छीन लेते हैं। खास तौर पर उन श्रमिकों से, जो अनौपचारिक क्षेत्र में हैं और जिनकी आमदनी बहुत कम है। श्रम बहुल देश होने का जो फायदा इस देश को मिल सकता है, वह इन्हीं कानूनों की वजह से नहीं मिल पाता और भारत अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में बहुत पीछे रह जाता है। कोई भी देश तब तक विकसित नहीं हो पाता, जब तक कि वह कृषि क्षेत्र से श्रमिकों की संख्या कम करके उन्हें अधिक उत्पादकता वाले विनिर्माण क्षेत्र की ओर नहीं ले जाता। अध्ययन बताते हैं कि विनिर्माण क्षेत्र में पैदा होने वाला रोजगार का अवसर सेवा क्षेत्र में दो से तीन रोजगार के अवसर पैदा करता है। यानी इस क्षेत्र पर जोर देकर हम बड़ी तादाद में रोजगार पैदा कर सकते हैं और कृषि क्षेत्र के अतिरिक्त श्रम को इसमें लगा सकते हैं। पूर्वी एशिया के देशों का अनुभव बताता है कि कम कुशलता वाले निर्माण शाला रोजगार को लगातार बढ़ाना ही समाधान है। इस क्षेत्र के लगातार विस्तार के लिए हमें शिक्षा, प्रशिक्षण और कुशलता में विकास की व्यवस्था को खड़ा करना होगा।

अशोक लोढ़ा
अशोक लोढ़ा

अत : विनिर्माण क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र, राज्य व स्थानीय स्तर की बहुस्तरीय नियामक व्यवस्थाएं और जटिल प्रक्रियाएं का सरलीकरण होना चाहिए । देश में पर्याप्त विधुत की उपलब्धता , जल की समुचित आपूर्ति, माल परिवहन हेतु सड़को एवं रेल लाइनो का जाल, भूमि अधिकरण एवं श्रम कानूनों में सुधार, ताकि निवेशक विनिर्माण इकाई लगाने में रूचि ले सके । विश्व बैंक के एक ताजा सर्वे के अनुसार, भारत में विनिर्माण इकाई शुरू करना या बंद करना बाकी दुनिया के मुकाबले सबसे कठिन है। तीन साल पहले बनी राष्ट्रीय विनिर्माण नीति भी इसे नहीं बदल सकी।
पिछले कुछ सप्ताह में श्रम कानूनों में सुधार और पर्यावरण की मंजूरी में तेजी के लिए मोदी ने कुछ साहसपूर्ण कदम उठाए हैं। रेलवे और रक्षा क्षेत्र को भी विदेशी निवेश के लिए खोला है। इस सबको देखते हुए भारत में निर्मित सामान को विश्व भर के बाजार में देखने का उनका मूलमंत्र और भी ज्यादा विश्वसनीय लगता है।
-अशोक लोढ़ा, नसीराबाद

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