-रेणु शर्मा- सर्व जनहिताय , सर्व जनसुखाय को अपने जीवन का लक्ष्य बनाने वाले और दलित समाज के लिये अपना जीवन समर्पित करने वाले काषीरामजी मरने के बाद आज भी अपने द्वारा किये गये कार्यो से जिन्दा हैं। कंाषीरामजी जैसे प्रतिभाषाली और क्रंान्तिकारी विचारों वाले नेता बहुत कम होते हैं उनके द्वारा अस्पृष्य , दलित , गरीब एंव अल्पसंख्यक समुदाय के लिये स्थापित संगठन वर्तमान समय में कार्यरत हैं ।
15 मार्च 1934 , प्ंाजाब के खवासपुर गंाव के रामदसिया सिक्ख परिवार में जन्में दलितो के मषीहा कंाषीरामजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन गरीब , अस्पृष्य , दलित एंव अल्पसंख्यक समुदाय के सुधार के कार्य करने में स्वंय को समर्पित कर दिया। गंाव खवासपुर में इनकी प्रारम्भिक षिक्षा हुई और रोपड से इन्होने बी़एससी तक षिक्षा प्राप्त और 1957 में उन्होने भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग में नौकरी की कुछ समय पष्चात वे पुणे में केन्द्रिय रक्षा अनुसंधान में वैज्ञानिक सहायक के पद पर कार्य करने लगे वहंा पर इन्होने भीमराव अंबेडकरजी की लिखी कुछ पुस्तके पढी जिनमें मेें अंम्बेडकरजी ने जाति व्यवस्था ,गरीब ,अस्पृष्य लोगों के पुनरूद्वार के लिये गंाधीजी और कंाग्रेस द्वारा किये गये कार्यो का उल्लेख किया गया था । लेकिन जब कंाषीरामजी ने समाज में होने वाले अन्याय , भेदभाव वाले व्यवहार को देखा तो उन्होने अस्पृष्य , दलित , गरीब एंव अल्पसंख्यक समुदाय के साथ हो रहे अन्याय को दूर करने की ढान ली और इसे ही अपने जीवन लक्ष्य बना लिया। काषीरामजी ने कहंा कि ष्प् ूपसस दमअमत हमज उंततपमकए प् ूपसस दमअमत ंबुनपतम ंदल चतवचमतजलए प् ूपसस दमअमत अपेपज उल ीवउमए प् ूपसस कमअवजम ंदक कमकपबंजम जीम तमेज व िउल सपमि जव ंबीपमअम जीम हवंसे व िच्ीनसम .।उइमकांत उवअमउमदजष् अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जीवन भर निःस्वार्थ भाव से लडते रहे।
अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उन्होने अविवाहित रहने का फैसला किया और इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये 1971 में इन्होने अपनी केन्द्रिय रक्षा अंनंसंधान में वैज्ञानिक सहायक की नौकरी छोड दी हुए। दलित और गरीब समाज के लोगों को उनके अधिकारों के बारे में बताया , उन्हे संगठित किया और समाज में फैली जातिगत भेदभाव के व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाते हुए उन्हे अपने अधिकारों को लेने के लियें संघर्ष करना सिखाया। अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति , अन्यपिछडावर्ग एंव अल्पसंख्यक कर्मचारीसंघ की स्थापना की और इन्हे एसोसिएषन पूना चैरिटी आयुक्त के साथ पंजीकृत किया ।
इतिहास गवाह है कि किस प्रकार कंाषीरामजी ने सोषल इंजीनियरिंग का प्रयोग कर लोगों को एकजुट किया और उनका एक संगठन बनाया। उन्होने भारतीय समाज के विभिन्न समुदायों का अध्ययन किया उसकी समस्याओं को समझा एंव उनको समाज के अन्य वर्गो के समान किस तरह से साथ लाया जाये। समाज के अस्पृष्य , दलित , गरीब एंव अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को राजनीतिक, सामाजिक ,षैक्षणिक , आर्थिक रूप से समाज के अन्य लोगों के समकक्ष लाने के लिये जो प्रयास किया उसे सोषल इंजीनियरिंग नाम दिया। कंाषीरामजी द्वारा किया गया सोषल इंजीनियरिंग का प्रयोग भारतीय इतिहास में अविस्मरणिय हैं सोषल इंजीनियरिंग के द्वारा ही उन्होने लोगों को संगठित किया । उनके इस फार्मूले का प्रयोग आज भी सभी राजनीतिक दल उपयोग करते है
हमारे भारतीय समाज में समय के साथ जाति प्रथा में बुराईयंा आ जाने के कारण वह समाज के लिये एक बहुत ही बडा अभिषाप बन गयंा था । इसके मुक्ति पाने के लिये वर्ष 1975 में कंाषीरामजी ने दलित और पिछडा वर्ग के लोगों के साथ मिलकर “ दलित और पिछडा वर्ग“ की स्थापना की । 1978 में उन्हांेने एक गैर राजनीतिक और गैरधार्मिक संगठन “बैकवर्ड एंव माइनरिटीज कम्ययूनिटीज एम्प्लाइज फेडरेषन“ का गठन किया । समाज में व्याप्त ब्राहमणवादी व्यवस्था में बदलाव लाने के लिये कंाषीरामजी ने 6दिसंबर1978 को अपने मराठा दोस्तों के साथ मिलकर “बामसेफ“ का गठन यह संगठन कर्मचारियों के द्वारा नही बल्कि कर्मचारियों के कल्याण के लिये था। इस संगठन के माध्यम से उन्हांेने ब्राहमणवाद पर प्रहार किया। कंाषीरामजी के आन्दोलनों का उद्देष्य सत्ता प्राप्ति ही नही था बल्कि सत्ता प्राप्ति के माध्यम से समाज के अस्पृष्य , दलित एंव गरीब अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को उनके अधिकार दिलाना , उनको आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना , उनमें सामाजिक जागृित लाना ,उन्हंे षिक्षित करना एंव उनकांे आवष्यक सुविधाए मुहैया करवाना था। उनके द्वारा 6दिसम्बर1981 में स्थापित “ दलित षोषित समाज संघर्ष समिति“ समिति का नारा ठाकुर,ब्राहमण, बनिया छोड बाकी सब हैं डी-एस 4“ बहुत ही लोकप्रिय नारा बना। डी-एस 4 ने लोगों की संसद बुलाना , पहियों पर अंबेडकर मेलों का आयोजन और साइकिलों पर तीन हजार किलोमीटर की रैली द्वारा अपने आन्दोलन को साकार किया। ब्राहमणवाद पर प्रहार करने के लिये बनायी गयी “ बामसेफ “ से ही 1984 में दलितोद्वार के लिये “बहुजन समाज पार्टी“ का जन्म हुआ , वोट लेने के लिये कंाषीरामजी ने “ एक नोट , एक वोट “ का नारा दिया और बसपा को मजबूत राजनीतिक दल बनाया।
कंाषीरामजी के राजनीतिक दल बहुजन समाज पार्टी के “बहुजन“ षब्द को बौद्व धर्म के धर्मग्रन्थ त्रिपिटक से लिया है जिसका अर्थ बहुजन हिताय बहुजन सुखाय होता हैं एंव इस पार्टी का उद्देष्य भारतीय समाज की परम्परागत रूप से नीची , अस्पृष्य , दलित एंव गरीबअल्पसंख्यक जनता की सेवा करना था। कंाषीरामजी के आन्दोंलन की वारिस एंव वर्तमान बसपा की सुप्रिमो सुश्रीमायावतीजी उन्ही के सोषल इंजीनियरिंग के नियम द्वारा ही यूपी जैसे बडे राज्य में चार बार मुख्यमंत्री रही एंव अभी भी भारतीय राजनीति में महत्तवपूर्ण दखलानंदाजी रखती हैं। लेकिन जिस तरह गंाधी जी ने कंाग्रेस के माध्यम से देष की जनता को अंग्रेजांे से मुक्त करवाकर देष को स्वतंत्र करवाने में सहयोग दिया। उसके बाद कंाग्रेस गंाधीजी के नाम पर सत्ता पर काबिज रही लेकिन गंाधीजी के सिद्वान्तों को भुला दिया गया इसी तरह मायावती ने भी कंाषीरामजी द्वारा स्थापित बसपा से सत्ता में काबिज रही लेकिन उनके सिद्वान्तो को अमल में नही लिया। दलित , अस्पृष्य , गरीबअल्पसंख्यक समाज का विकास करने की बजाय , जगह-जगह पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तिया लगवाने जैसे कामों पर पैसा खर्च किया जा रहंा है इससे दलित , अस्पृष्य, गरीबअल्पसंख्यक समाज का कितना हित हुआ यह सब जानते हैं। सर्व जनहिताय , सर्व जनसुखाय का लक्ष्य लेकर बनने वाली बसपा का क्या यही उद्देष्य रह गया है ?
भीमराव अम्बेडकरजी के बाद कंाषीरामजी ही ऐसे इंसान थे जिन्होने इन लोगों के साथ होने वाले अत्याचार ,भेदभाव , छूआछुत यथाः किसी अछूत का सार्वजनिक स्थानों (मंदिर , जलाषय , विद्यालय) पर जाने पर पंाबदी लगाना , अल्पसंख्यक समुदाय को अहमियत नही देना , गरीबों को लताड़ना इत्यादी व्यवहार के खिलाफ आवाज उठायी। इसके साथ ही उन्होने यह प्रण भी लिया की वह किसी भी व्यक्ति के जन्म , मृत्यु एंव विवाह संस्कार में षामिल नही होगे और भविष्य में खुद अपनी षादी भी नही करेगे। ऐसा वचन लेने वाला कोई साधारण इंसान नही हो सकता वह कोई महान व्यक्तित्व वाला व्यक्ति ही हो सकता हैं। अपने द्वारा किये गये समाज सुधार कार्यो , अपने गुणों और अपने व्यक्तित्व के कारण ही कंाषीरामजी मरने के बाद भी आज जिन्दा हैं ।

9 अक्टूबर 2009 को लंबी बीमारी के कारण उनका देहान्त हो गया उनकी इच्छानुसार उनका अन्तिम संस्कार बौद्व धर्म के अनुसार किया गया। यदी हम कंाषीरामजी के प्रति सच्ची श्रद्वान्जली देना चाहते है तो सत्ता में रहे या न रहे आवष्यकता हैं दलित , अस्पृष्य , गरीबअल्पसंख्यक समाज का उत्थान करने की। राजनीतिक रूप से ही नही बल्कि उन्हे षैक्षणिक , आर्थिक , सामाजिक रूप से भी उनको समाज के उच्च वर्ग के समकक्ष लाना है। उन्हे आत्म निर्भर बनाने के साथ उनमें स्वाभिमान जागृत करना हैं । कंाषीरामजी जैसे प्रतिभाषाली और क्रंान्तिकारी विचारों वाले नेता बहुत कम होते हैं।