ब्रह्मा

bramha mandir01ब्रह्माजी (Brahmā)को हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता के रूप में जाने जाता है। हिन्दुओं के तीन प्रमुख देवताओं यथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं, तीनों को त्रिदेव भी कहते हैं। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। आदिकाल में सृष्टि रचना के पूर्व संसार अंधकारमय था। सनातन परमब्रह्म्र परमात्मा ने सगुण रूप से सृष्टि की रचना की एवं समस्त ब्रम्हाण्ड का निर्माण हुआ। स्थूल सृष्टि की रचना पंच महाभूतों यथा आकाश, वायु, अग्नि, जल, एवं पृथ्वी से हुई। विराट पुरूष नारायण भगवान के संकल्प से ब्रम्हा जी की उत्पत्ति हुई। महाप्रलय के बाद भगवान नारायण योगनिद्रा में दीर्घ काल तक रहे। योगनिद्रा से जगने के बाद उनकी नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ। जिसकी कर्णिकाओं पर स्वयम्भू ब्रह्मा प्रकट हुए। उन्होंने अपने नेत्रों को चारों ओर घुमाकर शून्य में देखा। इस चेष्टा से चारों दिशाओं में उनके चार मुख प्रकट हो गये। जब चारों ओर देखने से उन्हें कुछ भी दिखलायी नहीं पड़ा, तब उन्होंने सोचा कि इस कमल पर बैठा हुआ मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ तथा यह कमल कहाँ से निकला है?
दीर्घ काल तक तप करने के बाद ब्रह्मा जी को शेषशय्या पर सोये हुए भगवान विष्णु के दर्शन हुए। अपने एवं विश्व के जनक (कारक ) परम पुरुष का दर्शन करके उन्हें विशेष प्रसन्नता हुई और उन्होंने भगवान विष्णु की स्तुति की। भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से कहा कि अब आप तप:शक्ति से सम्पन्न हो गये हैं और आपको मेरा अनुग्रह भी प्राप्त हो गया है। अत: अब आप सृष्टि की रचना करने का प्रयत्न कीजिये।
ब्राह्म पुराणों में ब्रह्मा का स्वरूप विष्णु के सदृश ही निरूपित किया गया है। ये ज्ञानस्वरूप, परमेश्वर, अज, महान तथा सम्पूर्ण प्राणियों के जन्मदाता और अन्तरात्मा बतलाये गये हैं। कार्य, कारण और चल, अचल सभी इनके अन्तर्गत हैं। समस्त कला और विद्या इन्होंने ही प्रकट की हैं। ये त्रिगुणात्मिका माया से अतीत ब्रह्म हैं। ये हिरण्यगर्भ हैं और सारा ब्रह्माण्ड इन्हीं से निकला है।
सभी पुराणों तथा स्मृतियों में सृष्टि-प्रक्रिया में सर्वप्रथम ब्रह्मा जी के प्रकट होने का वर्णन मिलता है। वे मानसिक संकल्प से प्रजापतियों को उत्पन्न कर उनके द्वारा सम्पूर्ण प्रजा की सृष्टि करते हैं। इसलिये वे प्रजापतियों के भी पति कहे जाते हैं।
मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष तथा कर्दम- ये दस मुख्य प्रजापति हैं।
दक्ष ने प्रसूति से 16 कन्याओं कों जन्म दिया जिसमें स्वाहा नामक कन्या का अग्नि के साथ, स्वधा का पितृगण के साथ, सती जो शक्ति माता की अवतार थीं उनका भगवान शिव के साथ और तेरह कन्याओं(श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, द्वी और मूर्ति) का विवाह धर्म से कर दिया गया बाकी कन्याओं में भृगु का ख्याति से और मरीचि का सम्भूति से, अंगिरा का स्मृति से, पुलस्त्य का प्रीति से, पुलह का काक्षमा से, कृति का सन्नति से, अत्री का अनुसुइया से, वशिष्ट का उर्जा से विवाह किया गया जिनसे सारी सृष्टि विकसित हई है।

ब्रह्म कुण्ड, गोवर्धन (Brahma Kund, Govardhan )
भागवतादि पुराणों के अनुसार भगवान रुद्र भी ब्रह्मा जी के ललाट से उत्पन्न हुए। मानव-सृष्टि के मूल महाराज मनु उनके दक्षिण भाग से उत्पन्न हुए और वाम भाग से शतरूपा की उत्पत्ति हुई। स्वायम्भुव मनु और महारानी शतरूपा से मैथुरी-सृष्टि प्रारम्भ हुई।
सभी देवता ब्रह्मा जी के पौत्र माने गये हैं, अत: वे पितामह के नाम से प्रसिद्ध हैं। यों तो ब्रह्मा जी देवता, दानव तथा सभी जीवों के पितामह हैं, फिर भी वे विशेष रूप से धर्म के पक्षपाती हैं। इसलिये जब देवासुरादि संग्रामों में पराजित होकर देवता ब्रह्मा के पास जाते हैं, तब ब्रह्मा जी धर्म की स्थापना के लिये भगवान विष्णु को अवतार लेने के लिये प्रेरित करते हैं। अत: भगवान विष्णु के प्राय: चौबीस अवतारों में अवतरित होने में ब्रम्हाजी ही निमित्त बनते हैं।
शैव और शाक्त आगमों की भाँति ब्रह्मा जी की उपासना का भी एक विशिष्ट सम्प्रदाय है, जो वैखानस सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है। इस वैखानस सम्प्रदाय की सभी सम्प्रदायों में मान्यता है। पुराणादि सभी शास्त्रों के ये ही आदि वक्ता माने गये हैं।
माध्व सम्प्रदाय के आदि आचार्य भगवान ब्रह्मा ही माने जाते हैं। इसलिये उडुपी आदि मुख्य मध्वपीठों में इनकी पूजा-आराधना की विशेष परम्परा है। देवताओं तथा असुरों की तपस्या में प्राय: सबसे अधिक आराधना ब्रम्हाजी की ही होती है। विप्रचित्ति, तारक, हिरण्यकशिपु, रावण, गजासुर तथा त्रिपुर आदि असुरों को ब्रम्हाजी ने ही वरदान देकर उन्हें अवध्य बना दिया था | देवता, ऋषि-मुनि, गन्धर्व, किन्नर तथा विद्याधर गण आदि भी ब्रम्हाजी की भक्ति- आराधना में ही निरंतर तत्पर रहते हैं।
मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी के चार मुख हैं। वे अपने चार हाथों में क्रमश: वरमुद्रा, अक्षरसूत्र, वेद तथा कमण्डलु धारण किये हैं। उनका वाहन हंस है।
ब्रह्माजी की प्राय: अमूर्त अपासना ही होती है। सर्वतोभद्र, लिंगतोभद्र आदि चक्रों में उनकी पूजा मुख्य रूप से होती है, किन्तु मूर्तरूप में मन्दिरों में इनकी पूजा पुष्कर-क्षेत्र तथा ब्रह्मार्वत-क्षेत्र (विठुर) में देखी जाती है।
ब्रह्माजी का प्राचीनतम मंदिर पुष्कर (अजमेर ) में ही है
कुछ वर्षोँ पूर्व राजपुरोहित समाज द्वारा आसोतरा जिला बाड़मेर ( राजस्थान ) में भी ब्रम्हा मन्दिर का निर्माण किया गया है, इस मन्दिर का शिलान्यास 20 अप्रैल 1961 को किया गया था किन्तु मूर्ती स्थापना 6 मई 1984 को की गई थी |

ब्रह्मा—सावित्री
सावित्री नामक देवी को ब्रह्मा की पत्नि कहा गया है, परंतु यह ब्रह्मा को छोड़कर चली गईं। प्रसंग उस समय का है जब भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना हेतु यज्ञ का आयोजन किया, सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य को पत्नि के संग किया जाता है, परंतु उस यजयज्ञ में माता सावित्री को आने में देर हो गई अत: ब्रह्मा नें रुष्ट होकर नंदिनी गाय द्वारा एक ग्वालिन देवी गायत्री को उत्पन्न कर उनसे विवाह कर उनके संग ही यज्ञ किया। इससे देवी सावित्री रुष्ट हो गईं और ब्रह्मा को श्राप दिया की उनकी पूजा सिर्फ यही होगी जहाँ उनहोंने यज्ञ किया। ब्राह्मण को श्राप दिया की उनको चाहे जितना दान मिले उनकी क्षुधा कभी शांत नहीं होगी। गाय को श्राप दिया कि कलयुग में गायों को मनुष्य का जूठा खाना होगा। नारद को श्राप दिया कि वे कभी विवाह नहीं कर पाएँगे। अग्निदेव को कलयुग में अपमानित होने का श्राप दिया और स्वयं (सावत्री) पहाड़ की चोंटी पर जा विराजित हो गई।

ब्रह्मा—सरस्वती

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की। सरस्वती उनके मुंह से उत्पन्न पुत्री थी, उसके प्रति काम-विमोहित हो, वे समागम के इच्छुक थे। प्रजापतियों की रोक-टोक से लज्जित होकर उन्होंने उस शरीर का त्याग कर दूसरा शरीर धारण किया। त्यक्त शरीर अंधकार अथवा कुहरे के रूप में दिशाओं में व्याप्त हो गया। उन्होंने अपने चार मुंह से चार वेदों को प्रकट किया। ब्रह्मा को ‘;क’; कहते हैं- उन्हीं से विभक्त होने के कारण शरीर को काम कहते हैं। उन दोनों विभागों से स्त्री-पुरुष एक-एक जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष मनु तथा स्त्री शतरूपा कहलायी। उन दोनों की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि प्रजापतियों की सृष्टि का सुचारू विस्तार नहीं हो रहा था।
सावित्री इनकी पत्नी, सरस्वती पुत्री और हंस वाहन है।
भगवान विष्णु की प्रेरणा से सरस्वती देवी ने ब्रह्मा जी को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान कराया।
देवी भागवत में सरस्वती को ब्रह्मा की पत्नि बताया गया है।
(साभार—ब्रम्हा-विकीपीडीया एवं अन्य स्त्रोत )
डॉ जे. के. गर्ग

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