नसीब…!!

amitesh-अमितेश कुमार ओझा- बुरे से अच्छे दौर के बाद फिर पुरानी स्थिति पर वापसी।  संक्रामक रोगों के अस्पताल के बेड पर पड़े कमल की कुछ एेसी ही स्थिति थी। जीवन के चंद सालों में ही उसने दुनिया के हर रंग देख डाले। पहले तंगहाली में समय गुजरा, फिर अचानक नसीब ने पलटा खाया, औऱ फिर देखते – ही देखते एकबारगी  बर्बादी के कगार पर।
दरअसल कमल की किस्मत ही कुछ एेसी रही। तीन बेटियों की शादी के चलते सिर पर चढ़े कर्ज ने कमल के पिता राजाराम को शराब का आदी बना दिया। इस लत के चलते घर में फाकेकसी की नौबत आ गई। कमल समझ नहीं पा रहा था कि इस मुसीबत से परिवार को आखिर कैसे उबारे। जान – पहचान वाले और तमाम नाते – रिश्तेदार उससे सहानुभूति जताते हुए इसे नसीब का फेर बताते।
आखिर वह दिन भी आया जब कमल की किस्मत ने अचानक पलटी खाई। शराब पीते – पीते आखिरकार कमल के पिता को एक दिन शराब ही पी गई। उनकी अकाल मौत से कमल को सदमा तो लगा। लेकिन उसके दिन भी तेजी से बदलने लगे।
पिता के भविष्य निधि व अन्य मद से मिली मोटी रकम से कमल ने बड़ी सहजता से पिता का पुराना कर्ज चुका दिया। विधवा मां को पेंशन मिलने लगा और अनुकंपा के आधार पर उसे पिता की जगह स्थायी नौकरी भी मिल गई।
फिर क्या था। कमल के दिन फिर गए। कहां पाई – पाई की मोहताजी और कहां हजारों की  मोटी रकम की मासिक तनख्वाह। पेंशन के सहारे की वजह से मां की ओर से भी वह निश्चिंत था।
अचानक बदले दिन ने कमल की चिंताएं भी बदल दी। पहले वह जहां तंगहाली से निकलने की सोचता था। अब खर्च करने के उपाय पर मगजमारी करने लगा। महंगे शौक के साथ  महंगी बाइकें वह कपड़ों की तरह बदलने लगा।
इस सुनहरे दौर में उसकी शादी भी  बड़े घर में हो गई। बीवी खुद कमाती थी। साथ में ससुराल से मोटी रकम दहेज के रूप में भी  मिली। सब उसके भाग्य से ईष्या करने लगे। क्योंकि कल तक जो सहानुभूति का पात्र था। ससुराल पक्ष की ऊंची पहुंच और समृद्धि के चलते लोग उससे दोस्ती गांठने की तरकीबें ढूंढने लगे।
लेकिन अचानक अाई खुशहाली से उसके कदम डगमगाने भी लगे। आए दिन होने वाली पार्टियों में वह शराब पीने लगा।
मां को उसने कभी इसकी भनक नहीं लगने दी। अलबत्ता शुरूआत में बीवी ने एेतराज जताया।
लेकिन कमल ने उसे डपट दिया… कैसी दकियानुसी सोच रखती हो … यार समझा करो। मेरी बड़े – बड़े लोगों से पहचान है। वहां य़ह सब करना ही पड़ता है। आखिरकार कालचक्र में कमल अपने पिता की स्थिति में लौटता नजर आने लगा। सुदृढ़ बुनियाद के चलते उसके सामने आर्थिक परेशानियां तो नहीं फटकी. लेकिन शराब ने उसे बड़ी तेजी से अपनी गिरफ्त में  लेना शुरू कर दिया। धीरे – धीरे कमल का शरीर पूरी तरह जीर्ण – शीर्ण हो गया। लोग उससे दूर भागने लगे। फिर उसके नसीब की दुहाई दी जाने लगी।
आखिरकार शरीर के पूरी तरह से निस्तेज हो जाने की वजह से उसे संक्रामक रोगों के अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। डाक्टरों ने उसे दो टुक जवाब दे दिया था कि यदि वह जिंदगी चाहता है तो उसे शराब छोड़ना पड़ेगा। लेकिन कमल को यह असंभव लग रहा था।
रोग शैय्या पर पड़े – पड़े कमल बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में पहुंच चुका था। वह हमेशा शून्य की ओर एकटक देखता रहता।
उसके यार – दोस्त भी उससे दूर हो चुके थे। मां और पत्नी को छोड़ इक्का – दुक्का लोग ही उसकी खोज – खबर लेने कभी अस्पताल आते।
इस स्थिति में पड़े – पड़े  कमल जोर से चिल्ला उठा… आखिर नियति का यह कैसा खेल है…।
हालांकि प्रत्युत्तर देने वाला कोई नहीं था। उसके आस – पास मौजूद लोग कहने लगे… लगता है शराब का असर इसके दिमाग पर भी पड़ने लगा है। यह पागल हो रहा है … इससे दूर ही रहना चाहिए।
कमल खुद को असहाय स्थिति में पा रहा था। इतना असहाय उसने तब भी महसूस नहीं किया जब तंगहाली ने उसका जीवन नरक बना दिया था।
बीते दिनों की स्मृति में खोए कमल की आंखों से सिर्फ आंसू बह रहे थे। मानो आंसू ही उसके सवालों का जवाब बन कर आंखों से  निकल रहे थे।
—————————-
लेखक बी.काम प्रथम वर्ष के छात्र  हैं।
———————————————-
पता ः अमितेश कुमार ओझा 
भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) पिन ः721301 जिला प शिचम मेदिनीपुर संपर्कः 08906908995
[email protected]

error: Content is protected !!