मूल: सत्तार पीरज़ादों
दांह ऊनाईं
मूँ कडहिं तोखे चयो हो:
तूँ हींअ न करि?
जींअ वणेई तींअ तूँ करि
पर असांजूँ किस्मतूँ
कुछ त बदलाइज खणी।
जे खंया हा हथ असां
ऐं कयूँ मिन्नथूँ अव्हाँ खे
से मञ्जीं जे तूँ वञीँ
फर्क़ु कहड़ों खुदाईअ मँझ ईन्दो,
पर भलो थीन्दो समूरी सिंधु जो
कींअ धरती ठूंठ आ बणजी वई
शाहु दरिया बि व्यो आहे सुकी
रुञ पयो भासिजे संदस ही पेटु भी
जो व्यो खारो समूरो आहि थी
केतरा पाणी, मिट्टीअ जे लाइ था सिकंदा वतनि
ऐं ज़मींनूँ संढ थ्यूं थीन्द्यूं वञन
बरसात जी हिक बूंद लइ माण्हूं सिकन
थर वासी बर वासी
बकरालु नाहि बहिक्यो
केतरा ई साल थिया
चहिरो न कहिंजो महिक्यो
ऐ ख़ुदा! तूँ तरस खाऊ
मिन्थ कहिंजी ई ऊनाइ
मींह खे मोकल डई छडि
प्यो वसे थरु बरु मथे
:अड़ अत्तर ऐं वसे काछे मथे
जींअ वञे सैराब थी
सिंधु जी हीअ ठूंठ धरती !
पता: फ्लैट 213 C, पार्क एवेन्यू, प्लॉट न. 8 , कराची 75290
M-0345 2217471\ 0308 2563417, sattar_pirzada@ yahoo.com
सिंधी अनुवाद: देवी नागरानी
फरियाद कर क़बूल
मैंने कभी तुमसे कहा
तुम ऐसा मत करो ?
जैसा चाहो वैसा करो
पर हमारी क़िस्मतें
कुछ तो बदल दो !
गर उठाए थे हाथ हमने
तो की मिन्नतें तुम्हारी
वे अगर तुम मान लो
कौन सा फ़र्क पड़ जाएगा ख़ुदाई में
पर भला होगा संपूर्ण सिन्ध का
देखो कैसे ठूंठ बन गई है धरती ?
दरिया शाह भी सूख गया है
मरीचिका लगा रहा है उसका द्वीप
हो गया है तमाम खारा
कितने तरस रहे हैं मीठे पानी को
और ज़मीनें बंजर हुई जा रही हैं
बारिश की बूंद को आदम तरसा
थल वासी, बन वासी
गड़रिया नहीं हुआ हर्षित
कितने साल हैं गुज़रे
चेहरा नहीं खिला किसीका
ऐ ख़ुदा! तू रहम कर
किसी की मिन्नत तो पूरी कर
बारिश को रिहा कर दे
बरसती रहे जल-थल पर यूं
कि नखलिस्तान हो जाए
सिन्ध की यह ठूंठ धरती!
पता: ९-डी॰ कॉर्नर व्यू सोसाइटी, १५/ ३३ रोड, बांद्रा , मुंबई ४०००५० फ़ोन: 9987938358