
कश्मीर और नागालैंड दोनों ही भारत के प्रांत है लेकिन इन दिनों इन दोनों प्रांतों में जो हालात उपजे है उससे ऐसा लगता है कि कश्मीर पर पाकिस्तान और नागालैंड पर बांग्लादेश हावी है। पहले बात नागालैंड की। नागालैंड के दीमापुर की जेल में सैंकड़ो लोग जबरन घुसे और एक बलात्कारी को बाहर निकाल कर इतना पीटा कि उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया। इस घटना के बाद पूरे नागालैंड और जुड़े हुए प्रदेश असम की हालात बहुत ही संवेदनशील हो गए है। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में कफर््यू लगा दिया गया है। इतना ही नहीं सेना को भी तैनात कर दिया गया है। यानि नागालैंड की सरकार अपने प्रशासन से नियंत्रण नहीं कर सकती है। जिन लोगों ने दीमापुर की जेल से बलात्कारी को बाहर निकाला उस पर आरोप है कि उसने एक महिला के साथ बेरहमी से बार-बार बलात्कार किया। आरोप है कि यह व्यक्ति बांग्लादेश से आया था। असम और नागालैंड आदि राज्यों में बांग्लादेश से आए लोगों की वजह से सामाजिक तानाबाना नष्ट हो रहा है। जिस नागालैंड युवती के साथ बेहरमी से बलात्कार हुआ उसकी आवाज तो अब दब गई और उन लोगों के विरूद्ध कार्यवाही की मांग की जा रही है जिन्होंने बलात्कारी को मार डाला। यहां यह सवाल उठता है कि आखिर लोगों को कानून अपने हाथ में लेने की जरूरत क्यों पड़ी? यदि नागालैंड की सरकार बलात्कारी के खिलाफ सख्त कार्यवाही करती तो लोगों का गुस्सा इस तरह सामने नहीं आता। गुस्साए लोगोंं का कहना रहा कि सरकार ने जो रवैया अपनाया है उससे तो यह बलात्कारी थोड़े ही दिन में जेल से बाहर आ जाता। इससे पहले भी ऐसी अनेक घटनाएं हुई जिसमें बांग्लादेश से आए लोगों ने बलात्कार और इस तरह के अन्य अपराध किए लेकिन थोड़े ही दिनों में जेल से बाहर आ गए। असल में उत्तर पूर्व के अधिकांश राज्यों में बांग्लादेश से आए लोगों की वजह से हालात बेहद खराब हो गए है। स्थानीय नागरिकों का जीना दूभर है। गंभीर बात यह है कि बांग्लादेशियों को भारत की नागरिकता भी मिल रही है। राजनीतिक दल वोट के खातिर स्थानीय नागरिकों को ही सद्भावना का पाठ पढ़ाते रहते है। वोट की राजनीति के चलते ही स्थानीय नागरिकों की प्रभावी सुनवाई भी नहीं हो रही है।
इधर जम्मू कश्मीर में नव निर्वाचित सीएम मुफ्ती मोहम्मद सईद ने एक बार फिर अपने सहयोगी दल बीजेपी के लिए समस्या खड़ी कर दी है। सईद ने अब कहा है कि आतंकवाद के नाम पर जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उन्हें जेलों से छोड़ा जाएगा। इसके साथ ही 7 मार्च को ही बारामूला जेल से मुस्लिम लीग के प्रांतीय अध्यक्ष मसरत आलम को रिहा कर दिया गया। मसरत कश्मीर को आजाद करने की मांग करता रहा है। इससे पहले भी सईद कह चुके है कि आतंकवादियों की मेहरबानी से ही जम्मू कश्मीर में विधानसभा के चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से हुए। यानि जब आतंकवादियों ने सईद को सीएम बनवा दिया तो अब सईद की भी यह जिम्मेदारी है कि जेलों में बंद आतंकवादियों को रिहा किया जाए। हालांकि भाजपा ने स्वयं को सईद के बयान से अलग कर लिया है लेकिन केन्द्र में भाजपा की सहयोगी शिव सेना ने कश्मीर में भाजपा और सईद की पार्टी पीडीपी के संबंधों में आग में घी डालने वाला काम किया है। शिवसेना ने सईद को गीदड़ की औलाद कहा है। सीमए बनने के बाद सईद जिस प्रकार आतंकवादियों का लगातार समर्थन कर रहे है उससे पाकिस्तान को मदद मिल रही है। जिस भाषा का इस्तेमान सईद कर रहे है उसी भाषा का इस्तेमान पाकिस्तान भी करता रहा है। यानि कश्मीर से लेकर उत्तर पूर्व के राज्यों तक पाकिस्तान और बांग्लादेश की वजह से भारत के हालात संवेदनशील हो रहे है। देखना है कि इन नाजुक हालातों से पीएम नरेन्द्र मोदी किस प्रकार मुकाबला करते है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511