
राजस्थान में वसुंधरा राजे इस समय न तो कोई युद्ध लड़ रही है और न ही अपनी किसी सल्तनत को बचाने के लिए रणनीति बना रही है। वसुंधरा राजे इस समय लोकतांत्रिक व्यवस्था में पांच साल के लिए राजस्थान की सीएम बनी हुई है। 2018 से पहले वसुंधरा राजे को कोई ताकत सीएम के पद से नहीं हटा सकती है। 2018 में यदि राजे की सत्ता छीनी तो इसका श्रेय किसी राजा की तलवार नहीं बल्कि जनता का वोट होगा। लोकतंत्र में राजशाही नहीं लोकशाही होती है। यानि जनता तय करती है कि सीएम और पीएम की कुर्सी पर किसको बिठाना है। राजशाही से मिलकर लोकशाही में आई वसुंधरा राजे को इतनी तो समझ होगी ही। 13 मार्च को राजस्थान विधानसभा में राजे ने अपने नजरिए से कह दिया ‘प्राण जाए पर वचन न जाएÓ। समझ में नहीं आता कि लोकशाही में राजशाही की भावना को वसुंधरा राजे ने क्यों प्रकट किया? दोबारा सीएम बनने के बाद राजे ने खुद माना है कि लोकसभा स्थानीय निकाय और पंचायत राज के चुनाव की वजह से वह अपने वचनों को पूरा नहीं कर सकी है। राजे बताए कि क्या प्रदेश के किसी नागरिक ने उनके वचन पूरे न होने पर प्राण त्यागने की मांग की है? शायद ही किसी ने हिमाकत की होगी। वसुंधरा राजे को प्राण गंवाने की कोई जरूरत नहीं है और न ही राजस्थान की जनता ऐसा चाहती है। वसुंधरा राजे जिस प्रकार देवी-देवताओं के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करती है उससे तो प्रदेश की जनता भी चाहती है कि राजे सौ वर्ष पूरे होने के बाद भी जीवित रहे। प्राण जाए पर वचन न जाए की बात कहने की बजाय अच्छा होता कि स्वयं राजे अपने वचनों के मुताबिक काम करना शुरू कर देती। राजे ने कहा कि इस साल एक लाख बेरोजगार लोगों को नौकरी दी जाएगी। राजे ऐसे वचन पहले भी दे चूकी है लेकिन मैं यहां एक छोटा सा उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं। राजे को याद होगा कि राजस्थान लोक सेवा आयोग के दो टुकड़े करते हुए राजे ने अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग का गठन कर दिया था यानि बाबू स्तर की भर्तियां नया आयोग करेगा। राजे ने इसके लिए आयोग के सदस्य आदि भी नियुक्त कर दिए लेकिन आयोग ने आज तक भी अपना काम शुरू नहीं किया है। प्राण गंवाने के बजाय राजे इस आयोग को ही सक्रिय कर दे तो हजारों युवाओं को नौकरी अपने आप मिल जाएगी। यह काम तो राजे की सीमाओं में है भी। इसी प्रकार 8 माह गुजर जाने के बाद भी राजस्थान लोक सेवा आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो पाई। राज्य सरकार के लिए इसे शर्मनाक ही कहा जाएगा कि 7 की बजाय आयोग में मात्र 3 सदस्य काम कर रहे है। आयोग द्वारा आयोजित सभी परीक्षाएं विवादों में उलझी हुई है। एक ओर वसुंधरा राजे एक लाख लोगों को नौकरी देने का वचन देती है तो दूसरी ओर जिन संस्थाओं को भर्ती करनी है उन संस्थाओं का हाल बुरा कर रखा है। यदि राजे को अपने वचन की इतनी ही चिंता है तो दोनों आयोगों के हाल सुधार दे। सरकार से आयोगों के हाल तो सुधारे नहीं जा रहे और विधानसभा में कहा जा रहा है प्राण जाए पर वचन न जाए। वसुंधरा राजे प्रदेश की जनता को यह बताए कि किन कारणों से दोनों आयोगों को सक्रिय नहीं किया जा रहा? जब तक यह दोनों आयोग सक्रिय नहीं होंगे तब तक वसुंधरा राजे अपने वचन के मुताबिक एक लाख लोगों को रोजगार नहीं दे सकती।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511