मूल: नरेंद्र मोहन

शब्द एक आसमान
लौटता हूँ शब्द में
शब्द में एक कुआँ है
जिसमें झाँकता हूँ
शब्द में एक समुद्र है
जिसमें उतरता हूँ
शब्द में एक आसमान है
जिसमें उड़ता हूँ
झांकना और उतरना और उड़ना
क्रियाएँ नहीं है मेरे लिए
अपने ‘होने’ को पाना है
अनन्त में!
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सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी

शब्द हिकु आसमानु
मोटां थो शब्द में
शब्द में हिकु खूह आहे
जन्हिमें लीओ पायाँ थो
शब्द में हिकु एक समुढ आहे
जन्हिमें लहां थो
शब्द में हिकु आसमानु आहे
जन्हिमें उडामाँ थो
लीयो पाइण, लहणु, उडामण
फ़क़त कारवायूं नाहिन मुहिंजे लाइ
पाहिंजे ‘हुअण’ खे पाइण आहे
अनन्त में !
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