यह कैसा राजस्थान दिवस

चेतन ठठेरा
चेतन ठठेरा

-चेतन ठठेरा- राजस्थान भर में सोमवार को 66 वां राजस्थान दिवस मनाया गया । इस अवसर पर प्रदेश भर मे विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए । राजधानी जयपुर में भी राजपथ पर सांस्कृतिक कार्यक्रम सहित राजस्थान  की संस्कृति की झलक को दिखाते हुई झांकियां निकाली गई । इस कार्यक्रम में सूबे की प्रप्रमुख मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, महामहिम राज्यपाल कल्याण सिंह और कई मंत्रीगण उपस्थित थे । राजस्थान दिवस का मतलब राजस्थान की कला संस्कृति धरोहर को बताना है । अपन को पता है और आप भी शायद यह जानते होगे फिर भी बताना जरूरी है कि राजस्थान की पहचान राजस्थान की पहचान यहा की प्राचीन बडी-बडी आकृषक हवेलियां और हवेलियों पर शानदार नक्काशी प्राचीन धरोहरे यहां का मौसम, खान पान मक्की की रोटी, बाजरे की रोटी ,यहां विभिन्न तरह की बोली जाने वाली बोली और बोल मे शक्कर जैसी मिठास एक दूसरे के प्रति प्यार और यहां की कला यह सब राजस्थान की पहचान है ।  हर साल भाजपा – कांग्रेस राजस्थान दिवस मनाती है मात्र खाना पूर्ति के लिए हर जिले को 1-1लाख रूपये दिए जाते है कार्यक्रम के लिए और यह बजट व राजस्थान दिवस के नाम पर  केवल सरकारी भवनो पर विधुत सज्जा,  रंगोली, व कला के नाम पर स्कूली बच्चों का कार्यक्रम बस यह होता है राजस्थान दिवस । मुझे हंसी आती है नेताओं की बुद्धि पर जिस प्रदेश की पहचान कला, संस्कृति, धरोहर से है उसके लिए आजतक किसी ने गंभीरता से नही सोचा । राजस्थान में आज भी कई प्राचीन हवेलियां, इमारतें, किले देखरेख के अभाव में खण्डहर, जीणर्शीण हो रहे हैं जिनके संरक्षण, देखभाल के लिए आजतक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया नतीजन यह विरासते खत्म होने के कगार पर जब यह धरोहरे, विरासते खत्म हो जाएगी तो कहा बचेगा राजस्थान ।यही नही प्रादेशिक फिल्मों के  क्षेत्र में भोजपुरी,  मराठी, हरियाणवी, बंगाली फिल्मों को उनकी सरकारो द्वारा संरक्षण और बढावा देने के लिए योजना व रियायतें दी जेती है इससे वहां के कलाकार मेहनत व लगन से अपने प्रदेश की संस्कृति को आगे बढा ररहै है परंतु राजस्थान में राजस्थानी फिल्मों के लिए सरकारी सूतर पर कोई राहत व योजना नही है नतीजा यह है की राजस्थानी भाषा की फिल्मे शुरू होने से पहले ही दम तोड जाती है ।सरकार द्वारा राजस्थान के कलाकारो को कोई प्रोत्साहन , सुविधा नही दी जाती बल्कि उल्टे उनका शोषण किया जाता है।लोक कलाकारो को पर्यटन विभाग राजस्थान की लोक कला दिखाने के नाम पर देश विदेश मे भेजता है परंतु मेहनताना के नाम पर मात्र एक हजार से दो हजार रुपये दिए जाते है उस राशी से कलाकार को ड्रेस, श्रृंगार आदि का खर्च उसी मे शामिल होता है ।सबसे बडी आश्चर्य की बात यह  है की राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी भाषा को आज तक मान्यता नही मिल पाई है क्यों जब गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा मे विधानसभा में वहां की भाषा मे मंत्री शपथ लेता है लेकिन राजस्थान में राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं होने से मंत्री राजस्थानी भाषा में शपथ नही ले सकता । 66 साल बाद भी राजस्थान की यह स्थिति है तो फिर राजस्थान दिवस मनाने का क्या औचित्य है । क्या यही है राजस्थान दिवस ? सही माने में राजस्थान दिवस मनाना है तो राजस्थानी भाषा को मान्यता दें, लोक कला और कलाकारो को प्रोत्साहन प्राचीन धरोहरे, इमारतों  हवेलियों को संरक्षण दे उनका जीर्णोद्रार करे तभी सही मायने में राजस्थान  दिवस की सार्थकता है ।

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