चेतना के विभिन्न स्तर

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
चेतना के तीन स्तर माने गए हैं:—–
1. चेतन

2. अवचेतन

3. अचेतन

चेतन स्तर——- चेतन स्तर पर वे सभी बातें रहती हैं जिनके द्वारा हम सोचते समझते और कार्य करते हैं । चेतना में ही मनुष्य का अहंभाव रहता है और यहीं विचारों का संगठन होता है।
अवचेतन स्तर——– अवचेतन स्तर में वे बातें रहती हैं जिनका ज्ञान हमें तत्काल (तत्क्षण ) नहीं रहता , किन्तु उचित समय पर उन्हें याद किया जा सकता हैं ।
अचेतन स्तर——– अचेतन स्तर में वे बातें रहती हैं जो हम भूल चुके हैं और जो हमारे यत्न करने पर भी हमें याद नहीं आतीं और विशेष प्रक्रिया से जिन्हें याद कराया जाता है |
जो अनुभूतियाँ एक बार चेतना में रहती हैं,वे ही कभी अवचेतन मन मे और कभी अचेतन मन में चली जाती हैं। ये अनुभूतियाँ सर्वथा निष्क्रिय नहीं होतीं ,वरन् मनुष्य को अनजाने में ही सही प्रभावित तो करती ही रहती हैं।
चेतना का विकास
सामाजिक वातावरण के संपर्क से चेतना विकसित होती है । वातावरण के प्रभाव से मनुष्य नैतिकता, अनैतिकता, औचित्य और व्यवहारकुशलता प्राप्त करता है, इसे चेतना का विकास कहा जाता है। विकास की चरम सीमा में चेतना निज स्वतंत्रता की अनुभूति (अभीव्यक्ति) करती है , चेतना सामाजिक बातों को प्रभावित कर सकती है और उनसे प्रभावित भी होती है ,यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि चेतना इस प्रभाव से अपने आपको अलग भी कर सकती है। चेतना की इस प्रकार की अनुभूति को शुद्ध चैतन्य अथवा प्रमाता ,आत्मा आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। इसकी चर्चा चाल्र्स युंग,स्पेंग्ल,विलियम ब्राउन आदि विद्वानों ने की है, इसे देशकाल की सीमा के बाहर माना गया है।
कर्म की सफलता चेतना के स्तर पर होती है
दुनिया का कोई भी देश भौतिक स्तर पर किसी भी क्षेत्र में चाहे कितनी ही उन्नति कर ले। लेकिन विकास का किसी भी क्षेत्र में श्रेष्ठता का स्तर पाने में उस देश के नागरिकों की चेतना में जागृत ज्ञान का होना ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है । क्योंकि चेतना के जागृत होने अर्थात् उसमें ज्ञान के होने पर ही हम किसी भी क्षेत्र में सफलता और श्रेष्ठता प्राप्त कर सकते हैं। भारत के पास यह ज्ञान हजारों सालों से परम्परा से रहा है । इसलिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति,समाज,राष्ट्र और विश्व की सामूहिक चेतना में प्रकृति की साम्यता बनी रहे ,सत्य का वर्चस्व बना रहे । चूंकि ज्ञान का निर्माण तो चेतना में ही होता है ,इसलिए यह आवश्यक है कि हमारी चेतना का स्तर उच्च हो । वह जागृत,स्वप्न और सुसुप्ति की चेतना न होकर ऊंचे स्तर की चेतना होनी चाहिये ।
चेतना स्तर के विभिन्न आयाम—–
हिम्मत :—वास्तविक शक्ति का पहला स्तर हिम्मत रखना है , इस स्तर पर आपको जीवन चुनौतियों और रोमांच से भरा हुआ नजर आने लगता है |आप महसूस करने लगते हैं कि व्यक्तित्व विकास में आपकी रूचि लगातार बढ़ रही है, सिर्फ अतीत को दोहराते रहने के बजाय आप भविष्य को अपने अतीत से बेहतर होता हुआ देखने लगते हैं |
निष्पक्षता :—-निष्पक्षता स्तर का मूल भाव है’जियो और जीने दो'( LET LIVE AND LET OTHERS TO LIVE)है | निष्पक्षता स्तर लचीला,तनाव मुक्त और स्वतंत्र होता है |हालात चाहे जैसे भी हों चाहे अनुकूल या प्रतिकूल आप अपना संतुलन नही खोते हैं|आपको कुछ भी साबित करने की कोई जरूरत नहीं होती |आप सुरक्षित महसूस करते हैं और दूसरे लोगों के साथ भी आसानी से मेलजोल बढ़ा लेते हैं|वेलोग जो कि आत्मनिर्भर या स्वनियोजित (self-employed)होते हैं, वें इसी स्तर यानी निष्पक्षता स्तर पर होते हैं |निष्पक्षता स्तर आत्मसंतोष (complacency)कास्तर है| निष्पक्षता स्तर मेंआप अपनी जरूरतों का ख्याल तो रखते हैं किन्तु आगे बढ़ने के लिए खुद पर अनावश्यक दबाव और बोझ नहीं डालते है | निष्पक्षता स्तर प्राप्त मनुष्य“सन्तोषी परम सुखी जीवन” के मन्त्र में विश्वास रखते हैं|
तत्परता —-अब जबकि आप मूल रूप से सुरक्षित और आरामदायक स्थिति में होते हैं,तबआप और अधिक प्रभावी ढंग से अपनी ऊर्जा का उपयोग करना प्रारम्भ कर देते हैं |अब सिर्फ’काम चलने’से बात नहीं बनती |आप अपने काम को उत्क्रष्ट तरीके से करने के बारे में सोचने लगते हैं |आप ऐसी चीजों,टाईम-मैनेजमेंट,उत्पादकता(productivity)और खुद को व्यवस्थित (organised)करने,के बारे में विचार करने लगते हैं जो कि’निष्पक्षता’के स्तर पर आपके लिए इतना जरूरी नहीं होता | तत्परता स्तर ,इच्छाशक्ति औरआत्म-अनुशासनके विकास का होता है |तत्परता स्तर प्राप्त व्यक्ति समाज के’सैनिक’होते हैं | वे चीजों को अच्छे ढंग से करते हैं और ज्यादा शिकायतें नहीं करते |तत्परता स्तर पर आपकी चेतना, व्यवस्थित और अनुशासित होती हैं |
स्वीकृति :——स्वीक्रति स्तर में आप के भीतर एक जबरदस्त बदलाव आने लगता है और आपके अंदर,लगातार सचेत रहकर जीवन जीने की संभावनाएं,जन्म लेने लगती हैं | ‘तत्परता’के स्तर पर आप खुद को सक्षम बना चुके होते हैं ,और अब आप अपनी काबलियत का सही इस्तेमाल करना चाहते हैं |यह लक्ष्यों को निर्धारित करने और उन्हें हासिल करने का स्तर होता है |हालांकि हव्किंस नें इस स्तर को’स्वीकृति’का नाम दिया है,लेकिन बुनियादी तौर पर इस स्तर का अर्थ है कि “आप दुनिया में अपनी भूमिका की जिम्मेदारी स्वीकार करना शुरू कर देते हैं “|स्वीक्रति स्तर में अगर आपके जीवन में आपको कोई बात सही नहीं लगती है तो आप पता लगाते हैं कि आपको क्या चाहिए और फिर आप इसे बदल देते हैं|आप अपने जीवन को उसकी सम्पूर्णता (broadness)में साफ़-साफ देखना शुरू कर देते हैं |इस स्तर पर बहुत से लोग अपना कैरियर बदल देते हैं, एक नए बिजनेस की शुरू हाथ करते हैं,या अपनी दिनचर्या अथवा अपने भोजन में बदलाव भी करते हैं|
विचार :———–विचार स्तर पर आप निचले स्तरों के भावनात्मक-पहलुओं (emotional aspects)को पीछे छोड कर आगे बढ़ जाते हैं फिर स्पष्ट रूप से और तर्क-वितर्क करते हुए सोचने लगते हैं|स्टीव पव्लिना के अनुसारजब आप विचार स्तर पर पहुँचते हैं तो आपकी तार्किक-शक्ति (reasoning ability) पूरी तरह से विकसित हो चुकी होती हैं |आइंस्टीन और फ्रायड विचार स्तर की सबसे ऊँची अवस्था पर थे |साधारणतया यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अधिकाँष लोग अपने पूरे जीवन में इस स्तर पर कभी नही पहुँच पाते हैं |
प्रेम :———-प्रेम स्तर मानवता के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करने का होता है |ज़रा गांधी,मदर टेरेसा,अल्बर्ट स्च्वेइत्जेरके बारे में सोचिए|प्रेम स्तर पर आप पाते हैं कि आपसे से भी बड़ी एक शक्ति आपको रास्ता दिखा रही है ,यह त्याग करने जैसा अनुभव होता है |आपका अंतर्ज्ञान (intution) बेहद शक्तिशाली हो जाता है |महात्मा गांधी,मदर टेरेसा,अल्बर्ट स्च्वेइत्जेर जैसे महामानवों ने इस स्तर को प्राप्त कर लिया था | हव्किंस के मुताबिक़ विरले व्यक्ति ही अपने पूरे जीवनकाल (lifetimes)में इस स्तर तक पहुँच पाते हैं |
आनंद :—–आनदंस्तर संतों (saint ),ज्ञानीयों एवं आध्यात्मिक गुरुओं (Spiritual Guru) का होता है |ऐसे लोगों के सामीप्य में रहने से,मनुष्य को असीमितसुकून एवं आंतरिक खुशी का एहसास होता है | आनंद स्तर पर जीवन पूरी तरह से तालमेल (synchronicity)और अंतर्ज्ञान से निर्देशित होता है |अब लक्ष्यों को निर्धारित करने और उन्हें हासिल करने के लिए विस्तृत योजनाएं बनाने की जरूरत नहीं होतीहै, आपकी चेतना का विस्तार आपको एक बहुत उच्च स्तर पर काम करने की क्षमता प्रदान करता है | मृत्यु का एक करीबी अनुभव आपको अस्थायी तौर से इस स्तर पर पहुंचा सकता है|
शांति :——शांति स्तर सम्पूर्ण ज्ञान-प्राप्ति (transcendence) का स्तर है|हव्किंस के मुताबिक 1करोड़ व्यक्तियों में से केवल एक ही व्यक्ति इस स्तर पर पहुँच पाता है |
ज्ञानोदय :——– ज्ञानोदय स्तर मानव-चेतना का यह उच्चतम स्तर है,जहां पर मानवता दिव्यता(divinity)से गले मिलती है | यह स्तर बेहद दुर्लभ है |ज्ञानोदय स्तरभगवान् कृष्ण,महात्मा बुद्ध, भगवान महावीरस्वामी और यीशु मसीह का स्तर है|इस स्तर पर स्थित लोगों के बारे में सिर्फ विचार करने से ही मनुष्य अपने चेतना स्तर में अभिव्रद्धी करने में सक्षम बन जाता है |
वास्तविकता में मनुष्य के लिये अपने वर्तमान स्तर से एक स्तर ऊपर उठना भी बेहद कठिन हो सकता है |
हव्किंस के अनुसार पृथ्वी पर85% स्त्री-पुरुष‘हिम्मत’के स्तर से नीचे के स्तरों पर जीते हैं |
सकंलन कर्ता — डा. जे. के. गर्ग
सन्दर्भ (References es)—-विकिपीडिया,Anthropology of Consciousness,Journal of Consciousness Studies,Cognition Psyche,Science&Consciousness Review,ASSC e-print archivecontaining articles, book chapters, theses, conference presentations by members of the ASSC.,StanfordEncyclopediaofPhilosophy,Levels of Consciousness, bySteve Pavlina),डेविड आर. हव्किंस,अपनी किताबPower vs. Force,dhyan dhyanam,.only my health.com,Fractal Enlightenment.com-ways-to-expand-your-consciousness. आदि|

1 thought on “चेतना के विभिन्न स्तर”

Comments are closed.

error: Content is protected !!