पत्रकार की व्यथा , जान हथेली पर नजर समाचार पर

renu sharmaहर खुशी और गमीं की खबर में साथ निभाने वाला मीडिया जिस पर राजनीतिज्ञ, सरकारी नौकर , व्यवसायी सभी मीडियाकर्मीयों के हाथ धोकर पिछे लग गये हैं । जंहा देखों वही मीडिया को नीचा दिखाना , पत्रकारों को जान से मारना या मारने की कोशिश करना तो कभी मीडियाकर्मी को अपशब्द कहने जैसी घटनायें हो रही हैं। समझ में नहीं आता ऐसा क्या हो गया हैं जिसके कारण ऐसा हो रहा हैं। ऐसा करने से क्या पत्रकार सच लिखना छोड देगे या अखबार और चैनल बन्द हो जायेगे? क्या अखबार और टी.वी. चैनल्स से नेताओं , पुलिस और माफियों के कारनामों को उजागर करने वाले समाचार गायब हो जायेगे ?
पानी नहीं आये तो पत्रकार , बाढ आये तो पत्रकार , रोड टुटी हुई है तो पत्रकार , स्कूल में अध्यापक नहीं है तो पत्रकार , कोई रिश्वत मांगता हैं तो पत्रकार , नेताओं को वोट चाहिये तो पत्रकार , हर खुशी और गमी हर मौसम में 24 घण्टे एक पत्रकार को बुलाया जाता हैं फिर भी सच लिखने की कीमत पत्रकार को खुद जिन्दा जलकर चुकानी पडती हैं। उत्तरप्रदेश के शाहजहॉपुर के निर्भीक और बेबाक पत्रकार जोगेन्द्र को अपनी जान गंवानी पडी , जोगेन्द्र का अपराध था उत्तरप्रदेश के राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा के काले कारनामों को उजागर करना। इसी मंत्री के ईशारों पर कोतवाल प्रकाशराय ने जोगेन्द्र को झूठे मुकदमें में फंसाया , साथ ही जोगेन्द्र के घर दंबिश के लिये गयी पुलिस और इंस्पेक्टर ने जोगेन्द्र को पेट्रोल डालकर फंुक दिया । यदी कोई अपराधी होता हैं तो भी पुलिस का काम अपराधी को थाने मे लाना और कोर्ट में पेश करना होता हैं किसी को पेट्रोल डालकर जलाना नहीं।
मीडियाकर्मीयों के साथ बदसलूकी, उन्हे धमकाना , उन पर हमला करना या उन्हे जान से मारने की धमकी देना जैसी घटनायंे आम हो गयी हैं , राजस्थान में ही नही बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसी घटनायें हो रही हैं। इसी घटना के दो दिन बाद कानपुर में एक पत्रकार दीपक मिश्रा को गोलियंा मार कर मौत की दहलीज पर पंहुचा दिया गया क्योकिं पत्रकार का कसूर था कि उसने क्षेत्र में चल रहे जुंआ खाने की शिकायत पुलिस से कि थी। इसी प्रकार लोकेश केसरी के संपादक लोकेश वर्मा पर भी 20 अगस्त 2012 में हमला हुआ था और अस्पताल ले जाते समय रास्ते में उनकी मौत हो गयी , उनका परिवार आज भी सरकार से न्याय की गुहार लगा रहा हैं । कुछ समय पूर्व जयपुर में कुछ पत्रकारों को आरटीओं से पैसा लेते हुए गिरफ्तार किया पुलिस का काम था अपराधियों पकडना वह पुलिस ने किया पत्रकरों को गिरफ्तार किया सही किया लेकिन मुझे समझ में नही आया कि आरटीओं ने ऐसी क्या गलती करी थी जिसके कारण आरटीओं ने पत्रकारों को रिश्वत दी। कानूनी रूप से रिश्वत लेने वाला और रिश्वत देने वाला दोनों ही अपराधी थे फिर भी सिर्फ पत्रकारों को ही गिरफ्तार किया गया ।
हाल ही में शाहजहॉपुर में पत्रकार की हत्या के मामले नाम दर्ज हो जाने के पश्चात राज्यमंत्री का नाम दिखाने वाले न्यूज चैनलों को मंत्री ने अपने कारिंदों के जरिये बाद में अंजाम भुगतने की धमकी भिजवायी । ऐसी घटना और भी हो चुकी है जब पत्रकार पर किसी समाचार को प्रकाशित नही करने का दबाव डाला जाता हैं और पत्रकार को पैसा देकर खरीदने की कोशिश की करते हैे कुछ पत्रकार पैसा लेकर उसे प्रकाशित नहीं करते और कुछ पत्रकार जो पैसा नहीं लेते उस पत्रकार को डराया-धमकाया जाता हैं कुछ मामलों में तो सबूत को मिटाने के लिये पत्रकार की हत्या कर दी जाती हैं। ये तो कुछ मामले थे जो उजागर हो गये पता नहीं ऐसे कितने मामले है जिन्में कई पत्रकार समाज सेवा के लिये तो कुछ सच लिखने के कारण काल की गर्त में समा गये ।
मीडिया के बारे में हमारे नेताओं की सोच भी बडी अजीब है “प्रेस्टीट्यूट से और उम्मीद भी क्या की जा सकती हैं “ ये शब्द किसी साधारण व्यक्ति ने नही बल्कि एक जिम्मेदार केन्द्रीयमत्री और पूर्व सेनाअध्यक्ष जनरल विजयकुमार सिंह ने मीडिया के लिये था कि ये ट्विट किसी ओर के लिये नहीं बल्कि मीडिया के लिये कहा गया हैं यानि मीडिया को यौनकर्मी, वेश्या की पद्वी दी गयी हैं ऐसा बेतुका ट्विट देने के बाद भी इन्होने अपने इंटरव्यू में कहा की मेरा यह ट्विट उन मीडियाकर्मीयों के लिये था जो बात बेताक पर मेरी आलोचना करते हैं। ऐसे में मंत्रीजी को ये कौन समझाये कि मीडिया गलत बात की ही आलोचना करती हैं जब आप खुद ही बेतुका बयान दोगे तो मीडिया आलोचना ही करेगी।
पत्रकार एक सेना के जवान की तरह होता है जिस प्रकार सेना के जवान शस्त्र लेकर देश की सीमा की रक्षा करते है उसी प्रकार एक पत्रकार अपनी कलम और कैमरा रूपी अस्त्र लेकर देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के अलावा जो भी असंवैधानिक कार्य किये जाते है उनके खिलाफ आवाज उठाते हैं मीडिया सरकार और जनता के मध्य एक कडी के रूप में कार्य करता हैं वह संविधान के 19(क) में दी गयी वॉक और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रयोग करते हुए एक आम नागरिक की तरह वॉक और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का उपयोग करता हैं और समाचार लिखता हैं पत्रकारों को सरकार क्या विशेष सुविधा देती हैं ? महान , उपयोगी एंव समाजसेवी जीव जो पत्रकार कहलाता है वह कितना सुरक्षित हैं आओं हम सभी , जो हाल में पत्रकारों के साथ घटनाएं हुई वो देखकर , सुनकर स्ंवय ही अवलोकन करे ।
लोकतन्त्र मे जिस तरह से राजनेता जनता के प्रति जिम्मेदार होते है उसी प्रकार मीडिया भी जनता के प्र्रति जिम्मेदार होता हैं इसी के माध्यम से जनता को सरकार की और सरकार को जनता के बारे में जानकारिया प्राप्त होती हैं। मीडिया समाज के लिये एक आयना हैं जो अच्छा या बुरा सभी के बारे में बताता हैं यदी ये आयना ही टूट जायेगा तो समाज दर्पण कौन दिखायेगा ?
लेकिन सवाल यह है कि लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ मीडिया में काम करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा के लिये सरकार को कुछ करना चाहिये क्योंकि देश-समाज में होने वाले भ्रष्टाचार, नेताओं के काले कारनामें, पुलिस और माफियों के कारनामों को अपने समाचार पत्र , पत्रिका , न्यूज चैनल में प्रकाशित करते हैं जिसके कारण मीडियाकर्मीयों, पत्रकारों के साथ बदसलूकी, उन्हे धमकाना ,उन्हे जान से मारना, उन पर हमला करना , जान से मारने की धमकी जैसी घटनाये आम हो गयी हैं अतः अपनी जान हथेली पर रखकर समाचार लाने वाले पत्रकारों की सुरक्षा की दिशा में सरकार को कदम बढाने चाहिये और मीडिया को सुरक्षित बनाना चाहिये इसके साथ ही मीडिया के नाम का गलत उपयोग करने वाले , प्रेस की आड में अपने काले कारनामों को छिपाने वाले नकली पत्रकारों के खिलाफ भी सख्त कानूनी कार्यवायी करनी चाहिये जिससे मीडिया परिवार बदनाम नहीं हो ।
लेखिका-रेणु शर्मा (पत्रकार)
राजस्थान सचिव-मीडिया एक्शन फोरम

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