अलग कानून है सयानी स्मृति के लिए

ओम थानवी
ओम थानवी
स्मृति ईरानी के फरजीवाड़े की बात निकलने पर एक टीवी बहस (‘मुक़ाबला’, एनडीटीवी पर आज रात आठ बजे) में संबित पात्रा ने जब फिर कहा कि टाइप की त्रुटि है तो मुझे कहना पड़ा – टाइप की गलती ‘ए’ को ‘एस’ लिखने पर कहला सकती है, स्मृति के (तीन) हलफनामों में टाइप की ऐसी त्रुटि कौनसी है? उनका कहना था कि शिक्षण संस्थान का नाम कुछ और टाइप हो गया। मैंने कहा, इससे भी क्या साबित होगा? जहां “B.A.1996” लिखा गया है वहां तो टाइप की गलती कहीं नहीं है? अगर नहीं है तो उनकी बीए की डिग्री, भरती के कागजात, अंक तालिकाएं कहाँ हैं?
बाद के हलफनामों में जो “B. Com. Part-1” की डिग्री बताई गई है, वह भला कौनसी होती है? क्या किसी डिग्री की महज एक वर्ष की पढ़ाई (मान लें वह की होगी) को डिग्री की तरह शैक्षिक योग्यता बताकर पेश किया जा सकता है? मजे की बात देखिए कि शिक्षा मंत्री की डिग्री से संबंधित आरटीआइ में जानकारी देने से इनकार कर दिया गया है! वैसे खबरों में यह आया कि 2013 में स्मृति ने अपने आपको बी-कॉम के लिए दिल्ली विश्व. के पत्राचार पाठ्यक्रम में एनरोल जरूर करवाया था, पर परीक्षा में कभी बैठीं नहीं।
सबसे बड़ी बात – तीन हलफनामों में अगर कोई सही भी है तो केवल एक सही हो सकता है, दो तो झूठ अर्थात कानूनन अपराध ही होंगे। … संबित से मुझे उनसे सहानुभूति होती है कि उन्हें कैसे-कैसे कर्म बचाव के लिए दे दिए जाते हैं।
बचाव के लिहाज से उन्होंने सोनिया गांधी की डिग्री में घपले की बात उठा दी। कांग्रेस के प्रवक्ता अजॉय अपने ढंग से उलझते रहे। मेरा कहना यह था कि यह तो प्रकारांतर से स्मृति के गुनाह का स्वीकार हो ही गया; सोनिया गांधी के अपराध से स्मृति ईरानी के अपराध को सही कैसे ठहराया जा सकता है? फिर स्मृति तो मंत्री पद पर आसीन हैं, और विभिन्न दावों वाली उनकी ‘डिग्रियां’ पूरी तरह संदिग्ध हैं।
इसमें सवाल कानूनी उतना नहीं, जितना कि नैतिक है – कोई शिक्षा मंत्री डिग्रीधारी न हो तब भी चलेगा, आखिर हमारे देश में कितने बड़े विद्वान और साहित्यकार-कलाकार डिग्रीविहीन हुए हैं; लेकिन स्मृति तो स्वयं डिग्री की जरूरत में भरोसा रखती हैं (येल सहित उनके विभिन्न दावों से साफ जाहिर है) तो उनकी डिग्रियां फरजी कैसे? शिक्षा नैतिकता का पर्याय होती है, शिक्षामंत्री ही जहाँ अनैतिक फरजीवाड़े में मुब्तिला हो, वहाँ शिक्षा का हश्र क्या होगा? अकारण नहीं है कि विभिन्न विश्वविद्यालयों से लेकर UGC, IIM, ICHR, NCERT, NBT जैसे संस्थान अपनी स्वायत्तता को लेकर ईरानी राज में बिलबिला रहे हैं।
स्मृति को बचाने की हवाई कवायद पता नहीं कब तक चलेगी! फिर भाजपा में विवादास्पद ‘डिग्री’-धारी वे अकेली तो नहीं हैं। विडंबना यही है कि धोखेबाज तोमर के लिए देश में शायद अलग कानून है, सयानी स्मृति के लिए अलग।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की फेसबुक वाल से साभार

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