बात वर्ष 1942 की है जब गांधी जी की अगुआई में “अंग्रेजों भारत छोडो ” “quiet india” आंदोलन चरम पर था और आंदोलनकारियों की। धरपकड़ भी जोरों पर थी ! तो बाजपाई महाशय भी दशर लिए गए थे लेकिन उन्होंने अह्रेजों को लिख कर दिया था की मेरा इस आंदोलन से कुछ लेना देना नहीं है” जिसके बारे में यह कहा जाता है की वह वायदा माफ़ गवाह बन गए थे परंतु उन्होंने स्वयं इसका खंडन किया है । परंतु यह भी सच है कि उन्होंने यह सब लिख कर दिया था ।
Vajpayee’s confessional statement taken down in Urdu and signed by him, and the magistrate’s note in English.
In 1942, Vajpayee, officially under 16, was already a dedicated and active member of the Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) and well versed with politics. The RSS as a movement had no association with the freedom struggle – choosing, ideologically and politically, not to oppose the British colonial authority. (See accompanying story in this investigation by Manini Chatterjee.) Frontline’s investigation shows that against such a backdrop, contrary to the propaganda of the Sangh Parivar and his own bio-data summary, Vajpayee did not participate in the Quit India movement as a “freedom fighter” in his home village of Bateshwar. In his own characterisation recorded in the interview, he was “a part of the crowd” with no role to play in the militant events in Bateshwar of August 27, 1942 – other than going along with the crowd and witnessing the proceedings. “I related whatever I had seen,” he told Frontline about the nature of his confessional statement. “I did not speak against anybody – I did not claim that…whatever had happened was truly related by me.”
एक और सम्मानित सज्जन हैँ जो फ़ौज के जनरल भी रह चुके हैँ उन्होंने भी बचपन में आर्मी स्कूल में एडमिशन के समय लिख कर ही दिया था की उनकी जन्म तिथि 1950 की है लेकिन जनरल बनने के बाद उन्होंने दावा किया की उनकी जन्म का वर्ष 1951 है । वह यहीं नहीं रुके सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गए थे परंतु वहां से फटकार के बाद ही याचिका वापस ली थी ।
वर्तमान विदेश मंत्री ने तो हद ही कर दी , एक मनी लॉन्डरिंग के भगोड़े अपराधी के पक्ष में सारे कायदे कानून विपरीत और विदेश मंत्रालय की जानकारी के बगैर ही उसके यात्रा प्रपत्रो को ब्रिटेन में बनवाने में मदद की ? वह भी बेशर्मी के साथ? मंत्री पद की शपथ लेते समय प्रत्येक व्यक्ति भारतीय संविधान की शपथ लेता है परन्तु हमें ऐसा लगता है कि हमारी विदेष मंत्री ने शायद भूलवश किसी पडोसी देश के संविधान की शपथ ली होगी ? इसलिए भारतीय संविधान को धता बताने वाले ललित मोदी की सहायता करने में सभी सीमाऔं का उल्घन किया है ।कानून की नजरों में सभी अपराधी एक समान होते है । किसी अपराधी की सहायता करना भी अपराध में शामिल होने के बराबर ही है । ईसलिए इस अपराध की सजा तो जब मिले न भी मिले लेकिन उन्हें त्याग ्पत्र तो तुरंत ही देना चाहिए? क्योंकि भारत सरकार के मंत्रालय किसी प्राईवेट कम्पनी की जागीर नही हैऔर न ही किसी के पिताश्री का खजाना है कि उसे चिट्टी लिख कर बाँटते रहो ? यहां भी चिट्ठी का का ही कमाल है ?
अब हम बात करते है दुसरी महिला कि जो एक प्रदेश की मुख्यमंत्री है । यह भी गजब का संयोग है कि ललित मोदी के साथ इनके भी पारिवारिक संमबन्ध भी बहुत गहरे है ।ईन्होने भी कानून के भगोडे अपराधी के यात्रा संमबन्धी प्रपत्रो को बनाने में सीक्रेट तरिके से मदद की है । असाधारण बात तो यह है कि दोनो ही महिला नेत्रियों ने ललित मोदी के साथ संमबधं होने और मदद करने की बात बहुत ही साहसिक तरिके से मान भी ली है । लेकिन संमबधों की आड में कही न कही आर्थिक लाभ होने से इंकार नही किया जा सकता । जैसा कि समाचारो में है कि मुख्यमंत्री के बेटे और बहु की एक बेनाम सी कम्पनी में ललित ने १०रुपए मूल्य के शेयर की कीमत ९६०००अदा की है और कम्पनी को तेरह करोड रुपये का लाभ पहुचाया है । दूसरी ओर विदेश मंत्री की पुत्री और पति भी आर्थिक अपराधी ललित मोदी से कहीं न कहीं अनुग्रहित है ही। ऐसे में व्यक्तिगत समंबन्धों की बात करना बेमानी ही नही बचकानी हिमाकत के अलावा कुछ भी तो नही है । यहां भी। चिट्टी का ही कमाल ही है?
इसबात से यह सिद्ध होता है की राष्ट्र वादियों का राष्ट्रवाद केवल लोगो को भर्मित करने का एक खोखला नारा मात्र है जो उनको सत्ता के सिहांसन तक पहुँचाने का एक हथियार मात्र है अन्यथा किसी भी राष्ट्र वादी का हृदय हिल जाता है जब वह राष्ट्र के प्रति प्रतिघात करता है ?
S..P.Singh Meerut