चौंक गए न आप। ऐसी सकारात्मक खबर हमारे देश की न्यायपालिका से कैसे आ गई? हां,ये कल्पना ही है। लेकिन बुधवार की रात को सुप्रीम कोर्ट में जब एक आतंकी को फांसी से बचाने के लिए आधी रात बाद से तड़के तक सुनवाई हो सकती है,तो फिर उन लाखों लोगों के लिए क्यों नहीं हो सकती,जो अभी तक दोषी सिद्ध भी नहीं हुए हैंं,लेकिन जेल में सड़ रहे हैं। याकूब को तो कानून सम्मत हर प्रक्रिया की पालना करने और उसे बचने के सभी अवसर उपलब्ध कराने के बाद फांसी हुई। इसके बाद भी देश के वरिष्ठ वकीलों और कथित बुद्धिजीवी रात को सुप्रीम कोर्ट के जज के पास पहुंच गए कि माफी याचिका खारिज होने के बाद फांसी देने की अवधि में 14 दिन का अंतराल होना चाहिए। जाहिर है ये पासा फेंककर वह देश की न्याय व्यवस्था पर याकूब को बचाने का जाल फेंकना चाहते थे। लेकिन नाकाम हो गए। मानवाधिकारों की ठेकेदारी करने और फांसी का विरोध करने वाले कथित बुद्धिजीवी यह अभियान क्यों नहीं चलाते कि अदालतों में जल्दी सुनवाई हो। गरीबों को न्याय मिले। और वो वकील जो बड़े मामलों में रात में भी सुनवाई के लिए हाजिर रहते हैं,क्या दिन में कभी गरीबों की मुफ्त सुनवाई करने की पहल कर सकते हैं? एक सवाल न्यायपालिका से भी,क्यों अमीरों और हाई प्रोफाइल लोगों से जुडेÞ मामलों की तुरन्त और लगातार सुनवाई हो जाती है? क्यों सलमान खान जैसे लोगों को हाथों-हाथ बेल मिल जाती है? क्यों संजय दत्त को बार-बार पैरोल का लाभ मिल जाता है? क्या चिकित्सा और शिक्षा की तरह अब देश की न्याय व्यवस्था भी बड़े और पैसे वालों लोगों के लिए ही रह गई है? ईश्वर करे ऐसा दिन कभी न आएं।
ओम माथुर 9351415379