भारत में क्यों बदल गए हैं? आजादी के मायने

brahmanand rajpurtस्वतंत्रता दिवस पर हवा में लहराता झंडा हमें स्वतंत्र भारत का नागरिक होने का अहसास कराता है। देश के युवा, बच्चे और बुजुर्ग पतंगें उड़ा कर आजादी का जश्न मनाते हैं। हवा में लहराती पतंगें संदेश देती हैं कि हम आजाद देश के निवासी हैं। पर क्या तिरंगा फहराकर या पतंग उड़ाकर आजादी का अहसास हो जाता है? क्या भारत में हर किसी को आजादी से जीने का हक मिल पाया है? हमें जो आजादी मिली, उसका हमने क्या सदुपयोग किया। लोग पेड़ों को काट रहे हैं। आज देश में कन्या भ्रूण हत्या हो रही है। सड़कों पर महिलाओं पर अत्याचार होते हैं। सरेआम महिलाओं से छेडछाड और बलात्कार के किस्से भारत देश में आम हो गए हैं। आज देश में शराब पीकर लोग सडक पर गाडियां चलाते हैं और दुर्घटनाएं करते हैं। ये कैसी आजादी है, जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का हनन कर रहा है।

छिन रहे हैं प्राकृतिक अधिकार?
देश के राष्ट्रीय तिरंगे का तीसरा रंग हरा है जो कि हरियाली का प्रतीक है। लेकिन आज भी देश में प्राकृतिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। देश में अंधाधुंध पेड काटे जा रहे हैं और देश के विकास के नाम पर किसानों कि उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। देश की जनसंख्या बढ़ती जा रही है। हम पेड़ों को काट कर मकान बनाते जा रहे हैं। हमें जहां पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए, पेड़-पौधे लगाकर शहर को हरा-भरा बनाना चाहिए वहीं आज हम कंकरीट के जंगल बना रहे हैं। जनसंख्या बढ़ने से पेड़ तो कट ही रहे हैं, वायु और जल प्रदूषण भी बढ़ रहा है। तो आजादी के इस दिन यह सोचिए कि पर्यावरण के लिए पेड़-पौधे कितने जरूरी हैं? जन-जंगल जमीन पर मनुष्य के स्वाभाविक अधिकार पर कुठाराघात क्यों हो रहा है।

बढ रहे अपराध
बेशक आज हम स्वतंत्रता दिवस की ६८वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं, लेकिन आज भी देश में अपराध दिनों-दिन काम होने कि बजाय बढ रहे हैं। कई युवा एक तरफ जहां हमारे देश का नाम ऊंचा कर रहे हैं। वहीं कई ऐसे युवा भी हैं जो देश को शर्मसार कर रहे हैं। दिनदहाड़े युवतियों का अपहरण, छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न और रोड़ रेज कर देश का सिर नीचा कर रहे हैं। हमें बचपन से महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाता है पर आज भी विकृत मानसिकता के कई युवा घर से बाहर निकलते ही महिलाओं की इज्जत को तार-तार करने से नहीं चूकते। छेड़छाड़ तो आम बात हो गई है। अब तो दिनदहाड़े गोली-मारने जैसे अपराध भी हो रहे हैं। क्या इसी दिन के लिए हमने आजादी हासिल की थी? इसके लिए जरूरत है कि अपने पुलिस तंत्र को मजबूत किया जाए। और समाज में जागरूकता का संचार किया जाए।

समानता का अधिकार ही कहां रहा?
आजादी के ६८ साल बाद भी देश में समानता के अधिकार का हनन हो रहा है। लोग आज भी धर्म,जाति, अमीरी-गरीबी और लिंग के आधार पर भेदभाव करते हैं। हमारे देश से लिंग भेद खत्म होता नजर नहीं आ रहा। कन्या भ्रूण की हत्या बढ़ रही है। जिसका असर लिंगानुपात पर पड़ा है। कई जगह तो ऐसी भी हैं, जहां लड़कियों के पैदा होने पर शोक मनाया जाता है और फिर उन्हें मार दिया जाता है। पढ़ने-लिखने की उम्र में लड़कियों का बाल-विवाह कर दिया जाता है। श्सुकन्या समृद्धि योजनाश् योजना शुरू करने भर से तो यह अनुपात कम नहीं हो सकता। इसके लिए हम सब को आगे आना होगा। स्त्री-पुरुष के बीच फर्क किया जाएगा, तो समानता का अधिकार ही कहां रहा। आज हर महिला भारतीय समाज में धार्मिक रूढ़ियों, पुराने नियम कानून में अपने आप को बंधा पाती है पर अब वक्त है कि हर महिला तमाम रूढ़ियों से खुद को मुक्त करे। प्रकृति ने औरतों को खूबसूरती ही नहीं, दृढ़ता भी दी है। प्रजनन क्षमता भी सिर्फ उसी को हासिल है। समाज में आज भी कन्या भ्रूण हत्या जैसे कृत्य दिन-रात किए जा रहे हैं। पर हर कन्या में एक मां दुर्गा छिपी होती है। यह हैरत की बात है कि दुर्गा की पूजा करने वाला इंसान दुर्गा की प्रतिरूप नवजात कन्या का गर्भ में वध कर देता है। इसमें बाप के साथ समाज भी सहयोग देता हैं। आज जरूरत है कि भारतीय समाज में बच्चियों को हम वही आत्मविश्वास और हिम्मत दें जो लड़कों को देते हैं। इससे प्रकृति का संतुलन बना रहे इसलिए जरूरी है कि इस धरती पर कन्या को भी बराबर का सम्मान मिले। साथ ही उसकी गरिमा भी बनी रहे। इसलिए अपने अंदर की शक्ति को जागृत करें और हर स्त्री में यह शक्ति जगाएं ताकि वह हर विकृत मानसिकता का सामना पूरे साहस और धीरज के साथ कर सके।
आज भी देश में धर्म, जाति और अमीरी गरीबी के आधार पर भेदभाव आम बात है लोग आज भी जाति के आधार पर उंच-नीच की भावना रखते हैं। आज भी लोगों में सामंतवादी विचारधारा घर करी हुयी है और कुछ अमीर लोग आज भी समझते हैं कि अच्छे कपडे पहनना, अच्छे घर में रहना, अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और आर्थिक विकास पर सिर्फ उनका ही जन्मसिध्द अधिकार है। इसके लिए जरूरत है कि देश में शिक्षा और जागरूकता लायी जाए जिससे कि देश में धर्म,जाति, अमीरी-गरीबी और लिंग के आधार पर भेदभाव न हो सके।

बाल अधिकारों का हनन कब तक?
कहने को हमारी आजादी को ६८ साल हो गए लेकिन अब भी भारत देश में बाल अधिकारों का हनन हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाने की उम्र में काम करते दिख जाते हैं। बाल-मजदूरी को सरकार ने खत्म करने का प्रयास किया है। लोग इन बच्चों से पूरा दिन काम करवाते हैं और आजादी के नाम पर कुछ पैसे पकड़ा देते हैं। काम करना शायद इनकी मजबूरी है। इन्हें शिक्षा का अधिकार मिलने पर भी यह दिन क्यों देखना पड़ रहा है।
ऐसा कहा जाता है की शिक्षा सबका मूल अधिकार है लेकिन आज भी भारतीय समाज के आधे से ज्यादा बच्चों तक शिक्षा नहीं पहुँच पा रही है। आज शिक्षा की कमी ही समाज की मूल निर्धनता का कारण है आज भारतीय समाज मैं सबसे ज्यादा काम करने की जरूरत है वो शिक्षा पर ही है। क्योकि आज भी गरीब निर्धन लोगो के बेटा-बेटी शिक्षा से वंचित है अतः आवश्यकता है की भारतीय समाज के गरीब बच्चों तक भी शिक्षा की छाया पहुंचे। जिससे की भारत देश के गरीब तबके का पिछडापन और दरिद्रता दूर हो सके। आज भारत में अधिकतर बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहें हैं। आज लोधी समाज के बच्चों को कुपोषण से निकालने की जरुरत है। जिससे वे बड़े होकर भारतीय समाज कि रचना करें और किसी दूसरे के आगे अपने आप को कमजोर या लाचार महसूस न करे। सभी के सामने कंधे से कन्धा मिलाकर उनमें चलने कि शक्ति हो, तीव्र बुद्धि हो, पूर्ण विकास हो और उनमें समाज मे ही नहीं बल्कि देश कि बड़ी से बड़ी ऊँचाइयों को छूने कि शक्ति हो, ताकत और बुद्धि हो। मैं यह तो नहीं जानता कि हमारा समाज कब सुधरेगा लेकिन उसके प्रवर्तक और कार्यवाहक हमारे भावी नन्हे-मुन्ने ही होंगे।
– ब्रह्मानंद राजपूत, दहतोरा, आगरा
(Brahmanand Rajput) Dehtora, Agra
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