मैं यहां एक बात साफ़ कर दूं कि औरंगज़ेब मुसलमानों के पीर-पैगम्बर या पेशवा नहीं थे सिर्फ एक बादशाह थे और राजा-नवाब तथा बादशाह इंसान होते हैं उनमे गुण भी होते हैं और दोष भी होते हैं !लेकिन फिर भी तंग दिल सियासत करने वालों को अगर जवाब नहीं दिया गया तो वह यह महसूस करेंगे कि हम तर्कहीन हो गए !
मैं इस अफ़सोस के साथ अपनी बात शुरू करना चाहता हूँ कि जिस हिन्दुस्तान की आज़ादी में 1 लाख से ज़्यादा उलमा-ए-दीन ने क़ुर्बानियाँ दी थी ,मदरसा-ए-बरेली के मौलाना अहमद शाह फ़ैज़ाबादी की दर्दनांक शाहदत,अवध की महारानी बेगम हज़रत महल की मुल्क के बाहर बनी हुयी क़ब्र ,1857 की जनक्रांति के नेता बहादुर शाह ज़फर का रंगून में बना हुआ मज़ार, मौलाना मो.अली जौहर की बैतुल मुक़द्दस में की गयी तदफ़ीन और शेख-उल-हिन्द को दी गयी सज़ा तथा हिन्दुस्तान की आज़ादी के बाद सरहद की हिफाज़त के लिए हवलदार अब्दुल हमीद की तारीखी क़ुर्बानी ,वादी-ए-कश्मीर में हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद की सदाओं के साथ शेर और चीते की तरह छलांगे मारता बिर्गेडियर उस्मान और कारगिल की ठंडी पहाड़ियों पर चार्ली मुस्लिम कंपनी के नारा-ए-तकबीर अल्लाह हो अकबर के नारों के साथ बढ़ते हुए क़दम तिरंगे के सम्मान को क़ायम रखने के लिए दुश्मनों की गोलियों से एक के बाद एक शहीद होते हुए चार्ली मुस्लिम कंपनी के राष्ट्रवादी सूरमा ज़फर,क़मर और इरशाद ,करनल अजीत सिंह के नेतृत्व में पाकिस्तानी फौजियों के घमंड को हिन्दुस्तानी बूटों से रौंद कर चार्ली मुस्लिम कंपनी ने तिरंगे के मान-सम्मान को क़ायम कर बारम्बार यह साबित किया है कि हम धर्मनिरपेक्ष मुसलमान ने हिन्दुस्तान को दिल की गहराइयों से अपना मादर-ए-वतन माना है इसकी हिफाज़त और तरक़्क़ी के लिए जिस्म ओ जान हमारे लिए कोई कीमत नहीं रखते !
जब एक तारीख़ साज़ शख्सियत की हैसियत से विज्ञान की दुनिया में मिज़ाईल मेन अब्दुल कलाम ने राजधानी दिल्ली को महफूज़ करते हुए सुरक्षा के क्षेत्र में दुश्मन को लर्ज़ा देने वाला आविष्कार कर के यह साबित कर दिया कि अगर हम सरहदों पर सिपाही की तरह सच्चे हिन्दुस्तानी हैं तो ज्ञान के सागर में रहते हुए हम विज्ञान के क्षेत्र में भी सच्चे भारतीय हैं! लेकिन तंग दिल सियासत के खिलाड़ी और मुस्लिम नफरत को अपने सीने में रख कर परवरिश पाने वाले राजनेताओं ने उस समय अब्दुल कलाम की क़ुर्बानी और उनकी भारतीयता पर शर्मसार कर देने वाला फैसला सुनाया जब अब्दुल कलाम के नाम पर एक नई इमारत तो बहुत दूर है एक नई रोड की तामीर भी न कर सके और आखिरकार उनकी श्रद्धांजली में भी मुस्लिम नफ़रत इस प्रकार दिखाई दी कि एक रास्ते के सिर पर लगा औरंगज़ेब रोड का ताज यानी एक मुसलमान का नाम छीनकर दूसरे मुसलमान को दे दिया !
हिन्दुस्तान के कुछ तंग नज़र लोग इस बात पर शर्मिन्दा हो न हो लेकिन दुनिया के बुद्धिजीवियों ने यह ज़रूर सोचा होगा कि जिस देश में महान वैज्ञानिकों को मरने के बाद भी मज़हबी आईना रख कर श्रद्धांजली देने का सिलसिला जारी हो और श्रद्धांजली में भी मज़हबी नफ़रत आधार हो भला वोह नफ़रत औरंगज़ेब के नाम से हो या अब्दुल कलाम के नाम से हो उस देश को सक्षम बनाने के लिए ,क्या अब कोई गांधी कभी आएगा ? अच्छा होता रास्तों की सियासत करने वाले लोग अगर किसी नाम को ही नफ़रत का आधार बनाने पर आमादा थे तब उन्हें लार्ड डलहौज़ी का रोड पर लगा पत्थर निकाल देना था लेकिन उसके स्थान पर भी अब्दुल कलाम जैसे महान वैज्ञानिक का पत्थर लगाना उनको श्रद्धांजली नहीं बल्कि उनकी तौहीन थी एक ऐसा शख्स जिसने भ्र्ष्टाचार की गंगोत्री में डूबी हुयी राजनीत को साध्य और साधन की पवित्रता का पाठ पढ़ाते हुए महान राष्ट्रवादी होने का परिचय दिया था !
अगर उसके लिए भी हुकूमत चलाने वालों की नज़रे इतनी तंग हैं तब वह धर्मनिरपेक्ष लोग जिन्होंने 1947 में बनने वाली मज़हबी मुल्क की तस्वीर को रौंद कर यह लिख दिया था की “सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ,हम बुलबुले इसके यह गुलसिताँ हमारा” ! यकीँनन इस हादसे के बाद उनके दिल रोये होंगे और उन्होंने यही कहा होगा की बापू हमारी त्याग,तपस्या,बलिदान,सादगी और आविष्कार भी क्या सरकारें मज़हब के आईने में देखेंगी ? और हमारे अकाबरीन के लिए सरकारों के पास नए रास्तों के निर्माण के लिए बजट भी मैयस्सार नहीं होगा !
इस वक़्त मैं औरंगज़ेब रोड़ का नाम मिटाने वालों से बहस कर मौज़ू को तब्दील नहीं करना चाहता लेकिन यह ज़रूर कहना चाहता हूँ कि वोह औरंगज़ेब जिन्हें पूर्व राजयपाल एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य तथा इलाहबाद नगरपालिका के चैयरमेन बी.एन.पाण्डेय की किताब “इतिहास के साथ यह अन्याय” में अपने शोध के अनुसार दर्जंनों मंदिरों उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों के अनुदान के लिए और एक ब्राह्मण बेटी को इन्साफ और उसकी बिदाई की पुनीत ज़िम्मेदारी के लिए एक नायक के रूप में याद किया जाता हो ,जिस औरंगज़ेब को जनता का पैसा फ़िज़ूल खर्च करने के नाम पर अपने बाप,भाई और बहनों को हिरासत में रखने के रूप में याद किया जाता हो , जिस औरंगज़ेब को विराट हिन्दुस्तान की सरहदों के लिए याद किया जाता हो ,जिस औरंगज़ेब को साध्य और साधन की पवित्रता के लिए किताबे लिखकर उन्हें बेचकर अपना घर चलाने के लिए याद किया जाता हो! सिर्फ एक पत्थर को उखाड़ फेंकने से उन्हें इतिहास से नहीं मिटाया जा सकता
हालांकि बादशाह,राजा,नवाब,जागीदार,ज़मींदार,उद्योगपति हम भारतवासियों के वैचारिक आयडियल नहीं हुए हैं लेकिन फिर भी जिस मंशा और तंग दिली के कारण दिल्ली के रास्ते से औरंगज़ेब के नाम से मंसूब पत्थर को हटा कर महान वैज्ञानिक और हिन्दुस्तानी का पत्थर लगाया गया है वह अब्दुल कलाम की तौहीन है ! मैं सारे भारतवासियों से ,धर्मनिरपेक्षता पर विशवास करने वालों से और हिन्दुस्तान की प्रतिभाओं का सम्मान करने वालों से अपील करता हूँ कि इन तंगदिल सियासी खिलाडियों के हाथों से अब्दुल कलाम का पाकीज़ा हिन्दुस्तानी नाम छीन लिया जाये और हम सब जनसहयोग के माध्यम से अगर रास्ता ही बनाना है तो जी.टी. रोड और आगरा-बॉम्बे रोड जैसा विराट रोड बनाये और तंग दिल सियासतदानों को यह बताएं कि हम भारत की धरती पर रहने वाले भारतवासी मुल्क से सच्चा प्यार करने वाली अपनी प्रतिभाओं की रक्षा करना स्वयं जानते हैं !
हलाकि यह एक जमीनी सच्चाई है कि स्व.अब्दुल कलाम साहब को सच्ची श्रध्दांजलि तो यह होती कि उनके नाम से उनकी जन्म स्थली को एजुकेश्न हब के रूप मैं विकसित किया जाता और देश भर में अब्दुल कलाम साहब की तरह गुदड़ी और गरीबी में पल रहे बच्चों की पढाई का इन्तिज़ाम किया जाता तथा जगह –जगह शोध संस्थान कायम करके मिसाइल मेन को श्रध्दांजली दी जाती ! लेकिन अफ़सोस मज़हबी सियासत के खिलाड़ीयों ने ऐसा नही किया ! मैं आप और धर्मनिरपेक्ष भारत वासियों और युवाओं को अपनी प्रतिभाओं की रक्षा की अपील करता हूँ !