लिखी क़लम ने जो दास्ताँ वो तेरी हो गई।
सुनने आया था कोई और अपना क़िस्सा
फ़साना तेरे नाम का मेरी आंखें कह गई।
सोचा था मिटा दूँगी अपने आप ही दास्ताँ ये
पर मेरी तहरीर तेरे एहसानों का सिला दे गई।
अब ये गुमाँ न करना कि मुझमें तुम जिंदा हो
मेरी धड़कने मुझसे मेरा ही फ़साना कह गई।
© सीमा आरिफ़
bahut bhadiya likha hai