युवा कवयित्री सीमा आरिफ की रचना

सीमा आरिफ
सीमा आरिफ
उफ़्फ़ यह गीली चप्पलें!!
जी मैं आता है इन्हें
असमान में फैला दूँ
वापस लेने के बहाने
असमान में थोड़ा
टहल आऊँगी
और हाँ ऊपर से यह देखूँगी
कि मेरा घर कैसा दिखता है
पिछले सावन मे
दीवारों से पपड़ियाँ
गिरने लगी थी
शायद मीलों ऊपर से
उनकी सही स्थिति
ज्ञात हो जाए
मैं अपने खेतों,अपने गाँव के स्कुल
उस चौराहे को भी देख लूंगी
जहाँ हर अक्टूबर-नवम्बर
में मेला लगता था
उस मैदान को भी निहार लूँगी
जहाँ हम ख़ूब खेलते थे
और उसे बड़े अब्बा जी के
डरावनी मकान के नाम
से जानते थे
और हाँ
इस बहाने मैं पापा से
भी मिल आऊँगी।।

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